गन्ने में रेड रॉट रोग लगने से किसानों की बढ़ीं मुश्किलें, कुछ बातों का ध्यान रखकर बचा सकते हैं फसल

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में इस समय गन्ने की फसल में रेड रॉट (लाल सड़न) रोग की समस्या बढ़ रही है, इस रोग के लगने से गन्ने की मिठास खत्म हो जाती है और फसल सूख जाती है।
red rot

सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। किसानों की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं, गन्ना की खेती करने वाले किसान रेड रॉट बीमारी से परेशान हो रहे हैं। इस बीमारी की वजह से पूरे के पूरे खेत बर्बाद हो रहे हैं।

गन्ने की किस्म कोशा 0238 में रेड रॉट की समस्या को देखा जा रहा है, इस बीमारी से गन्ने की फसल सूखने लगती है और मिठास खत्म हो जाती है। इसलिए इस तरह के रोगग्रस्त गन्ने से चीनी का उत्पादन भी कम होता है। इस रोग के चपेट में आकर सीतापुर, लखीमपुरखीरी, पीलीभीत, शाहजहांपुर जैसे कई जिलों के किसानो की गन्ने की फ़सल 80 फ़ीसी सूख गई है।

सीतापुर जिले की पिसावा ब्लॉक के लालपुर चन्द्रा में रहने वाले किसान ज्याला प्रसाद यादव बताते हैं, “हमने पांच एकड़ गन्ने की बुवाई की थी, गन्ने में बहुत महंगी महंगी कीट नाशक दवाओं का छिड़काव कर चुके हैं, फिर भी रेड रॉट रोग की समस्या से निजात नहीं मिल पा रहा है।”

वहीं इसी गांव के झब्बू लाल ने बताया कि उनके चार एकड़ गन्ने में रेड रॉट की समस्या बनी हुई है। इस रोग से मुक्ति पाने लिए बीस हजार रुपये की दवाओं का छिड़काव कर चुके हैं, लेकिन फिर भी गन्ना सड़ कर के सूखता चला जा रहा है। ऐसे केसीसी का कर्ज अलग से है वो आ कैसे चुकाएंगे।

लखीमपुर खीरी जिले की मिटोलिया ब्लॉक में केहुआ गाँव के राम निवास बताते हैं, “हमारे 6 एकड़ गन्ने में रेड रॉट की समस्या है, जिसके चलते खेत मे गन्ना सड़ कर सूखता चला जा रहा है, करीब एक लाख लागत लगा चुके हैं, गन्ने में लेकिन मौजूदा समय मे इस गन्ने को बेल पर भी औने पौने दामों में बिक्री कर दे तो लागत का एक चौथाई भी पैसा वापस नहीं आ रहा है।”

रेड राट महामारी के चलते अब उत्तर प्रदेश में गन्ने का रकबा आये दिन घटता चला जा रहा हैं, किसान गन्ने को छोड़ कर दूसरी अन्य फसलों की तरफ़ अपना रुख बदल रहे हैं। इसकी मुख्य वजह है कि गन्ने में अधिक लागत व रोग से परेशान हो चुका यूपी का गन्ना किसान।

पिसावां ब्लॉक सहियापुर निवासी किसान राम स्वरूप ने बताया कि उन्होंने चार एकड़ कोसा 0238 गन्ने की बुवाई किया था, जिसमें करीब 70 हजार रुपये की अब तक लागत लगा चुके हैं, फिर भी गन्ना रोगग्रस्त है। काफ़ी दवाओं का छिड़काव भी किया, लेकिन गन्ने पर कोई असर नहीं पड़ा, वहीं ऐसे में उनका गन्ना गुड़ बेले भी गन्ना लेने को तैयार नहीं है। उन्होंने बताया कि वो गन्ने की फसल को जोत कर के आलू लगाने की तैयारी में हैं।

उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद शाहजहांपुर के पैथोलॉजी अनुभाग के अनुभागाध्यक्ष डॉ सुजीत प्रताप सिंह ने जानकारी देते हुए बताया गन्ने में लाल सड़न एक बीज जनित रोग है, जिसे गन्ने का कैन्सर कहते हैं, यह फफूंदी से होता है। हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और उडीसा में इस रोग से गन्ने को अधिक हानि होती है। उतरी बिहार और पूर्वी व मध्य उतर प्रदेश में इस रोग का प्रकोप महामारी के रूप में होता है।

रेड राट के लक्षण: इसके लक्षण तने के अन्दर लाल रंग के साथ सफेद धब्बे के जैसे दिखते हैं। धीरे धीरे पूरा पौधा सूख जाता है।

ऐसे करें बचाव

एकीकृत रोग प्रबंधन के माध्यम से इसका बचाव किया जा सकता है।

रोग मुक्त नर्सरी तैयार करने के बाद उस बीज को बुवाई के लिए प्रयोग करें।

स्वच्छ खेती करके बचाव किया जा सकता है।

संक्रमित खेत में फसल चक्र गेहूं, धान, हरी खाद अपनाकर रोग से बचाव किया जा सकता है।

संक्रमित गन्ने की पेड़ी नहीं ले।

 रोग रोधी किस्मों की बुवाई करनी चाहिए।

 एकल गन्ने की बुवाई नहीं करें।

जैविक बचाव में बुवाई के समय ट्राईकोडर्मा या स्यूडोमोनास का प्रयोग अवश्य करें।

संक्रमित पौधे को जड़ से उखाड़कर नष्ट कर दें। उस जगह पर 10-20 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर का बुरकाव करें।

उस जगह पर 0.2 प्रतिशत थायो फेनेट मेथिल/ कार्बेन्डाजिम का जड़ों के पास मिट्टी में डाले।

०.1% थायो फेनेट मेथिल/ काबेन्डाजिम/टिबूकोनाजोल सिस्टेमेटिक फफूंदी नाशक का जून तक 2-3 छिड़काव करें।

अन्य प्रदेशों से कोई भी गन्ना किस्म वैज्ञानिको की संस्तुति के उपरांत ही लाना चाहिए।

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