मध्य प्रदेश। महंगी दालें अक्सर हमारी थाली का स्वाद बिगाड़ देती हैं। मुद्दा यहां तक बढ़ता है कि स्वादिष्ट दाल सरकारों तक के लिए गले की हड्डी बन जाती है। पिछले वर्षों में अरहर दाल कई बार सुर्खियां बन चुकी है। दाल के दाम इसलिए आसमान पर पहुंचते हैं, क्योंकि पिछले कुछ दशकों में दाल का उत्पादन काफी गिरा है।
हरितक्रांति के बाद देश में धान-गेहूं का उत्पादन तो तेजी से बढ़ा था, लेकिन दालों के रकबे में लगातार कमी आई। देश में दाल की जो किस्में थीं, उनका उत्पादन काफी कम था, जिसका खामियाजा महंगाई के रूप में भुगतना पड़ा। यहां तक कि सरकारों को अफ्रीकी देशों में दाल की खेती तक करानी पड़ी।
लेकिन इसी देश में कई ऐसी किस्में हैं जो इतनी पैदावार देती हैं कि किसान धान-गेहूं की अपेक्षा कई गुना ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। पिछले दिनों गांव कनेक्शन ने ही छत्तीसगढ़ के जंगली इलाकों में पाई जाने वाली अरहर की एक किस्म के बारे में लिखा था, जिससे एक बार में 10-12 किलो फलियां मिलती हैं। इसी तरह की एक किस्म मध्य प्रदेश के प्रगतिशील किसान और किसान प्रशिक्षक आकाश चौरसिया (28वर्ष) ने विकसित करने का दावा किया है।
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“अरहर की ये देसी किस्म है जो एक एकड़ में हमारे यहां 15-18 क्विंटल तक उत्पादन देती है। मेरे यहां से देशभर के एक हजार से ज्यादा किसान बीज ले गए हैं, जो करीब 3 हजार एकड़ में बोई गई है। इसकी सबसे खास बात ये है कि एक बार लगाने पर 5 साल तक लगातार फसल ली जा सकती हैं।” आकाश चौरसिया बताते हैं।
आकाश, मध्य प्रदेश में सागर जिले के रेलवे स्टेशन से छह किलोमीटर दूर राजीव नगर तिली सागर में रहते हैं। आकाश के मुताबिक, वो देसी अरहर के इन बीजों को वर्ष 2011 बिहार और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाके से लेकर आए थे। आकाश बताते हैं, “वहां मुझे इसके सिर्फ 3 पौधे मिले थे, जिससे मैंने कई क्विंटल बीज तैयार किए। शुरू में इसके दाने काफी हल्के थे, और फलियां झड़ जाती थीं। मैंने अपने खेतों में उचित खाद और दूसरी किस्मों के साथ संवर्धित कर इसे तैयार किया है। इसका पेटेंट कराने के लिए कृषि मंत्रालय को भी भेज दिया है।’
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आकाश बताते हैं, “हमारे देश से दाल कम होती जा रही है लेकिन बीज अच्छे होंगे तो अच्छा उत्पादन होगा जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा भी होगा। ऐसे किस्में देश के दाल संकट को खत्म कर सकती हैं। मैं जो किस्म उगा रहा हूं वो उसके एक एकड़ में सिर्फ 3 से साढ़े तीन सौ ग्राम बीज लगते हैं।”
अपनी किस्म की गुणवत्ता बताते हुए वो कहते हैं, “ इसका एक पौधा लगाने के बाद कई बार कटाई कर सकते हैं, इसका एक फायदा ये है कि कटाई के दौरान सहफसली के रूप में इसी खेत में गेहूं, उरद और मूंग समेत कई फसलों की खेती हो सकती है, इससे मुनाफा कई गुना बढ़ सकता है।’
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भारतीय दलहन अनुसन्धान संस्थान (आईआईपीआर) की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में दाल आपूर्ति के लिए विदेशों से पांच लाख टन दालों का आयात किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से तंजानिया, आस्ट्रेलिया, म्यांमार और कनाडा जैसे देशों से आयात होता है। विदेशों से चना, मटर, उरद, मूंग व अरहर दालें आयातित की जाती हैं। देश में प्रतिवर्ष दाल की मांग 220 लाख टन है। मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश बिहार समेत कई राज्यों में भारी पैमाने पर अरहर, मूंग, चना समेत कई दालें पैदा होती हैं।
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जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संजय वैशंपायन गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “आकाश चौरसिया को विश्वविद्यालय से टेक्निकल सपोर्ट दिया जाता है। ये देसी अरहर की प्रजाति का अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। इस बीज को पेटेंट के लिए किसान के नाम से दिल्ली भेजा गया है, उम्मीद है इसका पंजीकरण हो जाएगा। अगर बीज की गुणवत्ता सही निकली तो आकाश को नगद राशि से भी सम्मानित किया जाएगा।”
10 साल तक उपज देने वाली अरहर
आकाश की तरह ही उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के राजेन्द्र सिंह (56 वर्ष) भी ऐसी ही एक अरहर की प्रजाति पर लगातार काम कर रहे हैं, उनका दावा है कि एक बार बीज बोने पर 10 साल तक उपज मिलती है। बस्ती जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम दुबौलिया विकासखंड के बरसांव गांव के राजेंद्र सिंह ने ‘आर एस अरहर 10’ नाम की एक देसी अरहर खोजी है।
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राजेन्द्र सिंह गांव कनेक्शऩ को बताते हैं, “कई वर्ष पहले मैंने अपने खेत में कुछ ऐसे अरहर के पौधे देखे जो साल में दो बार फलियां दे रहे थे। उन पौधों को चिन्हित कर उसका बीज अलग रखा। अगले वर्ष उसे दूसरे खेत में लगाया। पचास पेड़ ही लगाये जिससे 10 साल लगातार उत्पादन हुआ।” वो आगे बताते हैं, “इस अरहर के एक पेड़ में पहली साल आधा किलो अरहर निकला, इसके बाद दो किलो तक निकला। पहली साल इसका उत्पादन कम होता है जैसे-जैसे ये पौधा पुराना होता जाता है वैसे-वैसे इसका उत्पादन बढ़ता जाता है।”
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भारत दुनिया में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, देश में प्रतिवर्ष दाल की मांग 220 लाख टन है। साल 2020 तक 24 मिलियन टन दाल दलहन उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त करने पर जोर दिया गया है। जिससे देश के हर व्यक्ति को 52 ग्राम दाल प्रतिदिन मिल सके। देश में दलहन का उत्पादन वर्ष 2015-16 में एक करोड़ 70 लाख टन रहा था। प्रति हेक्टेयर औसत उपज 750 किलो दर्ज की गई।
आकाश और राजेंद्र दोनों ही किसानों ने अभी तक अपने बीजों को कृषि मंत्रालय से प्रमाणित नहीं कराया है। आकाश ने हालांकि इसके लिए अर्जी लगा दी है। भारत सरकार ने नए अधिनियमों के तहत कृषि मंत्रालय ने किसानों को ये अधिकार दिया है कि वो अपने देसी बीजों को या फिर अपने खेत में उपजाए जा रहे परंपारगत उन्नत बीजों का पेटेंट करवाकर खुद की बीज कंपनी खोल सकते हैं या फिर उन्हें किसी कंपनी के साथ मिलकर बाजार में ला सकते हैं। इसके लिए किसानों को पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण ( http://plantauthority.gov.in/) में ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।