जिले के सैकड़ों किसान सहफसली खेती करके लाभ कमा रहे हैं। इससे फसलों की संख्या बढ़ जाती है। लागत भी कम आ रही है। इस दौरान कई क्षेत्रों में मटर के साथ गेहूं खूब देखा जा सकता है।
जिला मुख्यालय कन्नौज से करीब आठ किमी दूर मानीमऊ निवासी 18 वर्षीय शैलेंद्र कुमार बताते हैं, ‘‘मटर के साथ गेहूं किया है। मटर उखड़ने को है। गेहूं 20 दिन का हो चुका है। साथ में फसल करने से पानी बचता है। खेत खाली नहीं रहता। जुतौनी व खाद का खर्च भी बच जाता है।’’
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60 साल की रामजानकी बताती हैं कि ‘‘हम लोग कई सालों से मटर की फसल के साथ गेहूं की फसल करते आ रहे हैं। इससे लागत कम लगती है।’’ मियांगंज निवासी 47 साल के मोहम्मद अनीस वारसी का कहना है कि ‘‘हां मटर के साथ गेहूं भी किया है। दूसरे खेत में सरसों भी है। सहफसल से काफी फायदा है।’’
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कृषि विज्ञान केंद्र कन्नौज के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. वीके कनौजिया बताते हैं कि ‘‘एक तरीके से यह लाभकारी है। मटर जब बोया जाता है तो पहला पानी लगाने के दौरान गेहूं छिड़क दिया जाता है। मटर की 60-65 दिन में तुड़ाई षुरू हो जाती है। 100-110 दिन में खत्म हो जाती है।’’ डॉ. कनौजिया आगे कहते हैं कि ‘‘मटर के बाद गेहूं बोने से विलम्ब हो जाता है। उतनी पैदावार भी नहीं हो पाती है। हालांकि साथ में 20-25 फीसदी उत्पादन कम होता है। मटर के दौरान ही साथ में गेहूं करने से बुवाई बचती है। खेत तैयार करने, सिंचाई और लेवर खर्च बच जाता है।’’
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‘‘समय रहते बुवाई से एक हेक्टेयर में 35-36 क्विंटल गेहूं निकलता है। नही ंतो 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होगा। मटर के बाद जनवरी में गेहूं करने से उत्पादन कम मिलेगा। खाली गेहूं समय से करने पर 40-45 क्विंटल गेहूं निकलता है। मटर में उर्वरक कम पड़ता है, इसलिए सहफसल में नहीं पडे़गा।’’