लखनऊ। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम पर बड़ी संख्या में प्रदेश के ऐसे किसान हैं, जिनको बीमा के नाम पर फसल का नुकसान होने पर भगुतान नहीं मिला, वहीं बीमा कंपनियां मुनाफा बटोर रही हैं।
प्रदेश के मुरादाबाद, बिजनौर और मुजफरनगर में गंगा और सोनाली नदी के खादर के किसानों ने योजना के तहत अपनी फसल का बीमा कराया। बारिश के कारण यहां के किसानों की जब हजारों एकड़ गन्ने की फसल नष्ट हो गई तो पता चला कि बीमा कंपनियों ने गन्ने की फसल की जगह धान का बीमा करके किसान से प्रीमियम भी ले लिया और किसानों को बताया भी नहीं कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के खरीफ सीजन में गन्ना अधिसूचित नहीं है।
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झांसी के मथनपुरा गाँव के किसान रमेश कुमार बताते हैं, “मैंने उर्द और मूंग की फसलें बोई थी। बीज सरकारी खरीद केंद्र से खरीदे थे। अतिवृष्टि के कारण फसल खराब हो गई। केसीसी से ऋण लेते समय फसल बीमा का प्रीमियम काटा गया था, लेकिन बीमा कंपनी ने क्लेम का पैसा नहीं दिया।“
भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता धर्मेन्द्र मलिक बताते हैं, “प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों को नहीं, बल्कि मुनाफाखोर बीमा कंपनियों को लाभ मिल रहा है।“
ऐसे में किसान बीमा से अपनी फसल नुकसान का दावा लेने के लिए भटकते रहे। स्थिति यह है पिछले दो सालों में अभी तक बीमा कंपनियां किसानों के दावों का सही भुगतान कर रही हैं कि नहीं इसकी क्रास चेकिंग के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं हो पाई है।
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प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही बताते हैं, “योजना के लिए जिन बीमा कंपनियों को जिम्मा दिया गया है, उनमें गड़बड़ी की शिकायतें सामने आ रही हैं। ऐसे में उनके कामकाज की समीक्षा की जाएगी।”
उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के सांख्यिकी और फसल बीमा के निदेशक विनोद कुमार सिंह बताते हैं, “उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के खरीफ सीजन-2017-18 के लिए टाटा एआईजी, रिलायंस, एसबीआई, बजाज लाइफ इंश्योरेंस, यूनिवर्सल सोम्पो और न्यू इंडिया इंश्योरेंस को फसल बीमा करने जिम्मा दिया है।“
कृषि विभाग को अलग-अलग जिलों से जो रिपोर्ट मिली है, उसके मुताबिक इन कंपनियों के कामकाज को लेकर शिकायत मिल रही है। हालांकि बीमा कंपनियों के दबाव के आगे कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं है।
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महराजगंज जिले के ग्राम गांगी के किसान कमल किशोर बताते हैं, “पिछले खरीफ सीजन में धान की फसल का बीमा कराया था। बीमा कंपनी ने फसल बीमा तो काटा, लेकिन फसल बर्बाद होने पर भुगतान नहीं दिया। हमने कृषि विभाग और बैंक में शिकायत की, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। सरकार बीमा कंपनियों पर दबाव बनाए तो किसानों को बीमा की रकम मिल सकती है। हर बार किसानों से कृषि के बीमा का प्रीमियम लिया जाता है, लेकिन बीमा क्लेम जल्दी नहीं दिया जाता।”
बीमा कंपनियों ने ब्लाक और तहसील स्तर पर अपना कोई ऑफिस ही नहीं बनाया। ऐसे में किसान बीमा से अपनी फसल नुकसान का दावा लेने के लिए भटकते रहे। स्थिति यह है पिछले दो सालों में अभी तक बीमा कंपनियां किसानों के दावों का सही भुगतान कर रही हैं कि नहीं इसकी क्रास चेकिंग के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं हो पाई है।
स्वामीनाथन आयोग में काम कर चुके किसान नेता और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव अतुल कुमार अंजान ने बताया ‘’ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ किसानों को नहीं, बल्कि बीमा कंपनियों को मिल रहा है। सरकार इस योजना को किसानों पर थोपकर अपनी जिम्मेदारी से बच रही है। ‘’
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सिर्फ 15 फीसदी किसान ही योजना में आ सके
पीएम मोदी ने कहा था कि इस योजना से देश के 70 प्रतिशत से ज्यादा किसानों को जोड़ा जाएगा, लेकिन अधिकतर किसान वंचित हैं। उत्तर प्रदेश में 2 करोड़ 30 लाख किसान हैं, लेकिन पिछले खरीफ सीजन में इस योजना से मात्र 35.52 लाख किसानों की 33 लाख हेक्टेयर फसल का बीमा ही कराया गया। यानि लगभग 15.43 प्रतिशत किसान ही इस योजना में आ सके।
उत्तर प्रदेश कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बताया प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए जिन बीमा कंपनियां को जिम्मा दिया गया है, उनमें गड़बड़ी की शिकायतें सामने आ रही हैं। ऐसे में उनके कामकाज की समीक्षा की जाएगी।
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