कुछ साल पहले लखनऊ के मोहनलालगंज ब्लॉक के गाँवों में पचासों पान के बरेजा दिखायी देते थे। लेकिन अब वहां कुछ ही बरेजा दिखायी देते हैं। सूखे का असर पान की खेती पर भी दिखने लगा है। अगर ऐसा ही रहा तो कुछ साल में एक भी किसान पान की खेती नहीं करेंगे।
लखनऊ के मोहनलालगंज ब्लॉक के निगोहां, बैरीसाल, नगराम, पल्हरी और समेसी जैसे आधा दर्जन गाँवों में पान की खेती बड़ी मात्रा में होती थी। पहले गाँव के बाहर तालाबों के आसपास के मिट्टी के टीलों पर पान के बरेजा ही दिखायी देते थे। यहां के लोगों के मुख्य व्यवसाय ही पान की खेती था, लेकिन पान की खेती में बढ़ते खर्च ने अब किसानों की कमर तोड़ दी है।
मोहनलालगंज ब्लाक के समेसी गाँव के किसान देवेन्द्र चौरसिया (35 वर्ष) बताते हैं, ”पहले मेरे गाँव में ज्यादातर लोग पान की खेती करते थे, अब कुछ ही लोग पान की खेती कर रहे हैं। पान की खेती में मुनाफा न होने से अब कोई पान की खेती करना ही नहीं चाहता है।”
पान की बेलें मार्च-अप्रैल के महीने में लगायी जाती हैं और दो महीने में फसल तैयार हो जाती है। लखनऊ से पान बनारस जाते हैं। पान के बाजार के बारे में देवेन्द्र चौरसिया कहते हैं, ”बनारस में मुलायम पान बिकते हैं और लखनऊ में कड़े पान बिकते हैं, इसलिए हम लोग पान बनारस ही ले जाते हैं।”
पान के एक बरेजा की मरम्मत में ही पचास से साठ हज़ार तक खर्च हो जाता है। समेसी गाँव के ही पास के गाँव बैरीसाल गाँव के किसान हरिश्चन्द्र चौरसिया (50 वर्ष) ने भी पान का बरेजा लगाया है। वो बताते हैं, ”तीस हजार रुपए में तो पान ही लगाया गया है और तीस हजार रुपए का बांस और दूसरे सामान लगे हैं। इतनी महंगाई हो गयी है कि पान की खेती का खर्च निकालना भी मुश्किल हो जाता है।” वो आगे बताते हैं, ”पान लगाने के लिए जब खरीदा था तब 300 रुपए में एक ढोली ( 200 पान) मिली था, वही पान जब हमारे यहां हो जाता है तो बाजार में बहुत कम दाम में बिकता है।”
भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार सन 2000 में देशभर में पान का कारोबार करीब 800 करोड़ का था। पिछले दशकों में इस कारोबार में 50 फीसदी से भी ज़्यादा की कमी आई है। पानी का अभाव पान की खेती में आई इस गिरावट की बड़ी वजहों में से है।
पान के बरेजा तालाबों के बगल ही लगाएं जाते हैं और पान की सिंचाई घड़े से दिन में दो बार करनी होती है। देवेन्द्र चौरसिया कहते हैं, ”मेरे बरेजा के बगल से नहर भी जाती है, जब तालाब सूखने लगते हैं तो नहर से तालाब में पानी भरा जाता है। कई ऐसे भी तालाब हैं जो नहर से दूर हैं वो सूख गए हैं। पान की खेती पानी के भरोसे ही चलती है।”
समेसी गाँव के सहदेव (57 वर्ष) ने पिछले दस वर्षों से पान की खेती करना छोड़ दिया है। सहदेव कहते हैं, ”अब लड़के पान की खेती नहीं करना चाहते हैं। वो लोग बाहर जाकर पान की गुमटी लगा लेंगे, लेकिन पान की खेती नहीं करेंगे। पान की खेती में इतनी मेहनत लगती है कि घर के सभी लोगों को इसमें लगना पड़ता है। मेरे तीन लड़के हैं लेकिन कोई मदद नहीं करना चाहता था, इसलिए अब खेती बंद कर दी है। हमारे गाँव में पहले 35-40 लोग पान लगाते थे, लेकिन अब सात-आठ लोग ही बचे हैं।”