अभी तक आपने गेहूं से बने पास्ता को खाया होगा, लेकिन जल्द ही आपको बाजरे से बना पास्ता खाने को मिलेगा, जो दूसरे पास्ता के मुकाबले ज्यादा पौष्टिक भी रहेगा। वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि गेहूं के पास्ता के मुकाबले बाजरे से बना पास्ता ज्यादा पौष्टिक होता है।
क्योंकि भूरे रंग का बाजरे का रंग ज्यादा आकर्षक नहीं होता है, ऐसे में वैज्ञानिकों इस रंग को हटाकर देखा तो पाया कि इससे इसकी पौष्टिकता में कोई कमी नहीं आयी है, यह पाया गया कि रंग को हटाने से पास्ता का रंग सुधार हुआ और यह लगभग गेहूं पास्ता की तरह दिखता था। इसमें ये भी देखा गया कि बाजरा और गेहूं-बाजरा से बना पास्ता गेहूं से बने पास्ता से अधिक पौष्टिक होता है।
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सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट-हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (केन्द्रीय कटाई उपरान्त अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान) वैज्ञानिक कीर्ति जलगांवकर व मनोज कुमार महावर और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक एस के झा ने ये अध्ययन किया है।
केन्द्रीय कटाई उपरान्त अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. कीर्ति जलगांवकर बताती हैं, “कई महीनों के शोध के बाद हमने देखा कि गेहूं के मुकाबले बाजरे से बना पास्ता ज्यादा पौष्टिक होता है अभी और शोध बाकी हैं, जिसके बाद बाजरा से बना पास्ता मार्केट में आ सकता है।”
वैज्ञानिकों ने बाजरा को हाइड्रोक्लोरिक एसिड में भिगोकर भूरे रंग को हटा दिया गया, हाइड्रोक्लोरिक एसिड का प्रयोग आमतौर पर खाद्य उद्योग में होता है, तो इससे कोई नुकसान नुकसान भी नहीं होता है। ये भूरा रंग पॉलीफेनॉल की वजह से होता है, जो कम पीएच के प्रति संवेदनशील होते हैं।
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इस अध्ययन में बाजरे के मूल रूप और रंग हटाने के बाद पौष्टिकता को देखा गया, दोनों में कोई अंतर नहीं था। इसके बाद चार तरह के गेहूं, बाजरा, रंगहीन बाजरा और गेहूं-बाजरा से पास्ता बनाए गए। इसमें कई तरह अनाज को शामिल किया गया था। इसके बाद उनकी पौष्टिकता, पकने के बाद की गुणवत्ता और रंग की तुलना की गई।
इसके बाद इसमें पाया गया कि बाजरा से बने पास्ता में प्रोटीन, वसा जैसे तत्वों की मात्रा गेहूं से बने पास्ता के तुलना में अधिक थी। लेकिन दूसरों की तुलना में गेहूं पास्ता में खाना पकाने के गुण और बनावट बेहतर थीं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गेहूं में ग्लूटेन होता है जो पास्ता को एक बांधे रखता है, जिसके परिणामस्वरूप बेहतर स्थिरता और खाना पकाने के दौरान नुकसान कम हो जाता है। (इंडिया साइंस वायर)