बाराबंकी( उत्तर प्रदेश)। अगर बरसात के दिनों में भी आप के खेतों में पानी नहीं रुकता है, जिसकी वजह से आप धान की फसल नहीं ले पा रहे हैं तो बरसाती कद्दू की खेती कर सकते हैं।
बरसाती कद्दू की खेती उन इलाकों में की जा सकती है जहां पर पानी की कमी है और बरसात के दिनों में भी खेतों में पानी नहीं ठहरता है ऐसे क्षेत्रों में किसान बरसाती कद्दू की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
बाराबंकी जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित तहसील फतेहपुर क्षेत्र के किसान श्रीचंद मौर्य 40 वर्षीय बताते हैं, “वैसे तो बरसाती कद्दू की खेती रोहिणी नक्षत्र में की जाती है जो 8 जून से 22 जून तक रहता है, लेकिन ज्यादातर किसान जून के प्रथम सप्ताह से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बरसाती कद्दू की बुवाई अपने खेतों में करते हैं और इस वक्त बरसाती कद्दू की खेती करने का अनुकूल समय है।”
वही बरसाती कद्दू की बड़े पैमाने पर पिछले 10 वर्षों से खेती करते आ रहे मोहम्मद जाहिद खान कहते हैं, “हम पिछले 10 साल से बरसाती कद्दू की खेती करते आ रहे हैं और ज्यादातर हमने देशी बीजों को ही इस्तेमाल किया है, लेकिन पिछले वर्ष हाइब्रिड बीज बाजारों में आ गए और उसके बाद हमने इस बार हाइब्रिड बीज का इस्तेमाल किया है।”
वो आगे बताते हैं कि देसी बीच में आने वाला कद्दू बड़ा होता है जो चार किलो से लेकर सात किलो तक हो जाता है और हाइब्रिड बीज की अपेक्षा थोड़ा कम उत्पादन होता है बड़ा कद्दू होने की वजह से मंडी में देर से बिकता है, जबकि हाइब्रिड बीज ज्यादा उत्पादन मिलता है और इस में आने वाले कद्दू तीन से चार किलो तक ही रह जाते हैं, जिसकी वजह से मंडी में इनकी मांग ज्यादा रहती है इसीलिए हमने इस बार हाइब्रिड बीज इस्तेमाल किया है।”
देसी बीज की बुवाई करने पर इसका उत्पादन 75 से 80 दिनों के बाद शुरू होता है, जबकि हाइब्रिड बीज का उत्पादन 60 से 65 दिनों के बाद शुरू हो जाता है फसल खत्म होने पर उनके पौधों को रोटावेटर से कटवाने के बाद खेत में कंपोस्ट खाद भी बन जाती है जिससे खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है।”
वहीं बरसाती कद्दू की खेती करने वाले ननकू राजपूत 45 वर्षीय बताते हैं, “इसकी खेती हम उन खेतों में करते हैं जहां पर बरसात के दिनों में भी पानी नहीं रुकता है जिसकी वजह से हम धान कि खेती नहीं कर पाते हैं।”
आगे बताते हैं कि कद्दू की बुवाई के लिए हम अपने खेतों में 12 -12 फीट की दूरी पर नाली बनाते हैं नाली की दोनों सतह पर 12-12 इंच की दूरी पर कद्दू के बीज बो देते हैं, इसकी खेती के लिए ज्यादा पानी और ज्यादा खाद की आवश्यकता नहीं होती नाली में बरसाती कद्दू की बुवाई करने के कारण कम मात्रा में खाद का इस्तेमाल होता है और लागत भी कम हो जाती है।
एक एकड़ में अधिकतम 15 से 18 हजार रुपए की लागत आती है और एक एकड़ में कद्दू का उत्पादन लगभग 120 कुंतल तक हो जाता है, जिसका भाव निश्चित तो नहीं होता है लेकिन 10 रुपए किलो से लेकर 15 रुपए तक बाजारों में आराम से बिक जाता है, जिससे एक लाख से लेकर डेढ़ लाख तक शुद्ध मुनाफा होने की उम्मीद रहती है।