लखनऊ। कतरनी चावल, जरदालू आम और मघई पान के बाद अब बिहार की शाही लीची को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल गयी है। बौद्धिक संपदा कानून के तहत शाही लीची को अब जीआई टैग (जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन) मिल गया है। इस उपलब्धि के बाद शाही लीची एक ब्रांड के रूप में पहचाना जाएगा।
लीची की प्रजातियों में ऐसे तो चायना, लौगिया, कसैलिया, कलकतिया सहित कई प्रजातियां है परंतु शाही लीची को श्रेष्ठ माना जाता है। यह काफी रसीली होती है। गोलाकार होने के साथ इसमें बीज छोटा होता है। स्वाद में काफी मीठी होती है। इसमें खास सुगंध होता है।
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बिहार लीची उत्पादक संघ ने शाही लीची के जीआई टैग के लिए जून 2016 में आवेदन दिया था। जीआई रजिस्ट्री कार्यालय की ओर से देश के हर संगठन से शाही लीची पर अपना दावा ठोकने का आवेदन मांगा गया था साथ ही 90 दिनों का समय भी दिया गया। लेकिन किसी संगठन ने शाही लीची को जीआई टैग दिए जाने पर आपत्ति नहीं जतायी।
मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक विशालनाथ ने कहा “जीआई टैग मिलने से शाही लीची की बिक्री में नकल या गड़बड़ी की संभावनाएं काफी कम हो जाएंगी। हमारी मुहिम में प्रदेश सरकार ने काफी मदद की। किसान जागरूक थे, उनके समूहों ने इसके लिए मेहनत की ताकि उनकी फसल को पहचान मिल सके। ऐसे में अब ऐसी संभावना है कि शाही लीची की पैदावार हो सकेगी।”
वहीं बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह ने बताया कि काफी परिश्रम के बाद बिहार की शाही लीची को जीआई टैग मिल गया है। उन्होंने बताया कि जीआई टैग देने वाले निकाय ने शाही लीची का सौ साल का इतिहास मांगा था। उन्होंने बताया कि कई साक्ष्य प्रस्तुत करने पर पांच अक्टूबर को शाही लीची पर जीआई टैग लग गया।
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बिहार सरकार के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 32 से 34 हजार हेक्टेयर में लीची का उत्पादन होता है। भारत में पैदा होने वाली लीची का 40 फीसदी उत्पादन बिहार में ही होता है। कुल 300 मिट्रिक टन से ज्यादा लीची का उत्पादन होता है। वहीं बिहार के कुल लीची उत्पादन में से 70 फीसदी उत्पादन मुजफ्फरपुर में होता है। मुजफ्फरपुर में 18 हजार हेक्टेयर में लीची की पैदावार होती है। जिसमें से शाही लीची का उत्पादन सबसे अधिक क्षेत्र में करीब 12 हजार हेक्टेयर में होता है।
क्या है जीआई टैग?
किसी क्षेत्र विशेष के उत्पादों को खास पहचान देने के लिए जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन (जीआई) दिया जाता है। जैसे चंदेरी की साड़ी, कांजीवरम की साड़ी, दार्जिलिंग चाय और मलिहाबादी आम समेत अब तक करीब 325 उत्पादों को जीआई मिल चुका है। भारत में जीआई टैग सबसे पहले दार्जिलिंग चाय को मिला था। इसे 2004 में जीआई टैग मिला था। महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर के ब्लू पोटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू, मध्य प्रदेश के झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे को जीआई टैग मिल चुका है।