गाँव कनेक्शन
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। पिछले नौ वर्षों से यहां के पशुपालक एलोपैथिक नहीं, हर्बल तरीके से पशुओं का इलाज कर रहे हैं, ऐसा संभव हुआ है डॉ. बलराम साहू की ‘पाठे पाठशाला’ से। डॉ. बलराम लाखों पशुपालकों को एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल की बजाए हर्बल इलाज के लिए जागरूक कर चुके हैं।
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“अगर पशुओं को कोई बीमारी होती है तो वो अपने पशु को सबसे पहले एंटीबायोटिक दवा देते हैं, जिसका असर मनुष्यों पर पड़ता है। इसी को बदलने के लिए हमने ‘पाठे पाठशाला’ शुरू की। ग्रामीण क्षेत्रों में कई ऐसे पेड़-पौधे, जड़ें होती हैं, जिनका इस्तेमाल करके पशुओं का कम खर्च में अच्छा इलाज किया जा सकता है। इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ता है। इन्हीं सबकी जानकारी हम गाँव-गाँव जाकर पशुपालकों को देते हैं, साथ ही उनको किस बीमारी में किस तरह की हर्बल दवा दी जाए। इसके बारे में भी बताते हैं।” ऐसा बताते हैं, डॉ. बलराम साहू।
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भारत के पूर्व में स्थित ओडिशा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर के डॉ. बलराम साहू से अब तक तीन लाख पशुपालक जुड़े हुए हैं। डॉ. साहू ने वर्ष 2009 में ‘पाठे पाठशाला’ की शुरुआत की थी। डॉ. बलराम बताते हैं, ”जिन इलाकों में वैज्ञानिकों को पंहुचने में सालों लग जाते हैं या वो पंहुच ही नहीं पाते, वहां मैं काम कर रहा हूं। रोज हम किसी भी गाँव में पहुंच जाते हैं। हर गाँव में छोटे-बड़े पशुपालक मिल जाते हैं, उनको दो से तीन घंटे का प्रशिक्षण देते हैं, उसमें पशुओं में होने वाली बीमारियां के इलाज के बारे में बताते हैं।”
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“आजकल बहुत से पशुपालक इंटरनेट का प्रयोग करके आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन अभी भी भारत के कई ऐसे पशुपालक हैं, जो यूट्यूब, व्हाट्सअप और फेसबुक जानते ही नहीं है, जिससे उनको जानकारी मिल सके। अगर पशुधन के क्षेत्र में बदलाव करना है तो हमें उनके पास जाना होगा क्योंकि वो हमारे पास नहीं आ सकते।“ डॉ. बलराम ने बताया।
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अपनी पाठशाला में आए बदलाव के बारे में डॉ. साहू बताते हैं, “गरीब तबके के जो पशुपालक हैं, उनमें ज्यादा बदलाव है क्योंकि पहले उनको दवाओं के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ता था, अब वो कम खर्च में पशुओं की छोटी-छोटी बीमारियों का इलाज आसानी से कर लेते हैं।“
टेली-वेट प्रोग्राम के जरिए फोन पर देते हैं जानकारी
जिन इलाकों में ‘पाठे पाठशाला’ नहीं पहुंच पाती है, उसके लिए डॉ. बलराम ने टेली-वेट् प्रोग्राम भी शुरू किया है, इसके जरिए सुबह सात बजे से रात नौ बजे तक वो ग्रामीणों को फोन पर जानकारी देते हैं। “रोज हमारे पास पचास से ज्यादा कॉल आते हैं। जहां-जहां से कॉल आते हैं, हम उनके गाँवों में भी विजिट करते हैं। हमारे पास उड़ीसा के ही पशुपालक फोन नहीं करते, बल्कि और राज्यों के पशुपालक भी फोन करते हैं। हमारी पाठशाला द्वारा दी गई परामर्श नि:शुल्क होती है।”