शहद बिक्री के लिए बनाए गए नए नियम, मिलावट पर लगेगी रोक

नये मानकों से शहद उत्पादक किसानों को अपने उत्पाद की बेहतर कीमत हासिल करने में मदद मिलेगी।
#नरेन्द्र मोदी

नई दिल्ली। शहद में मिलावट पर रोक लगाने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने इसकी गुणवत्ता के नये मानकों को अधिसूचित किया है। इससे शहद उत्पादक किसानों को अपने उत्पाद की बेहतर कीमत हासिल करने में मदद मिलेगी।

भारत के राजपत्र में अधिसूचित नये मानकों के लागू होने से शहद में कॉर्न सीर, राइस सीर और इंवर्टेड सीर (गन्ने के सीरे से तैयार होने वाला सीरप) की मिलावट पर प्रभावी रोक लगेगी। ऐसे सीरप के मिलाने से शहद जमता नहीं है। वर्ष 1955 से अब तक लागू मानकों के तहत शहद में जैव प्रौद्योगिकी की मदद से ऐसे तत्वों को मिलाया जा सकता था और शहद से मिलते जुलते दिखने के कारण इनका आसानी पता नहीं चलता था लेकिन नए अधिसूचित मानकों के तहत अब ऐसी मिलावट नहीं की जा सकती।


राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के कार्यकारिणी सदस्य देवव्रत शर्मा ने बताया कि नई अधिसूचना से शहद उत्पादक किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य सुनश्चिति होगा जो वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रयासों के अनुरूप है और इससे मधुमक्खी पालक किसानों को काफी लाभ होगा।

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उन्होंने कहा कि नये मानदंडों की घोषणा करके सरकार ने मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के अपने वायदे को पूरा किया है। इससे शहद में मिलावट करने वालों पर प्रभावी रोक लगेगी। शहद के लिए जो नये मानदंड बने हैं उनमें शहद में आद्रता की मात्रा की सीमा को, जो पहले 25 प्रतिशत थी, घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है। इसके अलावा इसमें फ्रुकटोज (फलशर्करा) और ग्लूकोज (एफजी) अनुपात के संदर्भ में पहले के अधिनियम में कोई उच्चतम सीमा नहीं थी, जिसके कारण शहद में बाहरसे फुकटोज की मिलावट कर दी जाती थी और शहद नहीं जमता था।

भारतीय जनमानस में यह गलत फहमी रही है कि शहद नहीं जमता है। ऐसे में फ्रक्टोज की मिलावट करने वाले इसका फायदा उठाते रहे हैं लेकिन नये मानदंड में फ्रक्टोज और ग्लूकोज (एफजी) अनुपात की न्यूनतम और उच्चतम सीमा के निर्धारण हो जाने की वजह से अब मिलावट पर रोक लगने की संभावना है। शहद में होने वाली किसी तरह मिलावट का पता लगाने के लिए एक नये मानदंड यानि 13 सी (कार्बन 13) परीक्षण को जोड़ा गया है। संभावना है कि इससे लोगों को गुणवत्ता युक्त शहद उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी।

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नये अधिनियम में एक नये मानदंड को लाया गया है, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि शहद में मधुमक्खी की लार का उपयोग हुआ है या इसे फैक्टरी में मिलावट करके बनाया गया है। इसके जरिये शहद में मधुमक्खी की लार की उपस्थति का पता लगाया जा सकेगा। एफएसएसएआई ने रॉयल जैली और मुधमक्खी के छत्ते के मोम के मानक भी तय किए हैं। नये मानदंड के तहत शहद में सी-4 चीनी की उपस्थिति की सीमा सात प्रतिशत तय की गई है और इस सीमा से कम सी-4 चीनी की उपस्थिति होने पर ही उसे प्राकृतिक माना जायेगा। उक्त प्रमुख मानदंडों के कारण अब देश में गुणवत्ता युक्त शहद की उपलब्धता सुनश्चिति होने की और मधुमक्खीपालक किसानों को अपने उत्पाद का सही मूल्य मिलने की संभावना है।  

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