जल्द ही किसानों को मिलेगी सूखे में बेहतर पैदावार देने वाली सोयाबीन की किस्म

#soybean

नई दिल्ली। एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल सोयाबीन के उत्पादन पर सूखे का असर पड़ा है, वैज्ञानिकों को सोयाबीन के जीनोटाइप की पहचान की है, जिसकी सहायता से सोयाबीन की ऐसी किस्म विकसित करने में मदद मिलेगी, जिसके उत्पादन पर सूखे का असर नहीं पड़ेगा।

पिछले कुछ वर्षों में सूखे का सबसे अधिक प्रभाव खेती पर पड़ा है, क्योंकि देश में साठ प्रतिशत खेती वर्षा आधारित है। सोयाबीन की खेती भी मुख्य रूप से वर्षा आधारित क्षेत्रों में की जाती है, इससे सूखे का असर सोयाबीन की खेती पर भी पड़ा है।

भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर के वैज्ञानिकों ने सूखे सहन करने वाले सोयाबीन के सोलह जीनोटाइप का अध्ययन किया। संस्थान में हुए इस प्रयोग में सोलह किस्मों को सामान्य सिंचित अवस्था में रखा गया। इसके बाद प्रयोग के तौर पर पानी नहीं दिया गया, जबकि उसमें से कुछ पौधों को सामान्य सिंचाई की गई।

12 मिलियन टन उत्पादन के साथ; सोयाबीन भारत में सबसे तेजी से उगने वाली फसलों में से एक है। सोयाबीन को भारत में खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है। शीर्ष तीन सोयाबीन उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान हैं। उत्पादन में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 45 और 40% है।


अध्ययन के बारे में भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र सिंह भाटिया बताते हैं, “इन लक्षणों और जीनोटाइप का इस्तेमाल सोयाबीन की किस्मों को विकसित करने के उद्देश्य से किया जा सकता है।”

वो आगे बताते हैं, “इसके बाद पौधों के तापमान, जड़ की लंबाई, पत्तियों का वजन, प्रकाश संश्लेषण दर, क्लोरोफिल और सिंचित और असिंचित अवस्था के दोनों पौधों का अध्ययन किया।

शोधकर्ताओं ने बीज की पैदावार में भारी गिरावट देखी जो जीनोटाइप के आधार पद 20 से 62 प्रतिशत तक थी। कम उत्पादकता के आधार पर चार सोयाबीन जीनोटाइप (EC 538828, JS 97-52, EC 456548, and EC602288) को सूखे का प्रतिरोधी माना गया।

अध्ययन में पाया गया कि इन किस्मों में सूखे से लड़ने की क्षमता है, ये किस्में मिट्टी से पानी और पोषक तत्व को कुशलता से सूखे की स्थिति में लाने में सक्षम होती हैं। पत्तियों में मोम जैसा तत्व जो वाष्पोत्सर्जन के कारण पानी की कमी को रोकता है।   

Recent Posts



More Posts

popular Posts