कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में ज्यादा मुनाफे के लिए करें बाजरा की खेती

क्षेत्रफल की दृष्टि से बाजरा का स्थान गेहूं, धान और मक्का के बाद आता है। कम वर्षा वाले स्थानों के लिए यह एक अच्छी फसल है।
#बाजरा की खेती

लखनऊ। अगर आपको कम सिंचाई वाले क्षेत्र में फसल की बुवाई करनी है तो बाजरा की खेती सबसे सही फसल होती है। प्रदेश में क्षेत्रफल की दृष्टि से बाजरा का स्थान गेहूं, धान और मक्का के बाद आता है। कम वर्षा वाले स्थानों के लिए यह एक अच्छी फसल है।

40 से 50 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। बाजरा की खेती मुख्यत: आगरा, बरेली एवं कानपुर मंडलों में होती है। जलवायु एवं मिट्टी इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि पर हो सकती है, लेकिन जल जमाव के प्रति इसकी संवेदनशीलता के कारण इसकी खेती के लिये बलुई, दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास अच्छा हो, सर्वाधिक अनुकूल पायी गयी है।

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बाजरा देश की लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या का मुख्य भोजन है। साथ ही यह पशुओं का महत्वपूर्ण चारा है। देश में यह 11.33 मिलियन हेक्टेयर में उगाया जाता है। हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। उत्तर प्रदेश में इसकी कभी बड़ी मात्रा में खेती होती थी लेकिन धीरे-धीरे इसकी खेती कम को गई थी जो अब बढ़ रही है

इसकी खेती गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में जहां 400-650 मिमी. बारिश होती है, करना चाहिए। इसके परागण के समय बारिश होने पर पराग के धुलने और उत्पादन में कमी आने की संभावना रहती है। तेज धूप और कम वर्षा के कारण जहां पर ज्वार की खेती संभव नहीं है। वहां के लिये बाजरा एक अच्छी वैकल्पिक फसल है। बाजरा के विकास के लिए 20-30 सेंटीग्रेट तापक्रम सर्वाधिक उचित है। यह अम्लीय मिट्टी के प्रति संवेदनशील होती है।

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एक गहरी जुताई के बाद दो हल्की जुताई और पाटा लगाना चाहिए है। अच्छे अंकुरण के लिए खेतों में ढेला नहीं रहना चाहिए। खेत को समतलीकरण में ध्यान दें कि खेत में जल निकासी बाधित न हो। अगर संभव हो तो खेत की तैयारी के पहले दो ट्रैक्टर सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ डालना चाहिए।

चार-पांच किलोग्राम/हेक्टेयर पौधा से पौधा 12-15 सेंटीमीटर और कतार से कतार 45-50 सेमी. होना चाहिए। जहां कम बारिश होती है वहां पर जुलाई के पहले हफ्ते में बुवाई करनी चाहिए और जहां पर ज्यादा बारिश होती है वहां पर जुलाई के आखिर में बुवाई करनी चाहिए।

वेबसाइट इंडियास्पेंड के अनुसार, गेहूं और धान की तुलना में मोटे अनाजों को कम संसाधनों की जरूरत होती है। मसलन, बाजरा और रागी को धान की तुलना में एक तिहाई पानी की जरूरत होती है। मोटे अनाज खराब मिट्टी में भी अच्छी तरह उग सकते हें। मोटे अनाज जल्दी खराब नहीं होते। देश का 40 फीसदी खाद्यान्न बेहतर रखरखाव के अभाव में नष्ट हो जाता है, जबकि मोटे अनाज उगने के 10 से 12 वर्ष बाद भी खाने योग्य बने रहते हैं। इसके अलावा ये मैग्नीशियम, विटामिन बी3 और प्रोटीन से भरपूर होने के साथ ग्लूटन फ्री होते हैं। इस लिहाज से ये शुगर के रोगियों के लिए आदर्श भोजन साबित हो सकते हैं। इनके इसी गुण की वजह से इन्हें अब सुपर फूड के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।

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