पान की खेती से किसानों का हो रहा मोहभंग, नई पीढ़ी नहीं करना चाहती खेती 

पान की खेती

वीरेन्द्र सिंह/राम गोपाल वर्मा, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

रामसनेहीघाट (बाराबंकी)। एक समय था जब यहां के ज्यादातर किसान पान की खेती किया करते थे, लेकिन अब एक दो किसान ही पान की खेती करते हैं, जिसका मुख्य कारण पान का सही मूल्य न मिल पाना।

जिलामुख्यालय से 32 किलोमीटर की रेहरिया गाँव विकास खन्ड बनीकोडर मे स्थित है। यहां के कई परिवार आज भी दादा परदादाओ के जमाने से पान की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन पान की खेती करने वाले किसानों की मानें तो खेती के लिए पर्याप्त पूंजी के अभाव में अब वे अपनी परम्परागत खेती छोड़कर नई पीढ़ी दिल्ली और मुम्बई में मजदूरी करने के लिए जाने पर मजबूर हो रहे हैं।

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उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिला पान की खेती के लिये तहसील रामसनेहीघाट छेत्र के बनीकोडर का इलाका काफी मशहूर है। इसमें भी बनारस और महोबा के पान की जानी मानी प्रजातियां की पौध को मंगाकर यहां खेती किया जा रहा है। पान की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि सरकार का सहयोग नहीं मिल रहा है। पान की खेती को बचाने के लिए की गई सरकार कई घोषणाओं के बावजूद इसमें सुधार नहीं हो रहा है

रेहरिया गाँव के किसान विक्रम (48 वर्ष) बताते हैं, “इस खेती को सुधारने के लिए जो घोषणाएं होती रहती हैं। लेकिन हम पान किसानों के पास अभी तक नहीं पहुंची हैं। न हम लोगो को किसी प्रकार से सरकार से अनुदान मिलता है और न नई तकनीक से खेती करने के गुर बताए जाते हैं हम लोग अब भी पुराने तौर तरीकों से खेती करते है जिससे अब सही उत्पादन का कम होता है।

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जिसके कारण पान उत्पादित व सही मूल्य नहीं मिल पाता है, जिसे बेचने के लिये फैजाबाद जाना पड़ता है फैजाबाद में पान की छोटी मंडी लगती है और पान की बड़ी मंडी बनारस मे लगती है लेकिन दूर होने के कारण बनारस न जा करके फैजाबाद की मंडी करते हैं यहीं पर पान बेचते हैं।

रेहरिया गाँव के एक पान उत्पादक राम प्रकाश (50 वर्ष) ने बताया, “पान की खेती करने वाले किसानों ने गुटखा को लेकर काफी विरोध जताया। इसके लिए गांधीवादी तरीका अपनाया गया। इसके तहत दुकान से गुटखा खरीदने वाले को मुफ्त में पान के एक दर्जन पत्ते दिए जाते थे, लेकिन विरोध की यह आवाज भी दबकर रह गई।”

पान की खेती कैसे होती है इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया, “पान बेहद नाजुक होता है। इसकी खेती घासफूस व लकड़ी के बनाए गए छज्जे के अंदर होती है। इसकी सिंचाई में काफी मेहनत करनी पड़ती है। किसान छेद किए हुए घड़े में पानी भरकर छज्जे के भीतर सिंचाई करते हैं। गर्मी के दिन में कम से कम तीन से चार बार यह प्रक्रिया चलती है। ठंडी एक से तीन बार किया जाता है।

जब विक्रमा चौरासिया उम्र 49 निवासी रेहरिया से बात हुई तो बताया कि पान की खेती के बारे पूछा तो बताया कि प्रति एक बीघा मे भीट बनाने मे बांस से लेकर सेंठा पूरी भीट तैयार करने मे पचास हजार रुपए का खर्च लगता है। बताया इस समय शीतलहर का सबसे ज्यादा प्रभाव पान की खेती पर हुआ है।

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ठंड से पान के पत्ते काले पड़ गए हैं और बेजान हो गए हैं, जिसमे भुन्गी नाम का कीड़ा पैदा हो गया है जो पान के पेड़ों की नर्म पत्तियों को खाते हैं लताओं का विकास नही हों पाता है जो एक प्रकार से रोग है।जानकारी के आभाव मे पान की खेती मे लगने वाले रोगों का उपचार सही तरीके से नहीं हो पा रहा है ।

लोग रोग के उपचार के लिये रोग ग्रसित पेड को लेकर बीज भन्डार की दुकान पर दिखाकर दवा ले आते हैं। वही पुरसोत्तम (32 वर्ष) बताते कि आज भी हम लोग पान के एक-एक पत्ते तोड़ते और फिर घर लाकर यह देखा जाता है कि उसमें दाग तो नहीं है। यह काम काफी कठिन होता है।”

कोटवा सड़क से सटे सनौली गाँव के एक पान उत्पादक किसान पांचू लाल (53 वर्ष) ने बताया, “आज से करीब 10 वर्ष पहले एक हजार एकड़ में पान की खेती होती थी, लेकिन अब यह केवल 50 एकड़ तक सिमट कर रह गई है। पान की खेती करने वाले किसानों को सरकार की ओर से किसी तरह की मदद नहीं मिलती, जो चिंतनीय है।”

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“बनारसी तथा महोबिया पान के उत्पादक बासदेव चौरासिया (50 वर्ष) ने बताया कि क्षेत्र में पहले कई सौ एकड़ में पान की खेती होती थी, जो अब केवल 30 एकड़ में सिमट कर रह गई है। उनका पूरा परिवार पहले चार एक़ड में पान की खेती करता था, लेकिन अब एक एक़ड में ही खेती हो पाती है। विनोद चौरासिया ने बताया कि पान की खेती साथ परवल करेला तोरई कुंदरू की खेती सहफसली के रूप साथ साथ समय पर करते हैं, जिससे पान की खेती मे हुये नुकसान की भरपाई कर लेते हैं।

कारोबार में 50 प्रतिशत से ज्यादा की कमी

भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, सन 2000 में देशभर में पान का कारोबार करीब 800 करोड़ का था। पिछले दशकों में इस कारोबार में 50 फीसदी से भी ज़्यादा की कमी आई है। पानी का अभाव पान की खेती में आई इस भारी गिरावट की बड़ी वजहों में से है। जो खेती कभी महोबा के लोगों को अच्छा ख़ासा मुनाफा देती थी, आज वो घाटे का सौदा बन कर रह गई है। जो लोग खेती कर भी रहे हैं वो इसे किसी बड़े जुए की तरह मानते हैं।

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