किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिले में स्थित बायोवेद कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान शोध संस्थान की मदद से ऊसर भूमि और अनुपयोगी पड़े पुराने पेड़ों के ऊपर बड़े स्तर पर लाख की खेती करवाई जा रही है। इस प्रयास के बदौलत किसान कम समय में अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं।
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इलाहाबाद जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कौड़िहार ब्लॉक के श्रींवेगपुर क्षेत्र में स्थित बायोवेद शोध संस्थान प्रदेश के कई जिलों में बड़े स्तर पर लाख की खेती कराकर किसानों की आय को बढ़ाने का काम कर रहा है। इलाहाबाद के अलावा मिर्जापुर, चित्रकूट, बुंदेलखंड के किसान लाख की खेती कर रहे हैं। प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर छह लाख से नौ लाख रुपए तक की आय प्राप्त कर रहे हैं। जिले के मेजा, मांडा, कौड़िहार, कौंधियारा सहित कई ब्लॉकों में किसान लाख की खेती कर रहे हैं।
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किसानों को लाख की खेती के बारे में बायोवेद कृषि प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान शोध संस्थान के निदेशक और कृषि वैज्ञानिक डॉ. बीके द्विवेदी ने बताया, ”लाख की खेती करने वाले किसान सूखे एवं आर्थिक मंदी की स्थिति में भी लाभ कमाते हैं। लाख की खेती के साथ ही अन्य फसल भी उगाई जा सकती हैं। लाख कीट पेड़ों पर उगाए जाते हैं। इसेे जंगलों के अलावा खेत के मेड़ पर लगे पौधों पर लगाया जा सकता है।”
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इन पेड़ों पर लगते हैं लाख के कीट
लाख की खेती किसानों के लिए बहुपयोगी साबित हो रही है। बायोवेद कृषि प्रद्योगिकी एवं विज्ञान शोध संस्थान के प्रबंध निदेशक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के मुताबिक लाख का कीट गाँवो में मिलने वाले कुसुम, प्लास, बेर, बबूल, जंगल जलेबी, पीपल,ग ूलर, सिरिस, पाकड़ पर उगाकर किसान एवं ग्रामीण लाभ कमा सकते हैं। लाख की खेती से न्यूनतम एक पेड़ से ढाई से तीन हज़ार रुपए प्रतिमाह की कमाई होती है।
सीमित संसाधन में कर सकते हैं खेती
लाख की खेती सीमित संसाधनों के साथ भी किसान कर सकता है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी के द्विवेदी के मुताबिक दो मौसमी फसल उगाने के बाद किसान की आय 800 रुपए प्रति एकड़ वार्षिक होती है, जबकि लाख की खेती से एक एकड़ में 1,000 फ्लेमेंजिया पोशक वृक्ष खेत के मेड़ के किनारे लगाकर ढ़ाई से तीन लाख रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष की कमाई कर सकता है ”
“लाख की खेती किसानों के लिए बहुत लाभप्रद साबित हो रही है। इसे पारम्परिक खेती के साथ भी किया जा सकता है। लाख की खेती कम लागत में अधिक मुनाफा किसानों को देने का काम कर रही है।” डॉ़ बीके द्विवेदी, निदेशक, बायोवेद कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान शोध संस्थान इलाहाबाद ने बताया।