भारत को अफगानिस्तान से नहीं मंगानी पड़ेगी हींग, हिमाचल प्रदेश में शुरू हुई है हींग की खेती

आपकी रसोई में इस्तेमाल होने वाली हींग अफगानिस्तान से आयात की जाती है, जल्द ही भारत में हींग का उत्पादन होगा, जिसकी शुरूआत हिमाचल प्रदेश में हुई है।
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भारत में शायद ही ऐसा कोई घर होगा जिसकी रसोई में हींग न मिले, लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि उनकी रसोई में रखी हींग किसी दूसरे देश से मंगाई जाती है। लेकिन जल्द ही लोगों को भारत में उगाई हींग मिलने लगेगी।

सीएसआईआर-हिमालय जैवसम्पदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर ने भारत में हींग की खेती की शुरूआत की है। आने वाले कुछ सालों में हींग का उत्पादन भी होने लगेगा।

देश में हींग की खेती की शुरूआत के बारे में आईएचबीटी के निदेशक डॉ. संजय कुमार गांव कनेक्शन से बताते हैं, “भारत में हमेशा दूसरे देशों से ही हींग आती है, इसको लेकर पहले कभी किसी को एहसास ही नहीं हुआ कि भारत में भी इसकी खेती की जा सकती है। हींग एक खास वैरायटी असाफोएटिडा से मिलती है, लेकिन अभी तक भारत में इसकी खेती नहीं होती थी।”

सीएसआईआर-हिमालय जैवसम्पदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर में तैयार हींग की नर्सरी। सभी फोटो: आईएचबीटी

वो आगे कहते हैं, “हमारा यह प्रयास था कि हींग को देश में लाया जाए, हमने बहुत प्रयास किया तब जाकर एक संस्थान इसे देने को राजी हुआ। लेकिन किसी भी बीज या फिर पौध को दूसरे देश से ऐसे ही नहीं ला सकते हैं। इसके लिए नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (एनबीपीजीआर) पहले ये देखता कि उसके साथ में कोई बीमारी न आ जाए। एनबीपीजीआर ने हमें बताया कि पिछले तीस साल में कोई भी हींग नहीं ले आया यह हमारा पहला प्रयास है। इसके बाद हमने इसके बारे में पूरी रिसर्च की और जब सारी चीजें तैयार हो गईं तो हमने किसानों के साथ मिलकर इसकी खेती शुरू की। इस बार दूसरा साल है किसान भी इसको लेकर खुश हैं। दो-तीन सालों बाद भारत में हींग का उत्पादन होगा।”

आईएचबीटी ने साल 2018 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, नई दिल्ली के माध्यम से हींग के बीजों का आयात ईरान से किया गया। बीज के माध्यम से तैयार किए गए हींग के पौधों को उच्च तुंगता केंद्र, रिबलिंग ज़िला लाहौल-स्पीति में लगाया था और हिमाचल प्रदेश के दूसरे कई जगह पर परीक्षण के तौर पौधे लगाए गए। हींग की खेती की शुरुआत 15 अक्टूबर, 2020 को केलांग के पास क्वारिंग गांव में की गई।

लाहौल स्पीति के बीलिंग में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम

हिमाचल प्रदेश के लाहौल घाटी में मडग्रान, बीलिंग और केलांग के गांवों में हींग की खेती पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए और हींग के पौधे लगाए गए इसके साथ ही मंडी जिला के कटारू, मझखाल, जंजैहली और घयान में भी हींग लगाया गया है और किन्नौर जिले में मेबार, कोठी, दुन्नी, रिकांगपियो और पोवारी में भी पौधे लगाए गए थे।

परीक्षण के बाद साल 2020 में कुछ किसानों को प्रशिक्षण के बाद हींग के पौधे दिए गए थे। इस बार फिर किसानों को हींग के पौधे दिए जा रहे हैं। कृषि विभाग, सीएसआईआर- हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर के साथ मिलकर हींग की खेती के पायलट प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश के कुछ चिन्हित क्षेत्रों में जिनकी जलवायु हींग के लिये उपयुक्त हो सकती है वहां पर पायलट योजना के अंतर्गत कुछ किसानों द्वारा संस्थान के वैज्ञानिकों और कृषि विभाग अधिकारियों की देख रेख में ही खेती कारवाई जा रही है।

अफगानिस्तान से आयात की जाती है हींग

आईएचबीटी के अनुसार देश में प्रति वर्ष 1542 टन से अधिक शुद्ध हींग की खपत होती है और देश में पहर साल 942 करोड़ रुपये से अधिक हींग के आयात पर खर्च किए जाते हैं। भारत में हींग की आपूर्ति के लिए अफ़ग़ानिस्तान, उज्बेकिस्तान और ईरान प्रमुख देश हैं। देश में हींग का आयात मुख्यतः (कुल आयात का ~90 प्रतिशत) अफ़गानिस्तान से किया जाता है।

देश में हींग का कुल आयात का 90 प्रतिशत अफ़गानिस्तान से किया जाता है। फोटो: विकीपीडिया कॉमन्स

आईएचबीटी के प्रधान वैज्ञानिक व हींग परियोजना समन्वयक डॉ अशोक कुमार बताते हैं, “हींग (फेरुला एसाफोईटिडा) एपिएसी (गाजर) कुल का एक बहुवर्षीय पौधा है जो मूलतः ईरान व अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाकों में जंगली रूप में पाया जाता है। भारत में हींग का उपयोग मसाले के तौर पर किया जाता है, वहीं इसके औषधीय गुण भी हैं।”

हिमाचल प्रदेश के 3.5 हेक्टेयर में हींग की खेती

डॉ अशोक कहते हैं, “अभी हमने लाहौल स्पीति, मंडी, किन्नौर, चंबा में हींग की खेती शुरू की जा रही है, साल 2020 में हमने कुछ किसानों के साथ शुरू किया था। अभी तक 3.5 हेक्टेयर में हींग के पौधे लगाए गए हैं।” आने वाले समय में संस्थान और कृषि विभाग इसका रकबा बढ़ाने वाले हैं ताकि उत्पादन भी ज्यादा हो।

28 अगस्त को किन्नौर के किसानों के लिए हींग के पौधे भेजे गए।

पालमपुर में तैयार की जाती है नर्सरी, किसानों को मुफ्त में दिए जाते हैं पौधे

आईएचबीटी, पालमपुर में नर्सरी तैयार की जाती है और आगे वो किसानों को उपलब्ध करायी जाती है। अभी तक 20,000 पौधे किसानों को बांटे जा चुके हैं, कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश के सहयोग से किसानों को मुफ्त में हींग के पौधे दिए जाते हैं। पिछले दो साल में 373 किसानों को हींग की खेती का प्रशिक्षण दिया गया है, जिसमें से 167 किसानों ने खेती शुरू भी कर दी है।

किसान के खेत में लगा हींग का पौधा।

पांच साल में तैयार हो जाती है फसल

पौध लगाने के बाद पांच साल में फसल तैयार हो जाती है। इसमें एक पौधे से 25-30 ग्राम तक रेजिन (हींग) का उत्पादन होता है, अगर कोई किसान हेक्टेयर में हींग लगाता है तो एक हेक्टेयर में ढाई कुंतल तक हींग का उत्पादन हो जाता है। 

हिमाचल प्रदेश के साथ ही इन राज्यों में हो सकती है हींग की खेती

भारत के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र जैसे लाहौल और स्पीति, लद्दाख, उत्तराखंड के कुछ हिस्से और अरुणाचल प्रदेश हींग की खेती के लिए उपयुक्त हैं। देश में हींग के उत्पादन को बनाए रखने की रणनीति है कि हींग की निरंतर आपूर्ति के लिए हर साल वृक्षारोपण किया जाए।

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