लखनऊ। कपास की खेती के तैयार होने में लगने वाले अधिक समय और पानी की वजह इसकी खेती घट रही है, लेकिन केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर ने कपास की एक ऐसी नई किस्म विकसित की है जो मात्र 200 दिन में तैयार हो जाती है और इसमें बीमारियां भी नहीं लगती हैं।
”युगांक” नामक कपास की इस नई किस्म के बार में जानकारी देते हुए केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर के निदेशक डा. केशव राज क्रांति ने बताया ” हमारे संस्थान के वैज्ञानिकों ने 9 साल की मेहनत के बाद कपास की ऐसी वेराइटी को डेवलप किया है जो मात्र 100 दिन में तैयार हो जाएगी। अभी तक कपास की कपास को तैयार होने में 230 से लेकर 260 दिन लगते है।’’
डा. केशव ने आगे बताया कि मेरे 25 साल के कॉटन वैज्ञानिक के रूप में अभी तक का सबसे महत्वपूर्ण अनुसंधान है। कपास की इस किस्म से सूखे की मार झेल रहे विर्दभ और तेलांगना के किसानों के साथ ही उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में किसान इसकी अच्छी खेती कर पाएंगे।”
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डा. केशव राज क्रांति ने बताया कि दुनियाभर में कपास के बड़े उत्पादक देश आस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन और मेक्सिकों जैसे देशों में भी कपास की फसल 150 दिन में तैयार होती है, लेकिन भारत में इसकी खेती में बहुत समय लगता है। ऐसे में कपास की नई किस्म यहां के किसानों के लिए वरदान साबित होगी।
उन्होंने बताया कि केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान के क्राप इंप्रूवमेंट डिपार्टमेंट के वैज्ञानिक संतोष और धारवाड़ के प्रसिद्ध् कपास वैज्ञानिक एस.एस. पाटिल ने कपास की इस नई किस्म को विकसित करने में लगे थे। इसमें कपास किसानों के साथ नेटवर्क बनाकर काम किया गया। जिसका नतीजा है कि कपास की यह किस्म विकसित हो पाई है।
कपास की पूरी दुनिया में बढ़ती खपत के कारण इसे श्वेत स्वर्ण के नाम से जाना जाता है। इस नगदी फसल की खेती करके किसान आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में कपास की खेती लगातार घट रही है। स्थिति यह है कि इस प्रदेश में कभी 5 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती होती थी जो घटकर अब मात्र 14 हजार हेक्टेयर ही रह गई है। उतर प्रदेश में लगभग 5 लाख रूई गांठ की आवश्यकता हर साल होती है। ऐसे में प्रदेश में कपास उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत है। जिसमं कपास की नई किस्म युगांक उत्तर प्रदेश में कपास की खेती को बढ़ावा देने में काम आ सकती है।
उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में पिछले कई सालों से पड़ता सूखा, गिरता भूमिगत जलस्तर, कपास की खेती को लेकर सरकारी उदासीनता के कारण प्रदेश में कपास की खेती घट गई है। स्थिति यह है प्रदेश के 18 मंडलों में से मात्र अलीगढ़ और आगरा मंडल में ही कपास की खेती हो रही है।
उत्तर प्रदेश के कृषि निदेशक ज्ञान सिंह ने बताया ” प्रदेश में कपास की खेती को बढ़ावा देने के लिए विभाग की तरफ से काम किया जा रहा है। भारत सरकार की तरफ से काटन टेक्नोलाजी मिशन की स्थापना, कपास की अच्छी किस्म और फसल सुरक्षा चक्र को अपनाकर किसान कपास की लाभकारी खेती कर सकते हैं।”
उत्तर प्रदेश में जायद सीजन की फसल कपास की बुआई अप्रैल के पहले सप्ताह से लेकर मई के आखिरी सप्ताह तक की जाती है। उत्तर प्रदेश के जो किसान कपास की खेती इस बार करना चाहते हैं उन्हें अभी से तैयारी करनी चाहिए।
कपास की खेती की जानकारी के लिए किसान केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर के वैज्ञानिकों से संपर्क कर सकते हैं। वैज्ञानिक किसानों को इस फसल से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी देंगे, यह कहना है कपास अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. केशव राज क्रांति का।