लखनऊ। खरीफ सीजन के फसल बीमा कराने का आज आखिरी दिन है, लेकिन बड़ी संख्या में किसानों का बीमा नहीं हो पाएगा। लाखों किसान ऐसे भी हैं, जिन्होंने पिछले वर्ष बीमा कराया था, उन्हें मुआवजा नहीं मिल पाया है। जिसकी वजह बीमा कंपनियां और लेखपाल हैं।
उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर जिले के मूड़ीबसापुर गाँव के किसान दिनेश शर्मा (40 वर्ष) बताते हैं, “प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए इस साल अपनी धान की फसल का बीमा कराने के लिए खसरा सर्टिफिकेट के लिए लेखपाल को खोजता रहा, लेकिन अभी तक मुझे खसरा नहीं मिला।“
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पहले फसल का बीमा कराने और फिर कोई आपदा होने पर उसकी रिपोर्ट बनाने के लिए लेखपाल की रिपोर्ट जरूरी है। जब तक लेखपाल और बीमा कंपनी के अधिकारी ये रिपोर्ट नहीं देंगे, किसान की बर्बाद हुई फसल का उसे मुआवजा नहीं मिलेगा। लेकिन ये दस्तावेज (बुआई रिकॉर्ड और बर्बादी का ब्यौरा) वक्त पर नहीं मिलते। प्रदेश में लेखपालों की संख्या कम है और काम का बोझ ज्यादा। नाम न बताने की शर्त पर एक लेखपाल ने खीजते हुए कहा, “काम ज्यादा हैं, लेखपाल सारे काम कैसे कर डाले। नाली और खेत के बंटवारे से लेकर कर्ज और फसल बीमा तक हमें ही करना है, तो एक बार में क्या-क्या करें।“
पिछले वर्ष खरीफ सीजन में 2 करोड़ 45 लाख किसानों का बीमा हुआ था और 9081 करोड़ का बीमा दिया गया। कंपनियों ने माना कि उन्हें 2884 करोड़ का प्रीमियम देना था, लेकिन कृषि मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि मार्च महीने तक सिर्फ 637 करोड़ का भुगतान हुआ।
उत्तर प्रदेश लेखपाल संघ के अध्यक्ष रविन्द्र नाथ त्रिपाठी ने बताया, “प्रदेश में लगभग 35 हजार लेखपाल हैं। एक लेखपाल के पास औसतन 6 राजस्व गाँव और डेढ़ से दो हजार खाते हैं। नियम के मुताबिक लेखपाल को एक-एक खेत में जाकर फसल का सर्वे रिपोर्ट बनानी होती है, जो एक आदमी के लिए संभव नहीं है।“
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मध्य प्रदेश के बिलासपुर में मुआवजे का इंतजार करते करते रामलाल नाम के किसान की मौत हो गई, तो हरियाणा में हजारों किसानों को पिछले वर्ष के गेहूं के मुआवजे का इंतजार है। देश के ज्यादातर हिस्सों में फसल बर्बादी की रिपोर्ट नियमत: लेखपालों को खेतों पर जाकर बनानी होती है, जिसके बाद मुआवजे की प्रक्रिया शुरू होती है। लेकिन,
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों और किसानों के बीच लेखपाल ही सबसे मजबूत कड़ी हैं। मौसम की अनिश्चिताओं और दैवीय आपदाओं से किसान की फसलों के नुकसान पर मिलने वाली राहत और मुआवजे के लिए किसानों को लेखपाल के भरोसे रहना पड़ता है। लेकिन बाढ़, सूखा, आगजनी या फिर रोग लगने पर बीमा कंपनी से मुआवजे के लिए जल्द से जल्द बर्बादी का आंकलन कराना होता है।
लेखपालों के खिलाफ अक्सर शिकायतें आती रहती हैं। यहां तक पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इन्हें कई विकास कार्यों में अड़ंगा बताया था। लेकिन लेखपालों की मानें तो उन्हें जमीन पर काम करने में कई दिक्कतें आती हैं। गोरखपुर के एक लेखपाल प्रभाकर विश्वकर्मा ने बताया, “भारतीय प्रशासनिक ढांचे में लेखपाल की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। इनके बिना कोई योजना जमीन पर नहीं उतरती। लेखपाल मानव आबादी, भूखंड, पशु गणना, फसल सर्वेक्षण और प्रकृतिक आपदा में हुए नुकसान के अंकन सहित कई कार्यों को अंजाम देते हैं, लेकिन लेखपालों की समस्याओं पर सरकार ध्यान नहीं देती है।“
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फसल कितनी बर्बाद हुई है, इसकी रिपोर्ट बनाकर लेखपाल आगे तहसील कार्यालय भेजते हैं और वहां से यह कई सरकारी विभागों से गुजरते हुए जिला अधिकारी कार्यालय पहुंचती है। इसके बाद संबंधित बीमा कंपनी और बैंक को क्लेम का भुगतान के निर्देश मिलता है। इस प्रक्रिया में इतना समय लग जाता है कि कभी किसान को समय से फसल बीमा का लाभ नहीं मिल पाता है।
गोरखपुर जिले के चौरीचौरा ब्लाक के सरदार नगर गाँव के 50 साल के किसान राधामोहन सिंह ने बताया, “पिछले रबी सीजन में गेहूं की फसल का बीमा कराया था। बिजली से गेहूं की फसल जल गई। फसल की बर्बाद की रिपोर्ट तैयार कराने के लिए लेखपाल का चक्कर काटता रहा, लेकिन समय से रिपोर्ट नहीं बनी, जिससे बीमा का क्लेम नहीं मिला।“
पिछले वर्ष बुंदेलखंड के ललितपुर में हजारों किसानों को बीमा इसलिए नहीं मिल पाया था क्योंकि वक्त पर बर्बादी की रिपोर्ट नहीं पहुंची थी, इसके लिए किसान संगठनों ने धरना प्रदर्शन भी किया था। राजस्व परिषद उत्तर प्रदेश के ग्राम सभाओं में रहने वाले किसानों की समस्याओं का जल्द से जल्द निपटारा हो सके। इसके लिए हर दो गाँव पर एक लेखपाल की नियुक्ति का फैसला साल 2017 में किया था, लेकिन इसको पूरा नहीं किया गया। उत्तर प्रदेश में राजस्व विभाग मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ के पास है, लेकिन लेखपालों की नियुक्ति संबंधी कोई आदेश अब तक जारी नहीं हुआ है।
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तब भी हजारों किसानों काे नहीं मिला था मुआवजा
पिछले वर्ष बुंदेलखंड के ललितपुर में हजारों किसानों को फसल बीमा इसलिए नहीं मिल पाया था क्योंकि वक्त पर बर्बादी की रिपोर्ट नहीं पहुंची थी, इसके लिए किसान संगठनों ने धरना प्रदर्शन भी किया था। इसके बाद राजस्व परिषद उत्तर प्रदेश की ओर से हर दो गाँव पर एक लेखपाल की नियुक्ति का फैसला साल 2017 में किया था, लेकिन इसको पूरा नहीं किया गया।
उत्तर प्रदेश लेखपाल संघ के अध्यक्ष रविन्द्र नाथ त्रिपाठी ने बताया प्रदेश में लगभग 35 हजार लेखपाल हैं। एक लेखपाल के पास औसतन 6 राजस्व गाँव और डेढ़ से दो हजार खाते हैं। नियम के मुताबिक लेखपाल को एक-एक खेत में जाकर फसल का सर्वे रिपोर्ट बनानी होती है, जो एक आदमी के लिए संभव नहीं है।
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