स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
बहराइच। कर्ज़ माफी का फरमान सुनकर जिन किसानों के चेहरे ख़ुशी से खिले थे, खेतों में हंसिया पहुंचते ही अब वो चेहरे मुरझा गए हैं। जहां एक तरफ गेहूं की पैदावार में आयी गिरावट से किसानों की उम्मीदें हाशिए पर चली गई हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकारी गेहूं खरीददारी के लक्ष्य पर भी तलवार लटक रही है।
इंडो-नेपाल बॉर्डर पर बसा ये जनपद तराई क्षेत्र की श्रेणी में शुमार है। औद्योगिक क्षेत्र न होने की वजह से कृषि यहां का मुख्य व्यवसाय है। आर्थिक व तकनीकी विकास न होने की वजह से यहां के किसान पारम्परिक खेती पर ही निर्भर रहते हैं, लेकिन मौजूदा समय में फसलों के उत्पादन को देखकर किसानों की उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
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जिला मुख्यालय से 75 किमी. पश्चिम मिहीपुरवा ब्लॉक के ग्रामसभा उर्रा सेमरहना के निवासी रामप्रीत (58 वर्ष) बताते हैं, “आठ बीघा गेहूं लगाया था जिसमें लगभग 10 हजार की लागत आई थी। जब फसल की कटाई की तो मात्र 15 कुंतल ही गेहूं निकला। अब समझ नहीं आ रहा की सात लोगों के परिवार को साल भर रोटियां मिलेंगी की नहीं। बाकी के खर्चों के बारे में सोचना तो बहुत दूर की बात है।”
आठ हजार रुपया गेहूं की बुवाई में लगाया था। जब फसल काटी तो 13 कुंटल गेहूं निकला। हमारे पास नौ बीघा खेत हैं अब हम इन फसलों की खेती के बजाय पिपरमिंट की खेती करेंगे, क्योंकि जब किसान होने के बाद भी अनाज बाजार से खरीदना पड़े तो फिर नगदी वाली फसलों की खेती सबसे बढ़िया है।
चन्द्रभान (60 वर्ष), नैनिहा सेमराहना ग्रामसभा, मिहीपुरवा ब्लॉक
ऐसे में न सिर्फ किसानों को दिक्कतें आ रही हैं बल्कि जिला प्रशासन ने जो रबी विपरण वर्ष 2017-2018 में 83100 मीट्रिक टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा था उसको पूरा करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। अभी सरकार की तरफ से क्रॉप कटिंग की प्रक्रिया चल रही है। उत्पादन के आंकड़े आना बाकी है, लेकिन कोई भी सरकारी आंकड़े यहां पर किसानों की तक़दीर और तस्वीर नहीं बदल सकते।
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