लखनऊ। दो साल पहले अफ्रीका में मक्के की खेत में तबाही मचाने वाला कीट कर्नाटक में पहली बार दिखा है, ये कीट दर्जन से अधिक फसलों को बर्बाद कर सकता है। ये कीट झुंड में पहुंचकर फसल को बर्बाद कर देते हैं।
स्पोडोप्टेरा फ्रूगीपेर्डा (फॉल आर्मीवार्म) प्रजाति का ये कीट भारत में नहीं पाया जाता है, इसे पहली बार मई-जून में कर्नाटक के चिककाबल्लपुर जिले के गोविरिद्नूर में मक्का की फसल में देखा गया था, जब वैज्ञानिक फसल में कैटर पिलर से होने वाले नुकसान की जांच कर रहे थे, इससे मक्का की फसल को काफी नुकसान हुआ था।
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दो साल पहले अफ्रीकी महाद्वीप में एक कीड़े की प्रजाति वहां की फसलों को चट कर गई थी। इस कीट का मुख्य भोजन ज्वार की फसल होती है। छोटे से आकार के इस कीड़े भले ही छोटे हों, लेकिन ये इतनी जल्दी अपनी आबादी बढ़ाते हैं कि देखते ही देखते पूरा खेत साफ कर सकते हैं। यही वजह है कि पिछले दो वर्षों में अफ्रीका में ज्वार, सोयाबीन आदि की फसल के नष्ट हो जाने से करोड़ों का नुकसान हुआ।
बेंगलूरू कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ये पुष्टि की है। विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के एक रिसर्चर प्रभु गणिगेर कहते हैं, “खेतों से एकत्रित किए गए इस कीट के लार्वा के पालन में हमें थोड़ा वक्त लगा। लार्वा की वास्तविक पहचान के लिए उसे लैब में पाला गया है। हमने पाया कि इन कीटों को कैद में रखना मुश्किल है क्योंकि ये एक-दूसरे को खाने लगते हैं। करीब एक महीने बाद कीट के व्यस्क होने पर उसकी पहचान स्पीडओप्टेरा फ्रूजाइपेर्डा के रूप में की गई है।”
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ये खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके लार्वा मक्का, चावल, ज्वार, गन्ना, गोभी, चुकंदर, मूंगफली, सोयाबीन, प्याज, टमाटर, आलू और कपास सहित कई फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। क्योंकि इन कीटों को खत्म करने के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं रहते हैं, इसलिए इन्हें खत्म करना आसान नहीं होता है। चार साल पहले दक्षिण अमेरिका में पाए जाने वाले लीफ माइनर मॉथ पतंगे से टमाटर की फसल को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।
स्पोडोप्टेरा फ्रूगीपेर्डा उत्तरी अमेरिका, कनाडा और अर्जेंटिना में पाए जाना वाला कीट है, साल 2017 में अफ्रीका में इस कीट की वजह फसलों को काफी नुकसान हुआ था। लेकिन अभी तक एशिया में अभी तक इसकी मिलने की सूचना नहीं मिली थी।
डॉ गणिगेर के अनुसार, “स्पीडओप्टेरा और कट वॉर्म के बीच अंतर करना आसान है। इनके शरीर पर काले धब्बे होते हैं और दुम के पास चार विशिष्ट काले धब्बे होते हैं। किसान इन विशेषताओं के आधार पर इस प्रवासी कीट की पहचान कर सकते हैं। हालांकि, यह नहीं पता चला है कि यह प्रवासी कीट भारत में किस तरह पहुंचा है।”
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वो आगे बताते हैं, “संभव है कि कीटों के अंडे पर्यटकों द्वारा अनजाने में लाए गए हों या फिर उनके अंडे बादलों से बहुत दूर तक पहुंचे और बारिश से फैल गए। कीटों के अंडों की इस तरह की बारिश और पौधों में परागण होना कोई नई बात नहीं है। ऐसे कीटों के विस्तार को रोकने के लिए जागरूकता का प्रसार बेहद जरूरी है।” (इंडियन साइंस वायर)