जुलाई महीने में करें सांवा, कोदो जैसे मोटे अनाजों की खेती, बिना सिंचाई के मिलेगा बढ़िया उत्पादन

इसकी सबसे खास बात ये होती है इसमें सिंचाई की जरूरत दूसरी फसलों के मुकाबले बहुत कम पड़ती है।
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लखनऊ। केंद्र सरकार मोटे अनाज को बढ़ावा दे रही है, अब तो कई बड़ी कंपनियां मोटे अनाजों के उत्पाद भी बनाने लगी हैं, ऐसे में किसान जून से जुलाई के बीच अभी सावां, कोदो जैसे मोटे अनाज की बुवाई कर बेहतर मुनाफा कमा सकता है।

गोरखपुर ज़िले के जंगल कौड़िया ब्लॉक के राखूखोर चिकनी गाँव के किसान रामनिवास मौर्या पिछले कई वर्षों सावा, कोदो जैसे मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं। रामनिवास मौर्या कहते हैं, “हमारे पूर्वज तो बहुत साल से इनकी खेती करते आ रहे थे। लेकिन अब नहीं करते हैं। हमारा गाँव राप्ती और रोहिन दो नदियों के बीच में रहता पड़ता है, कभी सूखा पड़ा रहता है तो कभी बाढ़। ऐसे में इन फसलों पर इनका कोई असर नहीं पड़ता है। इसमें धान गेहूं से ज्यादा फायदा हो रहा है।”

सांवा की फसल भारत की एक प्राचीन फसल है यह सामान्यतः असिंचित क्षेत्रों में बोई जाने वाली सूखा प्रतिरोधी फसल है। इसकी सबसे खास बात ये होती है इसमें सिंचाई की जरूरत दूसरी फसलों के मुकाबले बहुत कम पड़ती है। इसका चारा पशुओं के लिए काम आ जाता है। इसमें चावल की तुलना में पोषक तत्वों के साथ-साथ प्रोटीन की पाचन योग्यता 40 प्रतिशत तक होती है।

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सरकार ने 2018 को राष्ट्रीय मोटे अनाज का वर्ष भी घोषित करने का निर्णय लिया है। पोषण सुरक्षा को प्राप्त करने के लिए मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं क्योंकि 2016-17 के फसल वर्ष में खेती का रकबा घटकर एक करोड़ 47.2 लाख हेक्टेयर रह गया जो रकबा वर्ष 1965-66 में तीन करोड़ 69 लाख हेक्टेयर था।

सांवा की फसल काम उपजाऊ वाली मिट्टी में बोई जाती है। इसे आंशिक रूप से नदियों के किनारे की निचली भूमि में भी उगाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए बलुई दोमट और दोमट मिट्टी सबसे सही होती है।सांवा के लिए हल्की नम व उष्ण जलवायु उपयुक्त होती है।

सावां की टी-46, आई.पी.-149, यू.पी.टी.-8, आई.पी.एम.-97, आई.पी.एम.-100, आई.पी.एम.-148 व आई.पी.एम.-151 जैसी किस्मों की बुवाई करें। जबकि कोदों की जे.के.-6, जे.के.-62, जे.के.-2, ए.पी.के.-1, जी.पी.वी.के.-3 जैसी किस्मों की बुवाई करें।

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मानसून के शुरू होने से पहले खेत की जुताई कर लेनी चाहिए, जिससे खेत में नमी की मात्रा संरक्षित हो सके। मानसून के प्रारम्भ होने के साथ ही मिट्टी पलटने वाले हल से पहली जुताई तथा दो-तीन जुताईयां हल से करके खेत को तैयार कर लेना चाहिए।

सांवा की बुवाई का सही समय 15 जून से 15 जुलाई तक है। इसकी बुवाई ज्यादातर छिटकवा विधि से करते है। लेकिन बुवाई कूड़ बनाकर तीन से चार सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए। कुछ स्थानों पर रोपाई भी करते है लाइन से लाइन की दूरी 25 सेमी रखनी चाहिए।


कोदों की बुवाई का उत्तम समय 15 जून से 15 जुलाई तक है। जब भी खेत में पर्याप्त नमी हो बुवाई कर देनी चाहिए। कोदों की बुवाई अधिकतर छिटकवां विधि से की जाती है, लेकिन यह वैज्ञानिक नहीं है क्योंकि इससे हर पौधे के बीच बराबर दूरी नहीं छूटती तथा बीज का अंकुरण भी एक सा नहीं होता। पंक्तियों में की गयी बुवाई अधिक लाभकारी होता है। इसमें पंक्ति से पंक्ति की दूरी 40 से 50 सेमी और पौधे से पौधे की बीज की दूरी 8 से 10 सेमी होना चाहिए। बीज बोने की गहराई लगभग 3 सेमी. होना चाहिए।

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50 से 100 कुंतल कम्पोस्ट खाद के साथ-साथ 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम तत्व पोटाश के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के पहले और नाइट्रोजन की आधी मात्रा 25 से 30 दिन बुवाई के बाद खड़ी फसल में देना चाहिए।

अधिकतर सांवा की खेती में सिंचाई की नहीं करनी पड़ती है क्योंकि यह खरीफ की फसल है लेकिन काफी समय तक जब पानी नहीं बरसता है तो फूल आने की अवस्था में एक सिंचाई करना अति आवश्यक है। जल भराव की स्थिति वाली भूमि में जल निकास होना आवश्यक है।

सांवा में दो निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है। पहली निराई-गुड़ाई 25 से 30 दिन बाद और दूसरी पहली के 15 दिन बाद करना चाहिए निराई-गुड़ाई करते समय विरलीकरण भी किया जाता है। 

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