आलू की विकसित हुई नई किस्म, 65 दिनों में ही हो सकता है बंपर उत्पादन

आलू को करीब हर देश अपना समझता है; खाद्य इतिहासकार जहाँ इसे सबसे सफल प्रवासी मानते हैं, वहीं बाज़ार में बरक़रार इसकी लोकप्रियता ने इसे कई रंग और आकर दे दिया है। कृषि वैज्ञानिकों ने आलू की एक नई किस्म विकसित की है जो देखने में गुलाबी है और पौष्टिक भी।
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हाल में आलू की एक नई किस्म विकसित हुई है। आलू प्रौद्योगिकी संस्थान शामगढ़ द्वारा नई किस्म का विकास हुआ है जो 65 दिनों में ही बंपर उत्पादन देगी।

कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह किस्म पोषण से युक्त है और इसमें अच्छी पैदावार की क्षमता भी है।

यह किस्म 60 से 65 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म को एरोप्लेनिक तकनीक के द्वारा उगाया जा सकता है। यह किस्म फिलहाल बाजार में उपलब्ध नहीं है, क्योकि अभी इस किस्म का ट्रायल चल रहा है।

फिलहाल आलू की नई किस्म को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब के किसानों के लिए तैयार किया गया है।

क्या है इसकी खेती में खास

इस नई किस्म को खेतों में नहीं उगा सकेंगे क्योंकि इसके लिए ना तो मिट्टी की ज़रूरत होगी ना ज़मीन की। इसे एरोप्लेनिक तकनीक के माध्यम से श्यामगढ़ के आलू प्रयोग के संस्थान में उगाया जा रहा है।

आलू की यह किस्म कुफरी किस्म से कुछ अलग है। इस किस्म के लिए कोकोपीट का इस्तेमाल नहीं होता है। वही इस आलू का कलर भी गुलाबी रंग का होता है। इसकी क्षमता दूसरी किस्म के मुकाबले अधिक है। आलू की इस किस्म से पैदावार भी चार से पाँच गुना अधिक होगी।

फ़िलहाल कुफरी ऐसी किस्म है जिसकी वजह से आलू उत्पादन में नंबर वन बना हुआ है। इस किस्म को तैयार होने में 90 से 100 दिन लगते हैं। दूसरी किस्म के मुकाबले इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल तक होता है। ज़्यादा उत्पादन की वजह से यह किस्म किसानों की पसंदीदा किस्म है।

चिप्स कंपनियों में रंगीन आलू की माँग

चिप्स कंपनियों में रंगीन आलू की माँग बढ़ रही है। हालही में आगरा में आलू उत्पादकों के लिए इंटरनेशनल बायर-सेलर मीट का आयोजन किया गया। इसमें देशभर के आलू के चिप्स और आलू प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों ने भी हिस्सा लिया है।

सम्मेलन में किसानों द्वारा आलू की रंग-बिरंगे किस्म का भी प्रदर्शन किया गया। आने वाले समय में अब पीले के साथ-साथ हरे रंग के आलू भी किसान के खेतों से उगेंगे। ऐसे आलू की चिप्स बाजार में काफी माँग है।

खाद्य इतिहासकारों का मानना है कि आलू के पोषक गुणों ने पारंपरिक लोगों को इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया है। यही वजह है कि एशिया यूरोप हर जगह किसानों ने आलू को अपनाया।

आलू की खेती सबसे पहले पेरू की राजधानी लीमा से क़रीब 1,000 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में टिटिकाका लेक के पास शुरू हुई थी; और देखते ही देखते आलू पूरी दुनिया में फ़ैल गया। कहते हैं भारत में आलू पहली बार सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप से आया।

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