स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
कानपुर।कुछ साल पहले तक हर किसान के पास बैल रहते थे। बैल से खेतों की जुताई होती थी। अब ट्रैक्टर से खेतों की जुताई होने लगी, जिससे अब बैलों की संख्या घटती जा रही है। हल-बैल की जगह ट्रैक्टर की जुताई से मिट्टी भी सख्त हो रही है, बावजूद इसके लोग अब बैल नहीं पाल रहे हैं।
“पहले हम बैलों के साथ हल लगाकर जुताई करते थे, लेकिन आज ट्रैक्टर से जुताई की जा रही है। ट्रैक्टर की जुताई जमीन को कड़ी कर रही है। बैल से जुताई से यह समस्या नहीं आती थी। हमारे बचपन में घर के बाहर बंधे बैल सम्पन्नता की निशानी माने जाते थे।” ये कहना है कानपुर के चौबेपुर गाँव के निवासी जीवन लाल यादव (65 वर्ष)।
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कानपुर नगर से घाटमपुर की ओर 12 किमी दूर स्थित बिधनू ब्लाक के रहने वाले विनोद कुमार अग्निहोत्री (55 वर्ष) कहते हैं, “ट्रैक्टर के इस्तेमाल ने बहुत कुछ बदल दिया है। ट्रैक्टर से कम समय में ज्यादा खेतों की जुताई हो जाती है, जबकि बैलों से यह संभव ही नहीं है।”
बैलों से चल रहे हैं पंप
नेशनल हाईवे-2 पर कानपुर से दिल्ली की ओर स्थित गोशाला सोसाइटी में बैलों की मदद से बिजली भी पैदा की जा रही है। यहां बैलों से चलने वाले जेनरेटर, पानी निकालने का पम्प, थ्रेसर और ग्राइन्डर जैसे यंत्र चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा यहां पर गोमूत्र से बिजली उत्पादन और बैलों के प्रयोग से बैट्री चार्ज कराना जैसे नए प्रयास करे जा रहे हैं। साल 2007 की पशुगणना के अनुसार बैलों की संख्या लगभग तीन लाख 80 हजार थी, जो साल 2012 की पशुगणना में घटकर करीब तीन लाख 64 हजार हो गई है। जो हर वर्ष घटती ही चली जा रही है।
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