बुंदेलखंड के इन 5 गांवों में हर कोई सूखे से परेशान था, खेती में सिंचाई के लिए तो दूर पीने के पानी के लिए भी मुश्किलें थी। मगर सिर्फ एक पहल से इन गांवों के न सिर्फ किसानों की, बल्कि ग्रामीणों की जिंदगी बदल गई।
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले की मोहनगढ़ तहसील में ये गांव नंदनपुर, कोरिया, नदिया, वांगय और कांति हैं। इन गांवों के लोग हमेशा से कृषि और पशुपालन पर ही निर्भर रहे, मगर सूखे की मार से धीरे-धीरे यहां से लोगों का रोजी-रोटी के लिए शहरों की ओर पलायन शुरू हो गया।
नदिया गांव के किसान धरुआ बताते हैं, “मैंने साहूकार से कर्ज लेकर उड़द की खेती की थी, मगर पानी के अभाव में वह बर्बाद हो गई। अब मेरे पास इतना भी धन नहीं है कि मैं अगली खेती के लिए बीज खरीद सकूं।“ ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले साल इस क्षेत्र में सामान्य से 41 प्रतिशत कम बारिश हुई और लगभग 80 फीसदी मानसून आधारित फसल खराब हो गई।
इसे देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र में सूखा प्रभावित क्षेत्र घोषित कर दिया। ऐसे में इन पांचों गांवों में कुल 1023 परिवारों के लिए बड़े पैमाने पर कृषि संकट पैदा हो गया।
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फिर शुरू हुई एक पहल
इन गाँवों में बीते साल नवंबर माह में ‘सेव इंडियन फार्मर्स’ और ‘परमार्थ समाजसेवी संस्थान’ की ओर से एक परियोजना पर काम करना शुरू किया। दोनों संस्थाओं ने बुंदेलखंड में सूखे से बचाव के लिए परियोजना तैयार की, जिसमें ‘हीलिंग लाइव’ ने भी इस परियोजना में आर्थिक रूप से सहयोग दिया।
सबसे पहले पांचों गांवों में पांच समूह बनाए गए, जिसकी हर एक टीम ने गांव की पानी पंचायत के साथ मिलकर लोगों को सूखे से बचाव के लिए न सिर्फ जागरूक करना शुरू किया, बल्कि जल संरक्षण के लिए ग्रामीणों को एक साथ लेकर आए।
पांचों गांवों में बनाया गया बीज बैंक
दूसरी ओर कृषि संकट से निपटने के लिए गांवों की पानी पंचायत की मदद से पांचों गांवों में बीज बैंक की स्थापना की गई और किसानों को ऐसे बीज उपलब्ध कराए गए जो कि कम पानी में भी अधिक पैदावार दे सकें और जलवायु परिवर्तन के भी अनुकूल हों। इसके बाद गांवों में ऐसे किसानों को बीज वितरित किए गए, जो खरीद पाने में सक्षम नहीं थे। उनके सामने एक शर्त भी रखी गई कि जब उनकी पैदावार अच्छी होगी तो बीजों की कीमत के अनुरूप वे बीज बैंक में जमा करेंगे। ऐसे में किसानों को गेहूं, चना और जौ के कुल 66.55 किलो बीज बीज बैंक की ओर से वितरित किया गया।
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किसानों को सिखाई खेती की नई तकनीक
इतना ही नहीं, किसानों को खेती की तकनीक सिखाने के लिए पांचों गांवों में प्रशिक्षण उपलब्ध कराया गया। परंपरागत तरीके से खेती करते आ रहे इन किसानों को गेहूं गहनता प्रणाली और कम लागत में टिकाऊ कृषि करने का प्रशिक्षण मिला। हालांकि कई किसानों ने खेती में इन विधियों का इस्तेमाल डरते-डरते किया। इसके साथ ही किसानों को जैविक खेती करने के लिए जोर दिया गया।
इस बारे में नदिया गांव के किसान कैलाश बताते हैं, “मैंने नदिया के रहने वाले किसान मुकेश के खेत में इन विधियों के बारे में जाना और सीखा। इस विधि से कम बीजों में भी अच्छी पैदावार हासिल कर सकते थे, जो परंपरागत तरीके से खेती करने से भी बेहतर है। इसके अलावा लागत भी कम थी। ऐसे में मैंने भी इस विधि को अगली फसल के लिए अपनाया।“
घोषित कर दिया सूखा, फिर भी निकाला गया हल
इसी साल मध्य प्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र में मध्य प्रदेश सिंचाई अधिनियम के तहत सूखा घोषित कर दिया। इसके साथ ही तालाबों और पारंपरिक जल निकायों से सिंचाई पर रोक लगाई गई। इसलिए उन जल निकायों से सिंचाई नहीं हो सकती थी। ऐसी स्थिति में ‘सेव इंडियन फार्मर्स’ और ‘परमार्थ समाजसेवी संस्थान’ की ओर से सिंचाई के लिए कुओं को गहरा करने के लिए ग्राम पंचायत और जिला प्रशासन के साथ सिंचाई संकट के मुद्दे पर चर्चा की गई। इसके बाद गांवों में कुल 7 कुओं पर न सिर्फ गहरा कर पानी की व्यवस्था की गई, इसके साथ ही सामूहिक तरीके से पानी के उपयोग के बारे में किसानों के बीच एक समान समझ बनाने के प्रयास किए गए ताकि सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
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मनरेगा योजना से भी मिली मदद
इसके बाद मनरेगा योजना के जरिए गांवों में कुओं को गहरा करने के लिए काम शुरू किया गया। इससे न सिर्फ सूखा प्रभावित गांवों में सिंचाई की समस्या का समाधान हुआ, बल्कि जरुरतमंद लोगों को मनरेगा योजना को आय का श्रोत भी मिल सका। इतना ही नहीं, रोजी-रोटी के लिए गांव से लोगों का शहरों की ओर पलायन रोकने के लिए मनरेगा के तहत कई कामों को लेकर ज्ञापन भी दिया गया, ताकि लोग मनरेगा योजना का फायदा उठाकर गांव में ही काम कर सकें।
किचन गार्डेन को अपनाने पर दिया गया जोर
अपशिष्ट जल को उपयोग में लाने के लिए संस्थाओं की ओर से पानी पंचायत के साथ मिलकर गाँवों के लोगों को रसोई उद्यान को अपनाने को लेकर बढ़ावा दिया गया। वहीं, उभरते हुए सूखे के कारण इस क्षेत्र के खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर भी निराशा थी, ऐसे में ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए रसोई उद्यान को भी बढ़ावा दिया गया ताकि क्षेत्र की पोषण की गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके। इस पहल को गांवों में कई किसानों ने अपनाया, इससे बेहतर खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ आय बढ़ाने पर जोर मिला। इससे पानी और कचरे के पोषक तत्वों के रीसाइक्लिंग कर पर्यावरणीय लाभ में योगदान किया गया, साथ ही स्थानीय जैव विविधता को बनाए रखने या बढ़ाने और विविधता के माध्यम से जोखिम को भी कम किया जा सका। नंदनपुर, कांति और नदिया के 29 ग्रामीण परिवारों ने रसोई उद्यान को अपनाया।
सारे हैंडपंपों की कराई गई मरम्मत
गाँवों में ज्यादातर हैंडपंपों खराब पड़े हुए थे क्योंकि समय-समय पर उनकी मरम्मत नहीं की गई थी। ऐसे में दोनों संस्थाओं ने गांवों की पानी पंचायत के साथ मिलकर क्षेत्र में बेकार पड़े हैंडपंपों की मरम्मत का काम शुरू किया गया। सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए संस्थाओं और ग्रामीणों द्वारा युद्धस्तर पर कार्य किया गया। हैंडपंपों की मरम्मत के बाद पानी की स्थिति बेहतर हो सकी और गांवों के कई परिवारों को पानी के लिए अब भटकना नहीं पड़ा।
सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन, स्प्रिंकलर
सेव इंडियन फार्मर्स और परमार्थ समाजसेवी संस्थान की ओर से गांवों में किसानों को फसलों में सिंचाई के लिए बूंद-बूंद सिंचाई और स्प्रिंकलर सिंचाई के बारे में विस्तार से बताया गया, जिससे कम पानी में भी अच्छी फसल मिल सके। इसमें पानी पंचायत के सदस्यों ने भी बड़ी भूमिका निभाई। इतना ही नहीं, किसानों ने इन सिंचाई विधियों को अगली फसल के लिए भी अपनाने में सहमति जताई।
हाथों से हाथ मिले तो बनी बात
सेव इंडियन फार्मर्स, परमार्थ समाजसेवी संस्थान और हीलिंग लाइव जैसी संस्थाओं की इस परियोजना से बुंदेलखंड के इन सूखाग्रस्त गांवों में अब तक बर्बाद हो रही किसानों की फसलों को न सिर्फ खेती की नई विधियों से फायदा पहुंचने लगा, बल्कि पानी को महत्व को समझते हुए गांवों में जल संरक्षण को लेकर जागरूक हुए। बिना किसी भेदभाव के इन गाँवों के लोगों ने इस संकट से निपटने के लिए हाथ से हाथ मिलाकर काम किया और अब इन गांवों में सूखे की स्थिति बेहतर हो रही हैं।
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