लखनऊ। अगर अब तक आपने धान नहीं लगाया है तो चिंता करने की जररुत नहीं, खेत खाली पड़े हैं तो आप अब भी धान की रोपाई कर सकते हैं। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक अगस्त महीने में लगाए धान में न सिर्फ गुणवत्ता अच्छी होती है बल्कि सुगंध भी बेहतर होती।
देश-दुनिया में अपनी विशिष्ट सुगंध और स्वाद के लिए प्रसिद्ध बासमती धान की खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग उत्तर प्रदेश काम कर रहा है। खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान के सुगंधित वर्ग में आने वाले बासमती धान की बुवाई के लिए उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद की मौसम आधारित कृषि वैज्ञानिकों के समूह ने गुरूवार को सलाह जारी किया है। जिसके मुताबिक अगस्त महीने में बासमती धान की टाइप-3, बासमती-370 और तारावाड़ी बासमती धान की प्रजातियों की रोपाई करने से दाने की गुणवत्ता और सुगंध अच्छी होती है। खेती किसानी से जुड़े लोगों के लिए ये अच्छी ख़बर हो सकती है।
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बासमती धान की रोपाई के बारे जानकारी देते हुए गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर डिपार्टमेंट आफ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग के प्रोफेसर एंड सीनियर राइस ब्रीडर डा. सुरेन्द्र सिंह ने बताया ” वैसे तो बासमती धान की खेती सामान्य धान की खेती की तरह ही करते हैं लेकिन बासमती धान की खेती में भूमि की संरचना और जलवायु बासमती धान की सुगंध और स्वाद को अत्यधिक प्रभावित करती हैं। ऐसे में इसकी बुवाई के समय का विशेष ध्यान रखना पड्ता है। ”
भारत के बासमती चावल की चीन सहित कई बड़े देशों में भारी डिमांड है। जिसको देखते हुए बासमती चावल की खेती वैज्ञानिक ढंग से देश में इसके लिए किसानों को कृषि विश्वविद्यालयों और विभिन्न कृषि संगठनों के जरिए जागरूक किया जा रहा है। इस बारे में जानकारी देते हुए उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक राजेन्द्र कुमार ने बताया ” किसानों को सही समय खेती की जानकारी मिल जाए इसलिए उपकार के जरिए हर 15 दिन में मौसम आधारित राज्य स्तरीय कृषि परामर्श समूह की बैठक करके सलाह जारी की जाती है। इस बैठक में देश के जानेमाने कृषि वैज्ञानिक किसानों के लिए एडवाइजरी तैयार करते हैं। ”
बासमती धान की बुवाई को लेकर जानकारी देते हुए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची के धान की फसल के विशेषज्ञ डॉ. देवेन्द्र नारायण सिंह ने बताया ” बासमती धान की खेती के लिए अच्छे जल धारण क्षमता वाली चिकनी या मटियार मिट्टी का चुनाव करना चाहिए। साथ ही इस धान की बुवाई का समय जो निश्चित है उसी समय इसकी बुवाई किसानों को करना चाहिए। ”
उन्होंने बताया कि बासमती धान की जो पारंपरिक प्रजातियां हैं, वह प्रकाश के प्रति संवेदनशील, लंबी अवधि और अपेक्षाकृत अधिक ऊंचाई वाली होती हैं। जिससे उसकी उपज कम होती है। बासमती धान की जो नई प्रजातियां विकसित की गईं हैं वह अधिक उपज देती हैं लेकिन इसके लिए किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
बासमती धान की खेती के लिए बीजों का चुनाव बहुत अहम होता है। रोपाई के समय के अनुसार अगेती, पछेती प्रजातियों के लिए शुद्ध एवं अधिक अंकुरण की क्षमता वाले बीजों का चुनाव करना चाहिए। ऐसे में बीज शोधन करके ही बुवाई करनी चाहिए।
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डॉ. देवेन्द्र नारायण सिंह ने बताया कि बासमती धान को बीमारियों से बचाने के लिए बीज शोधन करते समय 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम केा प्रति किलों की दर से उपचारित करते हैं। बासमती धान में सामान्य धान के मुकाबले खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता आधी होती हे। ऐसे में बासमती धान को कार्बनिक खेती के लिए उपयुक्त होती है। बासमती धान में कार्बनिक पोषक तत्वों को आपूर्ति कंपोस्ट हरी खाद और मूर्गी की बीट से पूरी की जाती है।
धान में पानी की अधिक जरुरत पड़ती है इसलिए बासमती धान में पानी के प्रबंधन पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। रोपाई से लेकर धान में दाना बनने तक इसमें पानी का स्तर बनाए रखना पड़ता है इसलिए किसानों को यह ध्यान देना चाहिए।
भारत और पाकिस्तान को बासमती धान की खेती का जनक माना जाता है। ऐसे में इन दोनों देशों में इसकी खेती केा बढ़ावा देने के लिए कृषि वैज्ञानिक और वहां की सरकार ध्यान दे रही हैं। उत्तर प्रदेश में इस साल खरीफ सीजन- 2016-17 में 788.440 हजार हेक्टेयर में सुगंधित धान की बुवाई का लक्ष्य रखा गया है जिसमें सबसे ज्यादा बासमती धान की बुवाई होनी है।
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