स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
सोनभद्र। उत्तर प्रदेश में विभिन्न जलवायु क्षेत्र हैं, जिस वजह से उन क्षेत्रों में खेती करने के लिए अलग-अलग बीजों का इस्तेमाल किया जाता है। पठारी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा कारगर शुष्क सम्राट धान की किस्म है। कम पानी, कम लागत और सूखे में भी इसकी पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता। कम सिंचाई संसाधन व पठारी इलाके वाले सोनभद्र, चंदौली व मिर्जापुर के किसानों के लिए इस प्रजाति का धान वरदान साबित हो रहा है।
जिला मुख्यालय से 38 किमी दूर घोरावल ब्लाक के जमगांई गाँव के किसान जितेंद्र पाठक (54 वर्ष) बताते हैं, ‘पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहां सिंचाई में दिक्कत होती है। हम लोग अपनी ज्यादातर खेती भगवान भरोसे ही करते हैं। कई वर्षों से सूखे के कारण धान की खेती में नुकसान ही हो रहा था फिर अधिकारियों द्वारा बताए गए शुष्क सम्राट धान को लगाया जो कम पानी में भी हो जाता है।’ जितेंद्र आगे बताते हैं, ‘इस धान की फरती (पैदावार) भी अच्छी होती है। कम समय में तैयार होने के कारण दाम भी अच्छा मिल जाता है।’
मिर्जापुर के बड़े किसान आशुतोष पांडे (47 वर्ष) बताते हैं, ‘हमारे पास 40 एकड़ की खेती है। इसमें शुष्क सम्राट धान ही सीजन में लगाते हैं, क्योंकि नहरों पर पानी समय पर नहीं आता है। जब भी पानी आता है तो फसल में पानी लगा देता हूं। ये फसल बहुत ही कम पानी में हो जाती है। लगभग एक किलो धान के बीज में फसल तैयार होने के बाद एक कुंतल की पैदावार हो जाती है।’
सोनभद्र जिले के कृषि अधिकारी राजीव कुमार भारती बताते हैं, ‘किसानों में शुष्क सम्राट बीज की डिमांड अधिक रहती है। विभाग से बहुत ही जल्द ये बीज बंट जाता है। इस बीज का उपयोग किसान कुछ वर्षों से कर रहे हैं। उन्हें उत्पादन का अच्छा लाभ मिला था। इस धान की प्रति हेक्टेयर 40 से 45 कुंतल की पैदावाद होती है।’ कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर श्री राम सिंह बताते हैं, ‘किसानों को शुष्क सम्राट की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इस बार भी अच्छी बरसात नहीं हुई तो किसान शुष्क सम्राट धान की रोपाई कर उत्पादन ले सकते हैं। इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। धान की नर्सरी डालने का सबसे उपयुक्त समय भी जून का प्रथम सप्ताह है।’
फसल पर नहीं होता रोग का प्रकोप
कृषि वैज्ञानिक साउथ कैंपस के डॉक्टर श्री राम सिंह ने बताया, ‘कम बरसात व सूखा में भी शुष्क सम्राट किसानों को मालामाल कर देता है। फसल पर रोग का प्रकोप भी कम होता है। खेत में सिर्फ नमी बनी रहे तो भी उत्पादन भरपूर होता है। कम अवधि में पककर तैयार होने वाली इस प्रजाति से अच्छी दूसरी प्रजाति भी नहीं है। पठारी जिले मीरजापुर, सोनभद्र व चंदौली के लिए यह प्रजाति वरदान हो सकती है। किसानों को अधिक से अधिक इसी प्रजाति के बीज का रोपण करना चाहिए। किसान चाहें तो सीधी बुवाई अथवा रोपण कर उत्पादन ले सकते हैं।’ गोरखपुर कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक संजीत कुमार कहते हैं, ‘अपने क्षेत्र के हिसाब से ही धान की किस्मों का चुनाव करना चाहिए। प्रदेश में अलग-अलग क्षेत्रों में मिट्टी, वातावरण सभी एक तरह का नहीं होता है, इसलिए कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा उसी हिसाब से बीज का संसोधन किया जाता है। पठारी क्षेत्रों में शुष्क सम्राट धान का बीज ज्यादा कारगर है। इस धान की खासियत यह है कि यह सूखे में भी भरपूर पैदावार देता है बस खेत में थोड़ी नमी बनी रहे।’
बीज की खासियत
- फसल तैयार होने की अवधि 90 से 95 दिन
- एक हेक्टेयर में उत्पादन 40 से 45 कुंतल
- खेत में नमी रहने पर भी फसल तैयार हो जाती है
- नर्सरी डालने का समय जून का प्रथम सप्ताह
- रोपाई का समय 25 जून से 15 जुलाई तक