जिस तरह से छोटे जोत के किसानों की सँख्या बढ़ रही है, ऐसे में कृषि विशेषज्ञ किसानों को फ़सल विविधीकरण अपनाने की सलाह दे रहे हैं। इस विधि में एक साथ कई तरह की फ़सलों की ख़ेती की जाती है। चलिए जानते हैं इस विधि में किन फ़सलों का चुनाव करना चाहिए।
उन क्षेत्रों में जहाँ वार्षिक बरसात 50 सेंटीमीटर से कम होती है और जल संसाधन सीमित होते हैं, वहाँ फलदार वृक्षों का चुनाव करते हैं, जिनमें पानी बहुत कम लगता है, जैसे करौंदा, आँवला, फालसा, मोरिंगा के साथ ही आम अमरूद जैसे फलदार वृक्षों को लगा सकते हैँ।
इन पेड़ों से तीन-चार सालों में फल आने शुरू हो जाते हैं, यही नहीं इन पेड़ों के बीच हम चार-पाँच मीटर की जगह छोड़ते हैं, जहाँ हम मौसमी फ़सल की ख़ेती करके अधिक मुनाफ़ा कमा सकते हैं। लेकिन फ़सलों और पेड़ों को लगाते समय इस बात का ध्यान ज़रूर रखें कि ये सभी एक दूसरे के पूरक की तरह काम करें, इसलिए दलहनी (दाल की फ़सल), तिलहनी (जिनसे तेल का उत्पादन होता है) या फिर सब्जियों की बुवाई कर सकते हैं।
दलहनी फसलों की हम बात करें तो अभी मानसून आ गया है, इसलिए अभी बाग में मूंग की बुवाई कर सकते हैं। मूँग की कुछ उन्नत किस्में हैं, जिनकी ख़ेती किसान कर सकते हैं, जैसे पूसा 9231, पूसा विशाल, पूसा विराट जैसी कुछ किस्में हैँ, जोकि 65-70 दिनों में तैयार हो जाती हैं।
मूँग की अगर बात करें तो बाजार में इसका भाव भी अच्छा मिल जाता है और मूँग की पौधे में मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाते हैं, जिससे पेड़ों को अलग से यूरिया जैसे उर्वरक नहीं डालने होंगे।
इसके साथ ही किसान लोबिया की ख़ेती भी कर सकते हैं, लोबिया की पूसा कोमल, पूसा सुकोमल जैसी किस्मों की ख़ेती कर सकते हैं, जिनसे 40-50 दिनों में हरी फलियाँ मिलने लगती हैं। प्रोटीन से भरपूर इस सब्ज़ी फ़सल की काफी माँग होती है।
इसके साथ ही किसान ग्वार की ख़ेती भी कर सकते हैं, इसका इस्तेमाल सब्ज़ी के रुप में होता है। इसकी आरजीसी 1002 या फिर आरजीसी 1003 की किस्म की बुवाई कर सकते हैं।
अभी किसान खरीफ में मूँगफली और सोयाबीन की ख़ेती भी कर सकते हैं, इन फ़सलों की ख़ेती करने से ये फ़ायदा होता है कि किसान को पेड़ों को अलग से खाद पानी देने की ज़रूरत नहीं होती है। एक ही खाद पानी में दो तरह से फ़ायदा हो जाता है।
ये तो बात हुई खरीफ की, किसान रबी सीजन में सरसों की जल्दी तैयार होने वाली किस्मों की बुवाई कर सकता है। अगर सही सही हिसाब लगाया जाए तो किसान एक हेक्टेयर में दो से ढ़ाई लाख़ तक कमाई कर सकता है। (गेहूँ, जौ,आलू, चना, मसूर, अलसी, मटर और सरसों रबी की प्रमुख फसलें मानी जाती हैं। )
फसल विविधीकरण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कायम रखने के लिए कारगर है। इसमें एक ही खेत में एक से अधिक फसल लगाने से कम लागत में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ेगी और खेत बंजर होने से बचते हैं। क्योंकि खेत में नियमित पारंपरिक फसलों की बुवाई करने से धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है, जिससे फसल का उत्पादन भी कम हो जाता है। इससे किसानों का मुनाफा भी घटता है।
फसल विविधीकरण से कृषि क्षेत्र में कीड़े, बीमारियाँ, खरपतवार और मौसम संबंधी जोखिमों की संभावना कम होती है और खेती में खरपतवार नाशक व कीटनाशक की कम ज़रूरत होती है।
फसल विविधीकरण से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी होता है और पर्यावरण में भी सुधार होता है। फसल विविधीकरण में फलीदार दलहनी लगानी चाहिए। यह फलियां मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने के साथ वायुमंडलीय नाइट्रोजन की मात्रा भी नियतन करती है।
(डॉ एसएस राठौर, आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में वैज्ञानिक हैं।)