स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
बेलहरा (बाराबंकी)। हरी मिर्च की खेती में नुकसान सहने वाले किसानों के लिए बरसाती लोबिया की फसल फायदेमंद साबित हो रही है। बाराबंकी जिले में बेलहरा ब्लॉक को मिर्च की खेती का गढ़ माना जाता है, लेकिन मिर्च की फसल में घाटा सहने वाले किसानों ने लोबिया की फसल में मुनाफा ढूंढ लिया है।
जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर उत्तर दिशा मे फतेहपुर ब्लॉक के बेलहरा के सन्तान मौर्य (45 वर्ष) कहते हैं, “लोबिया की खेती वैसे तो जायद और खरीफ दोनों सीजन में की जाती है, लेकिन हमारे यहां लोबिया की खेती खरीफ में ही होती है, क्योंकि जो मिर्च के किसान होते हैं वह मिर्च की खेती समाप्त होने के बाद लोबिया की बुआई कर देते हैं।”
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वो आगे बताते हैं, “मिर्च के खेत मे लोबिया का जमाव हो जाने के बाद जब पौधे बढ़ने लगते हैं, तो उन पौधों को मिर्च के पौधों के ऊपर चढ़ा दिया जाता है, जिससे उसको सहारा मिल जाता है और फसल खराब नहीं होती है व अच्छा उत्पादन मिलता है।”
वहीं बेलहरा के ही दुसरे किसान रामचंद्र राजपूत (40 वर्ष) कहते हैं, “मिर्च की फसल में लोबिया की खेती करने पर जुताई की जरूरत नहीं पड़ती है, जिससे लागत कम हो जाती है। लोबिया बरसात की फसल होने के कारण सिंचाई भी ज्यादा नहीं करनी पड़ती इसलिए हमारी लागत बहुत ही कम आती है, साथ ही साथ दो दाल की फसल होने के कारण इससे खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है।”
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वो आगे कहते हैं, “जिससे हमारे खेत उपजाऊ बने रहते हैं, हमारे यहां देसी और हाइब्रिड दोनों प्रजातियों की बुवाई होती है, वैसी देसी प्रजाति की फली छोटी होती है और हाइब्रिड प्रजाति की फलियां लंबी होती है और मोटी भी होती हैं और फलत भी अच्छी होती है और सब्जी का बाजार भाव निश्चित नहीं होता है। फिर भी फिर भी बरसात में तैयार होने के कारण जब सब्जियों का उत्पादन कम होता है ऐसे में एक एकड़ में लागत लगभग 5000 तक की आती है और 25000 तक उत्पादन होने की संभावना रहती है।”
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