मेरठ।अब पश्चिमी यूपी में बागवानी किसान अमरूद की खेती कर मालामाल होंगे। इसके लिए भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान द्वारा नया फार्मुला इजात किया गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि किसान क्राप रेगुलेशन तकनीक को अपनाएंगे तो किसानों को बंपर उत्पादन मिलेगा। जिससे बागवानी से छूट चुका किसानों को मोह जाग उठेगा। इसके लिए वैज्ञानिकों ने शोध कर अमरूद की नई प्रजाति भी तैयार की है। ताकि किसानों को जागरूक कर अमरूद की खेती ओर अग्रसर कर सकें।
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पश्चिमी यूपी में खासकर मेरठ जोन को फल मंडी के नाम से जाना जाता है, लेकिन धीरे-धीरे किसानों का मोह बागवानी से छूटता जा रहा है। कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए अमरूद पर शोध किया और क्राप प्रणाली के तहत अमरूद की खेती की, जिसमें रिकार्ड उत्पादन हुआ। सफल परिणाम के बाद वैज्ञानिकों किसानों को जागरूक करने और अमरूद की खेती की ओर प्रेरित करने की येाजना बनाई है।
भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम में कार्यरत प्रधान वैज्ञानिक डा. दुष्यंत मिश्रा बताते हैं,“ अमरूद की फसल में क्राप रेगुलेशन तकनीक अपनाकर शीत रितु में बागवानी शुरू करें और बंपर उत्पादन पाकर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारें। वर्षा रितु में आने वाला फल अच्छी गुणवत्ता का नहीं होता। साथ ही उसमें कीटों का प्रकोप भी ज्यादा होता है। ”
ये तकनीक अपनाएं
मई में पेड़ों की छटाई के साथ पेड़ों पर लगी गंदगी को भी पानी के छिड़काव से साफ कर लें। साथ ही बगीचों में फूल आने के बाद करीब 20 दिनों तक सिचाई न करें। उसके बाद उद्यान में गोबर सड़ी खाद्य 40 से 50 किलोग्राम एनपीके माइक्रोन्यूट्रेट मिलाकर पेड़ों के तने से दो फिट दूर थावला बनकर मिश्रण को डलवाएं। डा. मिश्रा बताते हैं कि मिश्रण डालने के दो दिन बाद बाग की सिंचाई कर दें। इससे पेड़ों में फूल ज्यादा आएंगे और प्रति पेड़ से फल भी ज्यादा मिल सकेंगे। जिससे किसानों को आमदनी दोगुनी तक हो जाएगी।
निश्चित रूप से यदि किसान वैज्ञानिक विधि से अमरूद की खेती करें, और वैज्ञानिकों के बताए अनुसार खाद्य पानी का ध्यान रखे तो बागवानी छूटा किसानों का मोह वापस आ जाएगा।
डा., दुष्यंत मिश्रा, प्रधान वैज्ञानिक कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम
किसानों को करेंगे जागरूक
भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान में कार्यरत वैज्ञानिक डा. मनोज बताते हैं,“ अमरूद की खेती क्राप विधि से करने के लिए किसानों को जागरूक किया जाएगा। इसके लिए किसान मेला, कृषि विज्ञान केन्द्रों पर गोष्ठियां आयोजित की जाएंगी। साथ ही सभी जिलों में कृषि विभाग की मदद से चैपाल कार्यक्रम भी चलाएं जाएंगे।”