लखनऊ। देश में सब्जियों में आलू और प्याज के बाद टमाटर का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। टमाटर की पूरे साल डिमांड भी बनी रहती है। उत्तर प्रदेश में लाखों किसाना टमाटर की खेती से जुड़े हुए हैं।
जायद के इस मौसम में पूरे प्रदेश में लगभग 5.20 हजार हेक्टेयर में टमाटर की खेती की गई है। लेकिन टमाटर के इन खेतों पर संकट मंडरा रहा है। टमाटर की फसल को नुकसान पहुंचाने वाला दक्षिण अमेरिकी कीट पर्ण सुरंगक के प्रकोप का खतरा है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी ने इस कीट से टमाटर को बचाने के लिए शनिवार को अलर्ट जारी किया।
संस्थान के निदेशक डॉ. बी. सिंह ने बताया ” टमाटर को नुकसान पहुंचाने वाले दक्षिणी अमेरिकी कीट के बारे जानकारी मिली है। इसी साल जनवरी में पहली बार यह कीट वाराणसी ओर मिर्जापुर जिले में टमाटर के खेतों दिखा था। इसके बाद एक बार फिर इसके सक्रिय होने की आशंका है।” पूर्ण सुरंगक कीट से टमाटर की फसल पूरी तरह बर्बाद हो जाती है।
उन्होंने बताया कि इस कीट के हमले से टमाटर की खेती को कैसे किसान बचाएं इसको लेकर अलर्ट जारी कर दिया गया है। इस कीट के प्रति सतर्कता और जागरुकता से जुड़ी जानकारी वैज्ञानिकों और कृषि अधिकारियों को जारी कर दिया गया है। किसानों से भी कहा गया है कि अगर उनके खेत में यह कीट दिखे तो इसकी सूचना भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी को तुरंत भेजें।
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक और सब्जी फसल विभाग के प्रोजेक्ट क्वार्डिनेटर डा. मेजर सिंह ने बताया ” टमाटर का नुकसान पहुंचान वाल पर्ण सुरंगक कीट जिसका वैज्ञानिक नाम टूटा अब्सोलुटा है। विश्व में यह कीट टमाटर के उत्पादन में सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है। इस कीट से फसल की उपज और फलों की गुणवत्ता में 50 से लेकर 100 प्रतिशत तक की क्षति होती है। ” उन्होंने बताया कि इस कीट का मुख्य पोषक आलू, बैंगन और दलहनी फसलों में भारतीय सेम है। जहां से यह टमाटर में फैलता है।
भारत में इस कीट का प्रकोप पहली बार वर्ष 2014 में कर्नाटक और महाराष्ट्र में दिखा था। इसके बाद इस कीट का प्रसार आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, नई दिल्ली और हिमांचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों के अलावा अब उत्तर प्रदेश में देखा जा जा रहा है।
इस कीट के बारे में जानकारी देते हुए डा. मेजर सिंह ने बताया कि कीट की सूंड़ियां यानि लार्वा टमाटर को क्षति पहुंचाती है। यह पत्तियों को बीचोंबीच काटकर सुरंग बना देता है। जिससे पत्तियां सड़ना शुरू हो जाती और टमाटर के तने और फलों में काला गड्डा पड़ जाता है। इस कीट के प्रकोप से टमाटर को बचाने के लिए भारतीय सब्जी अनुसंधान की तरफ से किसानों को रोकथाम की दी गई है। जिसमें बताया गया है कि अगर टमाटर के खेत के किसी पेड़ में इसका लक्षण दिखे तो उस पौधे को तुरंत हटाकर बाकी के पौधों को जाल से ढंक दिया जाए। इस कीट से टमाटर को बचाने के लिए फसल का नियमित निरीक्षण करने के साथ ही कीटनाशक क्लोरनट्रानिलिप्रोल 20 एस.सी. नामक दवा को 0.15 मिली. को पति लीटर में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के अनुसार भारत में विश्व का कुल 4.46 प्रतिशत टमाटर का उत्पादन होता है। देश में 767 हजार हेक्टेयर में टमाटर की खेती होती है। जिसमे हर साल 16385 मीट्रिक टन टमाटर की पैदावार होती है। उत्रर प्रदेश में राष्ट्रीय औसमत से ज्यादा खेती होती है।
उत्तर प्रदेश में लगभग 10.48 हजार हेक्टेयर में टमाटर की खेती की जाती है। यहां पर सालाना उत्पादन 413.83 हजार मीट्रिक का उत्पादन होता है। प्रदेश में कानपुर, वाराणसी, झांसी और गोरखपुर में सबसे ज्यादा टमाटर की खेती की जाती है।
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