कीटनाशक से किसान और अनाज-सब्जियां खाने वालों को डायबिटीज का भी खतरा

किसानों को ये तो पता है कि पेस्टीसाइड से उनकी सेहत को नुकसान है, लेकिन डायबिटीज होने की जानकारी नहीं है।
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रणविजय सिंह 

लखनऊ। किसानों की फसल को कीड़ों से बचाने का दावा करने वाले कीटनाशक (पेस्टीसाइड) किसानों को ही बीमार कर रहे हैं। दरअसल कई रिसर्च में सामने आया है कि कीटनाशक के प्रयोग से किसानों में डायबिटीज का खतरा बढ़ा है। लेकिन वैज्ञानिकों के मुताबिक अभी तक ये पुष्ट नहीं है।

पेस्टीसाइड का प्रयोग करने वोलों को डायबिटीज का तीन गुना ज्यादा खतरा

मदुरई कामराज विश्वविद्यालय, तमिलनाडु के वैज्ञानिकों द्वारा एक अध्ययन में ये बात सामने आई थी। इस शोध के मुताबिक ऑर्गैनोफॉस्फेट कीटनाशक के लंबे वक्ते तक प्रयोग से चूहों और मनुष्यों दोनों में ही डायबिटीज के लक्षण देखने को मिले। ये सर्वे विश्वविद्यालय के आस पास के गांवों के तीन हजार लोगों पर किया गया। इसमें पता चला कि जो लोगा पेस्टीेसाइड के सीधे संपर्क में थे उन्होंने अन्य लोगों के मुकाबले तीन गुना ज्यादा डायबिटीज का खतरा है।

थाईलैंड में हुए रिसर्च में भी सामने आई थी बात

इससे पहले वर्ष 2016 में थाईलैंड में ऐसा ही शोध हुआ था। थाईलैंड के बंग रकम जिले में ‘पेस्टीसाइड से डायबिटीज का खतरा’ विषय पर एक शोध किया गया। उस वक्त इस जिले की आबादी 94,980 थी, जिनमें से ज्यादातर किसान थे। शोध से पहले जिले के अस्पतालों से डायबिटीज के 2832 मरीजों का डाटा लिया गया, जिनमें से 1887 मरीजों को चुना गया। इसमें टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के मरीज शामिल थे। शोध में पाया गया कि जो भी लोग पेस्टीना साइड के सीधे संपर्क में थे उनके खून में ग्लूकोज की मात्रा अधिक थी। इसमें वो लोग भी शामिल थे जो पेस्टीनासाइड का छिड़काव तो नहीं करते लेकिन किसी न किसी तरह उसके संपर्क में आते हैं। जैसे- दुकानदार, पेस्टीसाइड का इस्तेमाल करने वाले किसानों के घरवाले।

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इस शोध में सामने आया कि पेस्टीसाइड के ज्यादा प्रयोग से थाईलैंड के किसानों को डायबिटीज का खतरा है। हालांकि रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि कीटनाशक से डायबिटीज के संबंध को पूरी तरह सिद्ध करने के लिए लंबी अवधि तक इसपर शोध करने की जरूरत है, जिससे उन कारकों का पता चल सके कि आखिर ऐसा क्यों है।

कीटनाशक का प्रयोग हो कम

इन रिपोर्ट्स पर राम मोनहर लोहिया के मेडिसिन विभाग में वरिष्ठक परामर्शदाता डॉ. एससी मौर्या का कहना है, ”गांव में डायबिटीज के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा सामने आया था कि जो किसान अपने खेतों में कीटनाशक का छिड़काव करते हैं उन्हें डायबिटीज होने के आसार बढ़ जाते हैं। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं। इस स्थिति का संज्ञान लेते हुए अलग-अलग रिसर्च किए गए। इसमें चूहों पर कीटनाशक का छिड़काव किया गया, जिससे चूहों में शुगर की मात्रा बढ़ गई है। ऐसे में जाहिर है कि कीटनाशक के प्रयोग से भी डायबिटीज का खतरा बढ़ रहा है। और ये खतरा सिर्फ किसानों तक नहीं है, जो भी इस माध्यकम से उगाई गई चीजों का सेवन करेगा खतरा उनको भी है। इसलिए खेतों में कीटनाशक का प्रयोग कम से कम होना चाहिए।”

ये शोध आशंकाओं पर आधारित

वहीं, केजीएमयू मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर कौसर उस्मान का इस मामले पर अलग नजरिया है। उनका कहना है, ”ये तमाम शोध सिर्फ आशंका जता रहे हैं। ये किसी निष्कर्ष पर नहीं जाते। अगर ऐसा है तो लंबे वक्त तक लोगों की जांच करन चाहिए, तब जाकर इस शोध की विश्वसनीयता बढ़ेगी। हालांकि ऐसे मामले सामने आते रहे हैं, लेकिन डायबिटीज के होने के और भी कई कारण हैं। इसमें लाइफ स्टाइल बहुत हद तक जिम्मेमदार है।”

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गांव में बढ़ रहे डायबिटीज के मामले, लेकिन पता नहीं कारण

इस रिसर्च को लेकर जब हमने किसानों से बात की तो वहां भी मिली जुली प्रतिक्रिया सामने आई। महाराष्ट्रह के नांदेड़ जिले के माहुर गांव के किसान फारुख पठान ने बताया, ”मुझे तो पेस्टी साइड से कोई दिक्कत नहीं हुई है। हां, मेरे पिता जी भी किसान हैं और उन्हें डायबिटीज है। कुछ साल पहले पेस्टी‍साइड के इस्ते माल से गांव के ही एक लड़के की आंखों की रोशनी जाती रही थी, लेकिन इलाज के बाद अब वो सही है।”

वहीं, यूपी की राजधानी लखनऊ से 20 किमी. की दूरी पर गांगजोर गांव के किसान रामकिशोर यादव का कहना है, ‘पेस्टीसाइड से नुकसान की बात मैं सुनता आया हूं। गांव के ही एक किसान की पैरों में इससे दिक्कत आ गई थी। फिलहाल उसका इलाज चल रहा है। गांव में कई लोगों को डायबिटीज है, लेकिन हमें पेस्टीसाइड से डायबिटीज होने की जानकारी नहीं थी।”

किसानों को खुद की सुरक्षा का ख्याल नहीं: दुकानदार


पेस्टींसाइड बेचने वाले दुकानदार भी कीटनाशक से किसानों की सेहत को नुकसान होने की बात कहते हैं। लखनऊ में स्थित भागीदारी एग्रोटेक के मालिक फरहाद खान का कहना है, ”कीटनाशक से सेहत को नुकसान तो हो ही रहा है। डायबिटीज होने की बात मुझे नहीं पता, लेकिन और कई तरह की बीमारियां इससे होती हैं। इससे कैंसर भी हो सकता है।”

फरहाद खान कहते हैं, ”किसान अपने बचाव के लिए दस्ताने और मास्क खरीद सकते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में कोई इसकी मांग नहीं करता। चूंकि मांग नहीं है तो स्टॉल में भी दस्ताने नहीं रखे जाते।” फरहाद कहते हैं, ”किसानों को ऑर्गेनिक खेती करनी चाहिए इससे उनकी सेहत को नुकसान नहीं है साथ ही फसल भी अच्छीे होती है।” जब हमने पूछा कि पेस्टीरसाइड के संपर्क में तो आप भी आते हैं, क्या आप दस्ता ने का इस्तेंमाल करते हैं? फरहाद ने इसका ना में जवाब दिया।

वहीं, रानू फर्टिलाइजर के मालिक पुनीत मिश्रा का कहना है, ”पेस्टीसाइड से नुकसान तो है, लेकिन इसके बारे में मुझे ज्या दा जानकारी नहीं। डायबिटीज होने की बात का तो पता ही नहीं।” उन्होंने बताया, ”किसानों को अगर हम दस्ताजने लेने को कहते हैं तो वो पेस्टीसाइड से नुकसान न होने की बात कहते हैं। इस वजह से किसानों की ओर से दस्ता‍ने या मास्क की मांग नहीं की जाती।” जब हमने पुनीत से पूछा कि क्यास आप दुकान में दस्ताोने पहन कर रखते हैं? इसपर पुनीत ने कहा, दिनभर दस्ताने पहने रहना मुमकिन नहीं है।

दुकानदारों से बातचीत के दौरान ही हमारी मुलाकात एक किसान राममिलन से हो गई। राममिलन ने बताया, ”मेरे गांव में कई लोगों को डायबिटीज है, लेकिन ये किस वजह से है पता नहीं। पेस्टीसाइड से सेहत को नुकसान होने की बात मुझे पता है। इसलिए मैं ऑर्गेनिक खेती कर रहा हूं। सरकार को पेस्टीपसाइड को बैन करने के लिए सख्त कानून लाना चाहिए।”

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इन कीटनाशकों की है ज्यादा मांग

क्लोरोसाइफर

प्रोकेनोसाइफर

लेन्ड्रा

ईमीडा

कीटनाशक का 1 प्रतिशत ही कीड़ों पर करता है असर

गौरतलब है कि मदुरई कामराज विश्वविद्यालय, तमिलनाडु के वैज्ञानिकों ने अध्ययन में ये भी पाया कि खेतों में कीटनाशक का मात्र 1 प्रतिशत कीड़ो पर काम करता है। लेकिन बाकी का कीटनाशक उसे छिड़कने वाले किसान, फसल, मिट्टी और हवा पर असर डालता है। कीटनाशक के छिड़काव से हवा प्रदूषित हो जाती है, जिससे आसपास रहने वाले लोगों पर भी इसका दुष्प्रसभाव होता है।

इन 18 कीटनाशकों पर सरकार ने लगाया प्रतिबंध

केंद्र सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने हाल ही में भारत में 18 कीटनाशकों को प्रतिबंधित किया था। बेनोमाइज, कार्बराइल, डायजिनोन, फेनारियोल, फेथिओन, लितुरोन, मिथाक्सी इथाइल, मरकरी क्लोराइड, सोडियम साइनाइट, थियोमेटोन, टाइडेफोर्म, ट्राइफ्लूरेलिन, अलाक्लोर, डाइक्लोरोवास, फोरेट, फोस्फोमिडोन, ट्रायोजोफोज व ट्राइक्लोरोफोर्न हैं।

भारत में पेस्टीनसाइड का बढ़ता करोबार

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आठ से नौ फ़ीसदी सालाना दर की हिसाब से पेस्टीसाइड की खपत बढ़ रही है। हालांकि पेस्टीसाइड के बाजार में विदेशी कंपनियों क ज्यादा भागीदारी है। क्योंहकि भारत में कीटनाशक क्षेत्र वर्ष 1968 के इंसैक्टेसाइड कानून से संचालित होता है। इस कानून की जटिल प्रक्रिया की वजह से भारतीय कंपनियों का इस क्षेत्र में काम करना मुश्किल होता है।   

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