किसानों के लिए खरपतवार सबसे बड़ा सिर्द बनते हैं। इनसे फसल को बचाने के लिए किसान निराई गुड़ाई कराते हैं लेकिन इस पर काफी खर्च है। ऐसे मल्चिंग काफी कारगर हो सकती है।
कई किसानों के सामने ये समस्या आती है कि उनके खेत में फसलों की उत्पादकता धीरे धीरे कम हो रही है, ऐसे किसान प्लास्टिक मल्चिंग का प्रयोग करके खेती की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं।
खेत में लगे पौधों की जमीन को चारों तरफ से प्लास्टिक फिल्म के द्वारा सही तरीके से ढकने की प्रणाली को प्लास्टिक मल्चिंग कहते है। यह फिल्म कई प्रकार और कई रंग में आती है।
प्लास्टिक मल्च फिल्म का चुनाव– प्लास्टिक मल्च फिल्म का रंग काला, पारदर्शी, दूधिया, प्रतिबिम्बित, नीला, लाल आदि हो सकता है।
काली फिल्म – काली फिल्म भूमि में नमी संरक्षण, खरपतवार से बचाने तथा भूमि का तापक्रम को नियंत्रित करने में सहायक होती है। बागवानी में अधिकतर काले रंग की प्लास्टिक मल्च फिल्म प्रयोग में लायी जाती है।
दूधिया या सिल्वर युक्त प्रतिबिम्बित फिल्म – यह फिल्म भूमि में नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ भूमि का तापमान कम करती है।
पारदर्शी फिल्म– यह फिल्म अधिकतर भूमि के सोलेराइजेशन में प्रयोग की जाती है। ठंडे मौसम में खेती करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
फिल्म की चौड़ाई – प्लास्टिक मल्चिंग के प्रयोग में आने वाली फिल्म का चुनाव करते समय उसकी चौड़ाई पर विशेष ध्यान रखना चाहिए जिससे यह कृषि कार्यों में भरपूर सहायक हो सके। सामान्यत: 90 से.मी. से लेकर 180 सें.मी तक की चौड़ाई वाली फिल्म ही प्रयोग में लायी जाती है।
फिल्म की मोटाई – प्लास्टिक मल्चिंग में फिल्म की मोटाई फसल के प्रकार व आयु के अनुसार होनी चाहिए ।
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इस तकनीक से क्या फ़ायदा होता है
इस तकनीक से खेत में पानी की नमी को बनाए रखने और वाष्पीकरण रोका जाता है। ये तकनीक खेत में मिट्टी के कटाव को भी रोकती है। और खेत में खरपतवार को होने से बचाया जाता है। बाग़वानी में होने वाले खरपतवार नियंत्रण एवं पोधों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने में बहुत सहायक होती है।क्यों की इसमे भूमि के कठोर होने से बचाया जा सकता है और पोधों की जड़ों का विकास अच्छा होता है।
सब्जियों की फसल में इसका प्रयोग कैसे करें
जिस खेत में सब्जी वाली फसल लगानी है उसे पहले अच्छे से जुताई कर ले फिर उसमे गोबर की खाद् और मिटटी परीक्षण करवा के उचित मात्रा में खाद् दे। फिर खेत में उठी हुई क्यारी बना ले। फिर उनके उपर ड्रिप सिंचाई की पाइप लाइन को बिछा ले।फिर 25 से 30 माइक्रोन प्लास्टिक मल्च फिल्म जो की सब्जियों के लिए बेहतर रहती है उसे उचित तरीके से बिछा दे फिर फिल्म के दोनों किनारों को मिटटी की परत से दबा दिया जाता हे। इसे आप ट्रैक्टर चालित यंत्र से भी दबा सकते है। फिर उस फिल्म पर गोलाई में पाइप से पोधों से पोधों की दूरी तय कर के छिद्र कर ले। किये हुए छेदों में बीज या नर्सरी में तैयार पोधों का रोपण कर ले।
फल वाली फसल में इसका प्रयोग
फलदार पोधों के लिए इसका उपयोग जहाँ तक उस पौधे की छाँव रहती है। वाह तक करना उचित रहता है।इसके लिये फिल्म मल्च की लम्बाई और चौड़ाई को बराबर कर के कटिंग करे।उसके बाद पोधों के नीचे उग रही घास और खरपतवार को अच्छी तरह से उखाड़ के सफाई कर ले उसके बाद सिंचाई की नली को सही से सेट करने के बाद 100 माइक्रोन की प्लास्टिक की फिल्म मल्च जो की फल वाले पोधों के लिए उपयुक्त रहती है। उसे हाथों से पौधे के तने के आसपास अच्छे से लगनी है। फिर उसके चारों कोनों को 6 से 8 इंच तक मिटटी की परत से ढँकना है।
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मिलिए ऐसे किसान से जो इस तकनीक से खेती कर रहे हैं
मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल कर तरबूज की उन्नत खेती कर रहे बाराबंकी जिले के मलूकपुर गाँव के किसान अनिल कुमार वर्मा (49 वर्ष)बताते हैं, “हम अपनी खेती में सुधार और नए-नए तरीकों को प्रयोग करने के लिए भारत के विभिन्न राज्यों के कृषि सलाहकारों से फोन पर सलाह लेते रहते हैं और समय-समय पर कृषि विभाग द्वारा आयोजित किसान गोष्ठियों में जाते रहते हैं।”
तरबूज की खेती में मल्चिंग व ड्रिप सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से अनिल अपने क्षेत्र के बाकी किसानों की तुलना में अच्छी फसल उगा रहे हैं और मंडी में पहले से अच्छे भाव पर बेच रहे हैं। अनिल आधुनिक तरीकों से तरबूज की खेती को अपने क्षेत्र के 50 से अधिक किसानों तक पहुंचा चुके हैं। वह आगे बताते हैं, “तरबूज से मैं अब हर साल 25 से 30 लाख की कमाई कर लेता हूँ ।’
खेत में प्लास्टिक मल्चिंग करते समय सावधानियां
● प्लास्टिक फिल्म हमेशा सुबह या शाम के समय लगानी चाहिए।
● फिल्म में ज्याद तनाव नही रखना चाहिए।
● फिल्म में जो भी सल हो उसे निकलने के बाद ही मिटटी चढ़ा वे।
● फिल्म में छेद करते वक्त सावधानी से करे सिंचाई नली का ध्यान रख के।
● छेद एक जैसे करे और फिल्म न फटे एस बात का ध्यान रखे।
●मिटटी चढाने में दोनों साइड एक जेसी रखे
●फिल्म की घड़ी हमेशा गोलाई में करे
●फिल्म को फटने से बचाए ताकि उसका उपयोग दूसरी बार भी कर पाए और उपयोग होने के बाद उसे चाव में सुरक्षित रखे।
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प्लास्टिक मल्चिंग की लागत कितनी आती है
मल्चिंग की लागत कम ज्यादा हो सकती हे क्यों की इसका कारण खेत में क्यारी के बनाने के ऊपर होता हे क्यों की अलग अलग फसल के हिसाब से क्यारिया सकड़ी और चौड़ी होती हे और प्लास्टिक फिल्म का बाज़ार में मूल्य भी कम ज्यादा होता रहता है।
प्रति बीघा लगभग 8000 रूपये की लागत हो सकती है और मिटटी चढ़ाने में यदि यंत्रो का प्रयोग करे तो वो ख़र्चा भी होता है।
प्लास्टिक मल्चिंग में अनुदान कितना मिलता है
उत्तर प्रदेश के उद्यान विभाग के एक अधिकारी, धर्मेन्द्र पाण्डेय बताते हैं,” भारत सरकार ने यह बहुत अच्छी योजना लाई है, किसानों के बीच। पर राज्य सरकार ने इस साल मल्चिंग पर कोई अनुदान की योजना नहीं बनाई है।अगले साल इस पर विचार किया जाएगा।”
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