लखनऊ। भारत में लहसुन को मसालों वाली फसलों की श्रेणी में रखा गया है। लहसुन, प्याज, टमाटर वो फसल हैं जो अपने रेट को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहती हैं। लहसुन का रेट इस साल थोक में 3 रुपए किलो गया है तो भी 2 साल पहले मंडी में 200 रुपए किलो तक बिक चुका है।
पिछले कुछ वर्षों में देश में धान, गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों के अलावा बागवानी फसलों (सब्जी-फल-मसालों) की खेती का रकबा तेजी से बढ़ा है। लोकसभा में पूछे सवालों के जवाब केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि साल 2020-21 के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार देशभर में 390.6 हजार हेक्टेयर में लहसुन की खेती हुई है, जिससे 3184.8 हजार मीट्रिक टन होने का अनुमान है। इससे पहले साल 2019-20 में 352.5 हजार हेक्टेयर में लहसुन की खेती हुई थी और 3184.8 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था। वहीं साल 2017-18 में 317 हजार हेक्टेयर में लहसुन की खेती हुई थी और 1610.6 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ था।
कृषि मंत्री तमिलनाडु से डीएमके सांसद गौतम सीगामनी पोन और सीएन अन्नादुराई के सवालों का बजट सत्र में जवाब दे रहे थे। केंद्र सरकार के मुताबिक देश में मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, असम, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल प्रमुख लहसुन उत्पादक राज्यों में से एक हैं।
देश में सबसे बड़ा लहसुन उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश है। मध्य प्रदेश में साल 2020-21 के तीसरे अग्रिम अनुमानों के मुताबिक 190 हजार हेक्टेयर में लहसुन की खेती हुई है जबकि 1956.7 हजार मीट्रिक टन उत्पादन का अनुमान है। साल 2019-20 में 1837 हजार हेक्टेयर फसल रकबा था और 1869.4 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था। इसी तरह 2018-19 178.3 हजार हेक्टेयर से 1821.3 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ था। पिछले कुछ वर्षों में साल 2017-18 ऐसा साल था जब एमपी से ज्यादा लहसुन की बुवाई राजस्थान में हुई थी, एमपी में 92.5 हजार हेक्टेयर से 405 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था जबकि राजस्थान में 112.9 हजार हेक्टेयर से 582.1 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था। 2017-18 बेहद कम रेट के चलते राजस्थान में धीरे-धीरे लहसुन का रकबा कम हुआ और साल 2020-21 में 90.9 हजार हेक्टेयर में ही बुवाई हुई है। हालांकि इस साल फिर रेट काफी नीचे हैं।
37 साल के अरविंद पाटीदार उन किसानों में से एक है जो हर साल लहसुन की खेती करते हैं। अरविंद पाटीदार नीमच के रिंगनिया गांव में रहते हैं, उनके पास इस साल 4.8 एकड़ में लहसुन था। जिसमें करीब 80 कुंटल की पैदावार हुई। अरविंद फोन पर बताते हैं, “इस साल रेट बहुत कम रहा। हमारा लहसुन 500 से लेकर 900 रुपए कुंटल में थोक में गया यानी औसत भाव 700 का रहा, जबकि लहसुन की औसत लागत की 2500-3000 रुपए कुंटल आती है। लहसुन का रेट ऊपर नीचे होता रहता है। सिर्फ हमारे गांव में ही नहीं बल्कि पूरी मालवा बेल्ट और एमपी से सटे राजस्थान के प्रतापगढ़ में खूब लहसुन होता है।” राजस्थान में कोटा और अलवर में बड़े पैमाने पर लहसुन प्याज की खेती होती है।
केंद्र सरकार के मुताबिक वो कुल 25 फसलों (एमएसपी-एफआरपी) का न्यूनतम समर्थन मूल्य देती है। बाकी कुछ फसलों के लिए लहसुन जैसी जल्द खराब होने वाली फसलों को विशेष परिस्थितियों में मंडी हस्तक्षेप योजना के तहत लाभ दिया जाता है। सरकार के मुताबिक साल 2017-18 और 2018-19 में राजस्थान के लहसुन किसानों को इस योजना के तहत लाभ दिया गया। बाकी किसानों को खेती में विभिन्न योजनाओं के तहत सब्सिडी दी जाती है।
लहसुन की खेती पर अनुदान
देश में लहसुन समेत दूसर बागवानी फसलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार समेकित बागवानी विकास मिशन (MIDH) के तहत प्रकंद मसालों के विस्तार के लिए आर्थिक सहायता देती है। जिसके तहत एक किस्त में लाभार्थी किसान को 4 हेक्टेयर तक की खेती के लिए अधिकतम 30000 रुपए या फिर अधिकतम 12000 रुपए प्रति हेक्टेयर 40 फीसदी लागत मानदंड के हिसाब से सहायता शामिल है।
2018-19 और 2020-21 तक एमआईडीएच योजना के तहत प्रकंद (राईजोमैटिक) और मसालों (लहसुन, अदरक, हल्दी आदि) के लिए 15 राज्यों को 1584.02 लाख रुपए का दिए गए। इनमें से सबसे ज्यादा फंड उत्तर प्रदेश (529.88) को मिला, दूसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ (423.36), तीसरे पर तमिलनाडु(266.76) चौथे पर हरियाणा(162.82) और पांचवें पर केरल (54.89) है।
हालांकि अरविंद पाटीदार कहते हैं, “उन्हें आजतक सिर्फ 2016-17 में मध्य प्रदेश सरकार ने 800 रुपए कुंटल का भावांतर योजना का लाभ दिया था, क्योंकि उस दौरान लहसुन की कीमत 300 रुपए कुंटल आ गई थी। बाकी कोई लाभ नहीं मिला, कोई सब्सिडी नहीं मिली।”
अधिकारियों के मुताबिक लहसुन-प्याज के रेट में बड़ा उलटफेर होने के पीछे ज्यादा उत्पादन होता है। उज्जैन मंडल के संयुक्त निदेशक बागवानी (प्रभारी) आशीष कनेश के मुताबिक पिछले 20 वर्षों में क्रॉपिंग पैटर्न बदला है। अब किसान इंफॉर्मेशन तकनीकी का यूज कर रहे हैं। सबके हाथ में मोबाइल है, यूट्यूब पर दूसरे जगहों के वीडियो देखकर खेती कर करते हैं। ऐसे जब कई बार किसान दूसरों की देखा देखी या एक साल रेट ज्यादा होने पर उसी फसल की बंपर बुवाई करते हैं तो रेट गिर गाते हैं। ऐसे जब तक क्रॉप बजटिंग पूरे देश में सही तरीके से नहीं होगी ऐसा होता रहेगा। कभी कोई चीज काफी महंगी हो जाती है कभी रेट गिर जाते हैं।” वो ये भी कहते हैं अच्छी गुणवत्ता के उत्पाद हमेशा हाई रेट में जाते हैं बागवानी की फसलों में आप देखेंगे न्यूनतम और उच्चतम रेट में अंतर 6-7 गुना का अंतर होता है। उनका निर्यात भी हो सकता है लेकिन गुणवत्ता के चलते अक्सर ऐसा नहीं हो पाता है।
सिंचाई योजना
इसके अलावा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत माइक्रो इरिगेशन के लिए किसान ड्रिप और, स्प्रिंकलर आदि को सब्सिडी पर ले सकते हैं। सिंचाई योजना के तहत सरकार सरकार लघु और सीमांत किसानों को लागत का 55 फीसदी और सामान्य किसानों को 45 फीसदी तक अनुदान केंद्र सरकार देती है। जबकि कई यूपी और एमपी समेत कई राज्यों राज्य सरकारें इसके अतिरिक्त प्रोत्साहन या टॉप अप सब्सिडी देती हैं। जैसे कि उत्तर प्रदेश में ड्रिप सिस्टम लगवाने पर लघु और सीमांत किसान 85 से 90 फीसदी तक प्रति एकड़ अनुदान ले सकते हैं।
अनुसंधान संस्थान
प्याज की सबसे ज्यादा खेती महाराष्ट्र और कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होती है। लहसुन-प्याज का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान परिषद (icar) के संस्थान फसल सुधार, फसल उपरांत सुधार (पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट) आदि पर काम करते हैं। प्याज और लहसुन पर काम के लिए महाराष्ट्र के पुणे के राजगुरुनगर में प्याज और लहसुन निदेशालय है तो बेंगलुरु स्थित भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान में कार्यरत है।
देश में लहसुन की खेती, प्रमुख 6 राज्यों के आंकड़े क्या कहते हैं?