बाराबंकी (यूपी)। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पड़ोसी जिले बाराबंकी में रहने वाले सतेंद्र वर्मा अभी तक टमाटर और केले की खेती करते थे, उन्हें ठीक-ठीक मुनाफा भी हो रहा था। लेकिन सतेंद्र अपनी खेती को ही रोजगार बनाना चाहते थे अब वो स्ट्राबेरी की खेती करते हैं। सतेंद्र की मानें तो इस नए तरह की खेती में उनका लाभ कई गुना बढ़ने वाला है।
“मैंने पिछले वर्ष अपनी थोड़ी सी जमीन पर स्ट्रॉबेरी लगाई थी, तो काफी अच्छा मुनाफा हुआ था। इसलिए इस बार मैंने करीब डेढ़ एकड़ स्ट्रॉबेरी लगाई है। फल भी अच्छे आ रहे हैं, मुझे 200-300 रुपए किलो का रेट लखनऊ के मॉल में मिल जा रहा है।” अपने खेत में स्ट्रॉबेरी का एक फल तोड़ते हुए सतेंद्र बताते हैं।
कभी अफीम का गढ़ रहा बाराबंकी अब केले और मेंथा की बेल्ट के रुप में जाना जाता है। यहां पर टमाटर की खेती भी बड़े पैमाने पर होती है। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा पॉली हाउस वाले इस जिले में कई किसान आधुनिक तरीके से खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। हैदरगढ़ ब्लॉक के बर बसौली गांव के रहने वाले सतेंद्र वर्मा इन्हीं किसानों में शामिल हैं।
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सतेंद्र बताते हैं, पिछले दिनों में घूमने हिमाचल प्रदेश गया था, वहां मैंने स्ट्रॉबेरी की खेती देखी और फिर इसका रेट पता किया। उसी दौरान ख्याल आया अपने खेत में हो सकती है क्या। इसके बाद मैंने एक कंपनी से प्लांट खरीद कर थोड़ी खेती की। सब ठीक रहा तो इस बार रकबा बढ़ा दिया है।’
सतेंद्र ने 8 रुपए प्रति पौधे के हिसाब से जैन कंपनी से पौधे लिए हैं। वो बताते हैं, “मेरे यहां डेढ़ एकड़ में करीब साढ़े तीन लाख रुपए की लागत आई है। लेकिन ये पैसा एक ही छमाही (फसल) में निकल जाएगा। अभी का रेट है, उसके मुताबिक मुझे कम से कम 2 से 3 लाख रुपए प्रति एकड़ बचत होनी चाहिए।’
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स्ट्रॉबेरी पहाड़ी इलाकों का पौधा है और देश के बारी इलाकों में ज्यादातर जगहों पर ये पॉली हाउस में उगाया जाता है। लेकिन कुछ किसान खुले में भी फसल ले रहे हैं। सतेंद्र ने सितंबर में प्लांटेशन किया था और नवंबर के आखिरी हफ्ते में उनके खेत में फल निकलने शुरु हो गए थे।
स्ट्रॉबेरी से मुनाफा कैसे कमाएंगे, ये पूछने पर सतेंद्र कहते हैं। “इस फसल में मेरी जो मोटी लागत है वो पौधे की थी। इसके बाद सिंचाई और निराई-गुडाई का खर्चा आता। इसलिए मैंने मल्चिंग और ड्रिप इरीगेशन करवा दिया है। बूंद-बूंद सिंचाई का सिस्टम लगाने में पहली बार में तो ज्यादा पैसा खर्च हुआ है, लेकिन उसमे सब्सिडी है। दूसरा इससे सिर्फ 15 मिनट में पूरे खेत की सिंचाई हो जाती है। मल्चिंग से निराई गुड़ाई का झंझट खत्म हो गया है।”
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सतेंद्र ने अपनी डेढ़ एकड़ फसल को करीब 3 भागों में बांट रखा है। पहले हिस्से में फल निकलने लगे हैं तो दूसरे में फूल आने वाले हैं जबकि तीसरे हिस्से के खेत में पौधे अभी छोटे हैं। सतेंद्र कहते हैं, “सारे फल एक साथ आते तो बिकने की दिक्कत हो सकती थी, दूसरे फसल जल्द खत्म हो जाती। अब एक खेत में जब तुड़ाई होती है, दूसरे खेत के फल तैयार हो जाते हैं, इस तरह फरवरी तक ये चक्र चलता रहेगा।”
सतेंद्र को तकनीकी मदद देनी वाली कंपनी जैन इरीगेशन के रवींद्र कुमार वर्मा गांव कनेक्शन को बताते हैं, ” खेती का पैटर्न बदला है। अब देखिए सतेंद्र की पूरी खेती (डेढ़ एकड़) करीब 15 मिनट में सींच गया, जबकि खुले में सिंचाई करते तो कई घंटे लगते। एक मोटे अनुमान के तौर पर कम से कम 5 घंटा पंपिंग सेट चलता तो 5 लीटर डीजल खर्च होता, लेकिन ड्रिप से ये काम 15 मिनट में मुश्किल से हो गया। डीजल, समय और मजदूरी सबकी बचत हुई है।”
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बाराबंकी के जिला उद्यान अधिकारी जयकरण सिंह बताते हैं, हम लोग अपने किसानों को लगातार भ्रमण कराते हैं, दूसरे प्रदेशों और कृषि मेलों में ले जाते हैं, इससे उन्हें नई जानकारियां मिलती हैं। जो किसान कुछ अलग खेती करना चाहते हैं उन्हें विभाग की योजनाओं के अनुरुप तकनीकी और आर्थिक मदद भी दी जाती है। उत्तर प्रदेश में बाराबंकी के साथ गोरखपुर, मिर्जापुर, अंबेडकरनगर और बदायूं में भी कुछ किसान स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। (खबर मूलरूप से वर्ष २०१७ में प्रकाशित हुई थी)
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