रागी, बाजरा जैसे मोटे अनाज की खेती के बाद प्रोसेसिंग के पुराने और परंपरागत तरीकों से न ही सही से अनाज निकल पाता है और न ही बाजार में उसका सही दाम मिल पाता है। ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र, उन किसानों और स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए मददगार साबित हुआ है जो मोटे अनाज की खेती करते हैं।
भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. विलास टोनापी गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “दक्षिण भारत ही नहीं, दूसरे कई प्रदेशों में भी रागी, कुटकी, कोदो, सावां ज्वार, बाजरा जैसे मिलेट्स की खेती होती है, लेकिन हर एक किसान के पास ऐसी सुविधा नहीं होती कि वो अनाज को सही तरह से प्रोसेस करके बेच सकें। क्योंकि अगर सही तरह से प्रोसेसिंग नहीं हुई है, तो उसे सही दाम भी नहीं मिलेगा।”
भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद ने कुटकी, कोदो, बाजरा, ज्वार जैसे मोटे अनाजों की खेती करने वाले किसानों का काम आसान करने के लिए कर्नाटक के कृषि विज्ञान केंद्र, बीदर पर प्रोसेसिंग यूनिट की शुरूआत की है, जहां अब आसपास के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं, अनाज प्रोसेसिंग के लिए आती हैं। इससे किसानों को उनकी उपज का सही दाम दिलाने में मदद मिल रही है।
“किसानों की मदद के लिए हमने अभी कर्नाटक के कृषि विज्ञान केंद्र में प्रोसेसिंग की शुरूआत की है, रिज़ल्ट भी अच्छा मिला है, वहां की सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिलाओं और फ़ार्मर प्रोड्यूसर कंपनी से जुड़े किसान अब आसानी से अनाज की प्रोसेसिंग कर सकते हैं। यही नहीं वो प्रोसेसिंग के बाद उससे प्रोडक्ट भी बनाकर बेच सकते हैं,” डॉ. विलास ने आगे बताया।
भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद, भारत सरकार के साथ मिलकर मिलेट मिशन चला रहा है, इसमें मिलेट्स का क्षेत्रफल बढ़ाने के साथ ही उत्पादन बढ़ाने की भी बात की जा रही है। अभी भारत के लगभग 23 राज्यों में मिलेट्स की खेती होती है। अभी तक लोगों के सामने परेशानी थी कि इन मोटे अनाज का प्रसंस्करण कैसे हो, संस्थान लगातार इस पर काम कर रहा है और मोटे अनाज के प्रसंस्करण ही नहीं कई तरह के उत्पाद बनाने की भी ट्रेनिंग दे रहा है।
केंद्र सरकार भी पिछले दो साल से इस पर खास ध्यान दे रही है। इसी कड़ी में वर्ष 2018 में मोटे अनाजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया गया। यही नहीं वर्ष 2018 को तत्कालीन केंद्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में घोषित किया था। साथ ही खाद्य और कृषि संगठन परिषद (एफएओ) ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय ज्वार-बाजरा वर्ष मनाने के भारत के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 02 जनवरी, 2020 को को कर्नाटक में आयोजित कृषि कर्मण पुरस्कार वितरण के लिए आयोजित कार्यक्रम में कहा था कि बागवानी के अलावा दाल, तेल और मोटे अनाज के उत्पादन में भी दक्षिण भारत का हिस्सा अधिक है। भारत में दाल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए बीज हब बनाए गए हैं, जिनमें से 30 से अधिक सेंटर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में ही हैं। इसी तरह मोटे अनाज के लिए भी देश में नए हब बनाए गए हैं, जिसमें से 10 साउथ इंडिया में ही हैं।”
भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान किसानों को मोटे अनाजों के प्रसंस्करण का प्रशिक्षण भी दे रहा है। भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. संगप्पा बताते हैं, “अभी हमने कर्नाटक के कृषि विज्ञान केंद्र, बीदर में प्रोसेसिंग यूनिट की शुरूआत की है, जिसमें फसल की कटाई के बाद किसान प्रोसेसिंग कर सकते हैं, आने वाले समय में हम किसानों और स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को मोटे अनाज से कई तरह के उत्पाद बनाने की भी ट्रेनिंग देंगे। संस्थान के ट्रेनिंग सेंटर के साथ ही हम दूसरे राज्यों में जाकर भी ट्रेनिंग देते हैं, जिससे मोटे अनाज की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़े।”
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा साल 2020-21 खरीफ फसलों के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, मोटे अनाजों का उत्पादन 328.4 लाख टन होने का अनुमान है, जो 313.9 लाख टन के औसत उत्पादन की तुलना में 14.5 लाख टन अधिक है।
“अब तो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर रागी, कोदो जैसे मोटे अनाज से बने प्रोडक्ट बिकते हैं, हमारे यहां भी किसानों को खेती के साथ ही प्रोडक्ट बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। अभी तक गेहूं के आटे का पास्ता मार्केट में बिकता है, हमने बाजरे का भी पास्ता बनाया है। अभी तक हमने मोटे अनाज के 60 से ज्यादा प्रोडक्ट बनाएं हैं। दक्षिण भारत के साथ ही उत्तर भारत खास करके उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश में किसान बड़ी मात्रा में मोटे अनाज की खेती करते हैं, क्योंकि इसमें पानी की कम जरूरत पड़ती है। लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या मार्केटिंग की आती है, इसलिए किसान इसमें वैल्यू एडिशन करके इसे मार्केट में आसानी से बेच सकते हैं,” डॉ. संगप्पा ने आगे कहा।