स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
इलाहाबाद। फसलों में कीट लगने से फसलों की पैदावार कम हो जाती है, जिससे किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। फसलों को कीट से बचाने के लिए कृषि रक्षा अधिकारी की ओर से बचाव और सावधानियों की जानकारी दी जाती है।
जिला कृषि रक्षा अधिकारी इंद्रजीत यादव ने बताया, “धान की फसल में जड़ की सूड़ी कीट रोग क्षेत्र में जल का अधिक भराव रहता है, वहीं पर इस कीट का अधिक प्रकोप होता है। जड़ की सूड़ी (रूट बिबिल) कीट चावल के आकार के होते हैं। जो पौधों के जड़ों में पाए जाते हैं।”
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ये कीट जड़ो और मुख्य तने के रसों को चूसकर पौधे को सुखा देता है, जिसके कारण पौधे मृतप्राय हो जाते हैं।
कृषि रक्षा अधिकारी आगे बताते हैं, “किसान भाई इसके बचाव के लिये पानी का निकास करें और कार्वोफ्यूरान 3जी 18-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या क्लोरोपायरीफास 2.500-3.000 लीटर प्रति हेक्टेयर एवं कारटाप हाइड्रोक्लोराइड चार प्रति दानेदार रसायन 17-18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।”
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इसके अलावा धान की फसल में तना बेधक रोग पाया जाता है, इस कीट की सूड़ियां ही हानिकारक होती है। पूर्ण विकसित सूड़ी हल्के पीले शरीर वाली तथा नारंगी पीले सिर वाली होती है। इसके आक्रमण के फलस्वरूप फसल की वानस्पतिक अवस्था में मृत गोभ तथा बाद में प्रकोप होने पर सफेद बाली बनती है।
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इसके बचाव के लिये किसान पांच प्रतिशत मृत गोभ अथवा एक अण्डे का झुण्ड वानस्पतिक अवस्था में तथा एक पतंगा वर्ग मीटर बाल निकलने की अवस्था में दिखाई पड़ने पर कारटाप हाइड्रोक्लोराइड चार प्रति दानेदार रसायन के 17-18 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग लाभकारी है जो एक सुरक्षित रसायन भी अथवा 1.500 ली0 नीम आयल प्रति हेक्टेयर की दर से 800 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।
धान की फसल को अन्य फसलों की अपेक्षा कीट लगने की संभावना अधिक रहती है इस वजह से इस पर अधिक निगरानी की जरूरत होती है। धान की फसल पर राख का छिड़काव भी बहुत लाभप्रद रहता है। किसी भी फसल पर कम से कम रसायन का उपयोग करना चाहिए।
इंद्रजीत यादव, जिला कृषि रक्षा अधिकारी, इलाहाबाद