इस समय सरसों की फ़सल में फूल आने लगे हैं, ऐसे में कई तरह के कीटों का प्रकोप भी बढ़ गया है। ऐसा ही एक ख़तरनाक कीट तेला भी होता है, जिसे चेपा भी कहते हैं।
इस कीट के प्रकोप से फूल मुरझाना शुरु कर देते हैं और गांठ बनना शुरू हो जाती हैं, जिससे आगे फलियाँ नहीं बनती हैं। अगर फलियों में इसका प्रकोप आता है तो तेल की मात्रा को भी कम कर देता है।
अक्टूबर और नवंबर की फ़सल की बुवाई में इसका प्रकोप ज़्यादा होता है। इसकी रोकथाम की अगर बात करें तो सबसे पहले फूलों में देखें कि कितने कीट लगे हैं।
अगर दस पौधों में से एक में माहू लगा दिखे तो किसान भाई कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं। इसके लिए ऑक्सीडेमेटोनमिथाइल या फिर डाईमेथोएट की 200 मिली को 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ में छिड़काव करें। लेकिन इसके छिड़काव के समय किसान भाई इस बात का ज़रूर ध्यान दें कि हमेशा दोपहर के बाद ही छिड़काव करें। क्योंकि सुबह से दोपहर तक मधुमक्खियाँ आती हैं, उस समय छिड़काव करने पर उन्हें नुकसान हो सकता है।
सरसों में लगने वाले कीट और बीमारियाँ
चेपा (मोयला) कीट, पेन्टेड बग कीट, आरा मक्खी कीट सरसों के मुख्य नाशी कीट है। जबकि तना गलन रोग, झुलसा रोग, सफेद रोली रोग और तुलासिता रोग सरसों के मुख्य रोग हैं। सरसों का यह रोग बहुत ही महत्वपूर्ण है और इस रोग के लगने से उत्पादन में कमी हो जाती है।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़िया उत्पादन के लिए बुआईके पहले बीजोपचार ज़रूर कर लेना चाहिए। इसके अलावा खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रतिलीटर की दर से या कॉरपाऑक्सीक्लोराइट 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।