सुभाष पालेकर : दुनिया को बिना लागत यानी जीरो बजट खेती करना सिखा रहा ये किसान

किसानों के गुरु सुभाष पालेकर: उनकी पद्धति को अपनाकर लाखों को बिना लागत के खेती से अपनी आय बढ़ाते हुए मुनाफा कमा रहे हैं।
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साल 2019-20 के बजट में जिस शब्द की सबसे ज्यादा चर्चा है वो है जीरो बजट खेती। जीरो बजट या शून्य लागत खेती। बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार जीरो बजट खेती को बढ़ावा देगी। इससे पहले नई सरकार ने जीरो बजट खेती के जनक सुभाष पालेकर की पद्दति को आगे बढ़ावा देनी की बात की थी।  जानिए कौन हैं Subhash Palekar और क्या है उनकी zero budget natural farming

देश-विदेश के कृषि विश्वविद्यालयों से लेकर खेत-खलिहानों तक आजकल सुभाष पालेकर की चर्चा होती है। कुछ साल पहले कोई यह सोच नहीं सकता था कि बाजार से बिना कोई सामान खरीदे और बिना लागत के भी किसान अपनी खेती से अधिक मुनाफा कमा सकते है? इसको करके दिखाया है सुभाष पालेकर ने।

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के अमरावती जिले के मूलरूप से रहने वाले सुभाष पालेकर को देश में जीरो लागत यानि शून्य लागत कृषि का जन्मदाता कहा जाता है।  किसानों को प्रशिक्षण देने के लिए वह लखनऊ में हैं। गांव कनेक्शन से बातचीत करते हुए सुभाष पालेकर ने बताया ”कृषि स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह अपने गांव में एक किसान के रूप में 1973 से लेकर 1985 तक खेती की, लेकिन आधुनिक और रासायनिक खेती करने के बाद भी जब उत्पादन नहीं बढ़ा तो चिंता होने लगी।”

सुभाष पालेकर बताते हैं कि जब खेत में पर्याप्त इनपुट डालने के बाद भी उत्पादन नहीं बढा तो उन्होंने अपने कृषि शिक्षक से इसका निदान पूछा तो उन्होंने इनपुट बढ़ाते रहने के लिए कहा। इसके बाद वह इसके समाधान के लिए जंगलों की तरफ चले गए। जंगल में जाकर उनके मन में प्रश्न पैदा हुआ कि बिना मानवीय सहायता के हरे-भरे जंगल खड़े हैं, यहां के इनके इनके पोषण के लिए रासायनिक उर्वरक कौन डाल रहा है? जब यह बिना रासायनिक खाद के खड़े रह सकते हैं तो हमारे खेत क्यों नहीं? इसी को आधार बनाकर मैंने बिना लागत की खेती करने का अनुसंधान शुरू किया। 

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ज़ीरो बजट खेती का पूरा ककहरा सीखिए, सीधे सुभाष पालेकर से

सुभाष पालेकर ने बताया कि 15 सालों के गहन अनुसंधान के बाद उन्होंने एक पद्धति विकसित की थी, जिसको शून्य लागत प्राकृतिक कृषि का नाम दिया। इस पद्धति को प्रचार-प्रसार के लिए वह किसानों को प्रशिक्षण देने लगे। उन्होंने बताया कि वह पिछले 20 सालों से लगातार शून्य लागत प्राकृतिक कृषि की खेती का प्रशिक्षण देने सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी गए। आज इस पद्धति को अपनाकर लाखों को बिना लागत के खेती से अपनी आय बढ़ाते हुए मुनाफा कमा रहे हैं।

देश की कृषि में सुभाष पालेकर के इस योगदान को देते हुए साल 2016 में भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री सम्मान से अलंकृत किया। आंध्रप्रदेश की चंद्रबाबू नायडू सरकार ने उन्हें अपने राज्य का कृषि सलाहकार बनाया है साथ ही एक शून्य लागत प्राकृतिक कृषि विश्वविद्यालय बनाने की भी घोषणा की है।

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किसानों के बीच कृषि ऋषि के रूप में पहचाने जाने वाले सुभाष पालेकर का अधिकतर समय किसानों के प्रशिक्षण शिविर में बीतता है। सबसे खास बात यह है कि वह किसानों को निशुल्क प्रशिक्षण देते हैं। सुभाष पालेकर एक कृषि वैज्ञानिक के साथ ही संपादक भी हैं वह 1996 से लेकर 1998 तक कृषि पत्रिका का संपादन भी कर चुके हैं। साथ ही हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी सहित कई भाषाओं में 15 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। सुभाष पालेकर की तरफ से विकसित भू-पोषक द्रव्य ”जीवामृत ” पर आईआईटी दिल्ली के छात्र शोध भी कर रहे हैं।  सुभाष पालेकर को सुनकर और यू-ट्यूब पर उनके वीडियो देखकर बड़ी संख्या में युवा अपना करियर छोड़कर खेती करने की तरफ लौट रहे हैं।

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