लखनऊ। खेती-किसानी का रीढ़ माने जाने वाला बैल आज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है। खेतों की जुताई और मड़ाई में ट्रैक्टर की और दूसरी मशीनों के बढ़ते इस्तेमाल ने बैल को बेकाम कर दिया है। इसका नतीजा ये है कि बैल तस्करों के निशाने पर आकर बूचड़खानों में पहुंचने लगा। बैलों की उपयोगिता बढ़ाने और उनके संरक्षण के लिए बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि में भारत की एक बहुराष्ट्रीय आटोमोबाइल कंपनी और तुर्की की कंपनी के साथ मिलकर बैलों से बिजली बनाने के प्रयोग में सफलता पाई है।
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कंपनी आने वाले समय में व्यवासियक रूप से बैलों के जरिए बड़ी मात्रा में बिजली बनाने की परियोजना पर काम कर रही है, लेकिन इससे पहले हरियाणा के हिसार जिले के लाडवा गांव में बैलो की मदद से बिजली का उत्पादन का काम सालों से सफलतापूवर्क किया जा रहा है। इस गांव में गोशाला चलाने वाले आनंदराज ने सालों पहले बैल से बिजली पैदा करने की इस योजना पर काम शुरू किया था।
उन्होंने बताया ” कई दशक पहले तक रहट के जरिए ही गांव में सिंचाई की जाती थी। ऐसे में मैंने कोल्हू के जरिए बिजली बनाने की परियोजना पर काम शुरू किया। ” आनंदराज ने बताया कि इसके लिए मैंने कोल्हू को चार गरारियों से जोड़ा और वियरिंग लगाकर इसकी गति को तेज किया। बैल जब कोल्हू को घुमाते हैं तो गियर घुमने लगता और उसके साथ लगा अल्टरनेटर घूमने लगता हे। अल्टरनेटर से डीसी वोल्ट पैदा होता है, जो उसके साथ लगी बेटरी को चार्ज करता है। बैटरी चार्ज होने के बाद इसके इनवटर्नर के जरिए एसी करंट में बदल लिया जाता है। इसमें साढ़े सात घंटे में छह बैलों के जरिए दस किलोवाट की बिजली मिली। इस पूरे प्रोजेक्ट में 50 हजार रुपए खर्च हुए।
हिसार की तरह ही ग्वालियर में भी बैलों और साड़ों के जरिए बिजली पैदा करने की योजना पर ग्वालियर नगर निगम काम कर रहा है। वहां के नोडल अधिकारी आवारा पशु प्रबंधन डाॅ. प्रदीप श्रीवास्तव ने बताया ”हमारी गोशाला में लगभग 1500 से अधिक सांड है। हम इनको कोल्हू के जरिए उपयोग करके बिजली पैदा करने के काम में लगाने की परियोजना पर काम कर रहे हैं। ” उन्होंने बताया कि देश के कई हिस्सों में जहां बैल के जरिए बिजली बनाने की परियोजना पर काम हो रहा है वहां का अध्ययन किया जा रहा है। वहां की तकनीक को अपनाकर यहां पर बिजली पैदा की जाएगी। जिससे बैल और सांडों की उपयोगिता बढ़ेगी।