जुलाई महीने में खरीफ़ फसलों की ख़ेती ज़ोर शोर से चलती है, ऐसे में उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद ने किसानों के लिए ज़रूरी सलाह जारी की है।
अगर धान की खेती के लिए बीज़ शोधित न हो तो बुवाई से पहले 4-6 ग्राम प्रति किग्रा. बीज़ की दर से ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें।
मानसून की असामान्य रफ़्तार होने के कारण यदि नर्सरी की बुवाई अभी तक नहीं हो सकी है तो कम अवधि वाली संस्तुत किस्मों जैसे बरानी द्वीप, शुष्क सम्राट, नरेंद्र-लालमती, मालवीय धान-2, मालवीय धान-917, शियाट्स धान-5, सीओ-51, आई आर-50, रत्ना तथा ऊसर के लिए संस्तुत प्रजाति सीएसआर-60 की नर्सरी डालें।
श्री विधि से एक हेक्टेयर में धान रोपाई के लिए मात्र 1000 वर्ग फुट क्षेत्रफल की पौध पर्याप्त है और नर्सरी की क्यारियाँ 4-5 इंच ऊँची हों। श्री पद्धति के लिये 6 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से बीज़ की नर्सरी में बुआई करें। श्री विधि की नर्सरी में जहाँ तक संभव हो देशी खाद का ही प्रयोग करें और 8-12 दिन वाली पौध की रोपाई करें।
मृदा जनित रोगों के नियंत्रण 10 किग्रा. गोबर की खाद में 2 किग्रा. ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाकर 2-3 दिन रखने के बाद खेत में डालें।
आगामी सप्ताह में आकाशीय बिजली की संभावना को देखते हुए किसान सावधानी बरतें।
नर्सरी में खैरा रोग का प्रकोप होने पर 5 किग्रा. जिंक सल्फेट को 2.5 किग्रा. यूरिया के साथ 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें, उसके बाद अगर लक्षण दिखाई दे तो 10 से 15 दिन बाद फिर छिड़काव करें।
जिन किसानों ने अभी तक नर्सरी नहीं डाली है वह धान की सीधी बुवाई करें। ड्रम सीडर द्वारा धान की सीधी बुवाई के लिए नरेन्द्र-97, मालवीय धान-2, नरेन्द्र-359 और सरजू-52 की बुवाई 50 से 55 कि.ग्रा. बीज़ प्रति हेक्टेयर की दर से करें।
नर्सरी में पर्ण झुलसा का प्रकोप होने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 75 ग्राम या एग्रीमाइसिन-100 (100 ग्रा.) के साथ कॉपर आक्सीक्लोराइड 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
मक्का की ख़ेती के ज़रूरी काम
मक्का की मध्यम अवधि की संकर किस्मों दकन-107, मालवीय संकर मक्का-2, प्रो-303 (3461), के.एच.-9451, के.एच.-510, एम.एम.एच.-69, बायो-9637, बायो-9682 और संकुल प्रजातियों नवजोत, पूसा कम्पोजिट-2, श्वेता सफेद, नवीन की बुवाई करें। पूर्व से बोये गये मक्का में जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करें।
श्री अन्न की ख़ेती
ज्वार की संकुल किस्मों जैसे एसपीबी-1388 (बुन्देला), सीएस.बी.-15, वर्षा विजेता व सीएसबी-13 और संकर प्रजातियों सीएसएच-23, सीएसएच-13, सीएसएच-18, सीएसएच-14, सीएसएच-9, सीएसएच-16 सावां की किस्मों आईपीएम-151, आईपी-149, यूपीटी-8, आईपीएम-100 आईपीएम-148 आईपीए.-97 और कोदों की किस्मों में जीपीवीके-3, एपीके-1, जेके-2, जेके-62, वम्बन-1 व जेके-6 की बुवाई करें।
अरहर की ख़ेती
अरहर की अधिक उपज के लिए उन्नत देर से पकने वाली किस्मों जैसे मालवीय चमत्कार, नरेन्द्र अरहर-2, बहार, अमर, नरेन्द्र अरहर-1, आजाद, पूसा-9, मालवीय विकास (एम.ए.6), टा-64, टा-28, चन्द्रा, उत्कर्ष, एम-13, अम्बर, चित्रा, कौशल, टी.जी.-37ए और प्रकाश की बुवाई करें यथायंभव मेड़ों पर ही बुवाई करें।
तिल की ख़ेती
तिल की उन्नतशील किस्मों जैसे गुजरात तिल-6, आर.टी.-346, आर.टी.-351, तरुण, प्रगति, शेखर टाइप-78, टाइप-13, टाइप-4 व टाइप-12 की बुवाई करें। फाइलोडी रोग से बचाव के लिए बुवाई के समय फोरेट 10 जी 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
मूँगफली की ख़ेती
मूँगफली की उन्नतशील किस्मों चन्द्रा उपहार, उत्कर्ष, एम-13, अम्बर, चित्रा (एम.ए.10), कौशल (जी.201), टी.जी. 37ए, प्रकाश की बुआई जुलाई प्रथम सप्ताह तक पूरी कर लें। इसके बाद बुआई करने पर फ़सल में बड नेक्रोसिस बीमारी लगने की संभावना होती है।
गन्ना की ख़ेती
गन्ना में चोटी बेधक के प्रभावी नियंत्रण के लिये फ्यूराडान 1 किग्रा. (सक्रिय तत्व) या क्लोरेंटेन्लीप्रोल 375 एम.एल. प्रति हे. की दर से खेत में पर्याप्त नमी की अवस्था में प्रयोग करें। चूसक कीट का प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. का 200 एम.एल./हे. छिड़काव करें। लाल सड़न बीमारी के लक्षण दिखने पर प्रभावित पौधों को जड़ सहित निकाल कर 10-20 ग्राम ब्लीचिंग पाऊडर या 0.2 प्रतिशत थायोफेनेट मिथाइल की जड़ों के पास ड्रेसिंग करें। शरदकालीन गन्ने में पोक्काबोइंग रोग दिखने पर 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम अथवा 0.2 प्रतिशत कापर आक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें।
सब्ज़ियों की ख़ेती
खरीफ़ सब्ज़ियों जैसे बैंगन, मिर्च और फूलगोभी की अगेती किस्मों की नर्सरी में बुआई करें। नर्सरी को कीटों से बचाने के लिए लो-टनल पॉलीहाउस का प्रयोग करें तथा ऊंची बेड पर ही नर्सरी डालें। नर्सरी में जल निकास की उचित व्यवस्था करें। भिन्डी, लोबिया की बुवाई करें। हल्दी और अदरक की बुवाई जून में ख़त्म करें। नये बागों में भी इनकी बुआई की जा सकती है। वर्षाकालीन सब्ज़ियों जैसे लौकी, तोरई, काशीफल और टिण्डा की बुआई करें।
बागवानी
आम के बागों में फल मक्खी की संख्या जानने और उसके नियंत्रण के लिए कार्बरिल 0.2 प्रतिशत, प्रोटीन हाइड्रोलाइसेट या सीरा 0.1 प्रतिशत या मिथाइल यूजीनाल 0.1 प्रतिशत, मैलाथियान 0.1 प्रतिशत के घोल को डिब्बों में डालकर पेड़ों पर ट्रैप लगायें। पौध प्रवर्धन के लिए आम में ग्राफ्टिंग का काम करें।
पशुपालन
लम्पी स्किन रोग (एलएसडी) एक विषाणु जनित रोग है, जिसकी रोकथाम के लिए पशुपालन विभाग द्वारा टीकाकरण प्रोग्राम चलाया जा रहा है। सभी कृषक/पशुपालक अपने नज़दीकी पशु चिकित्सालय से सम्पर्क कर इसकी रोकथाम संबंधी उपाय और टीकाकरण की जानकारी ले सकते हैं।
बड़े पशुओं में गला घोटू बीमारी की रोकथाम के लिए एच.एस. वैक्सीन और लंगड़ी रोग की रोकथाम के लिए वी.क्यू. वैक्सीन से टीकाकरण करवायें।
पशुओं को खुले में न बांधे क्योंकि आकाशीय बिजली के ख़तरे से पशुओं को शारीरिक नुकसान हो सकता है। पशुओं को ऊँचे स्थान पर बांधें।
मत्स्य पालन
निगम की हैचरियों पर मत्स्य बीज़ उपलब्ध है। इसलिए सभी मत्स्य पालक अपने तालाबों में मत्स्य बीज़ संचय करने के लिए तैयारी पूरी कर ले और मत्स्य बीज़ का मॉग पत्र जनपद स्तर पर मत्स्य विभाग कार्यालय में जमा कर दें।
जिन तालाबों में मछलियॉँ हैं इनमें पहली बारिश का पानी आने से मछलियों की मृत्यु की संभावना रहती है, इसलिए ऐसे मत्स्य पालक जिनके तालाबों में आबादी का गन्दा पानी आता है वह 250 किग्रा./हे. की दर से बुझा चूना का छिड़काव कर दें। तालाब में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए आक्सीफ्लों पहले से क्रय कर अपने पास रख लें ताकि समय से इसका इस्तेमाल किया जा सके।