जानिए कैसे करें पालेकर खाद्य जंगल पंच स्तरीय मॉडल में कल्पवृक्ष नारियल की बागवानी

सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती से सारी दुनिया का परिचय कराने वाले पद्मश्री सुभाष पालेकर, जिनकी प्रेरणा से आज लाखों की संख्या में किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। गाँव कनेक्शन की इस खास सीरीज में सुभाष पालेकर आप सभी को खेती-किसानी से जुड़ी अनोखी यात्रा पर ले जाएँगे। इस भाग में बता रहे हैं नारियल की बागवानी के बारे में।
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इसके पहले के लेख में हमने पढ़ा कि नारियल का पेड़ कैसे साक्षात कल्पवृक्ष है और हमारे पारिवारिक आत्मनिर्भरता के साथ -साथ उसके अनेक औद्योगिक उत्पादन हमारे घर में निर्मित करके हमारे गाँव में ही नये रोज़गार पैदा कर सकते हैं और‌ गाँवों से युवाओं का शहरों की तरफ होने वाला पलायन रोक सकते हैं।

भारत में हजारों सालों से नारियल की खेती होती आ रही है, तब यांत्रिकीकरण नहीं था, तब घर घर में नारियल के सभी औद्योगिक उत्पादन घर में ही या गाँव में निर्माण होते थे।‌ आज हमारा देश हर साल लगभग 150 लाख टन खाद्य तेल (पाम तेल, सोयाबीन का तेल, सूरजमुखी का तेल) मलेशिया इंडोनेशिया रशिया युक्रेन जैसे देशों से आयात करता है। कहने का मतलब खाद्य तेल में हमारा देश कभी भी आत्मनिर्भर नहीं था और आज भी नहीं है। इसका अर्थ यह है कि हमारे देश में खाद्य तेल की आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए विशाल क्षेत्र में नारियल के पेड़ लगाने की पूरी संभावना और जरुरत है। जंगली जानवरों से, बंदरों से और पंछियों से नुकसान होने वाले फलों के विभिन्न फसलों के जगह पर सबसे अच्छा विकल्प है नारियल के पेड़ लगाना। कैसे?.

1) फलों का नया बगीचा लगाते समय किसानों के मन में कई आशंकाएँ रहती हैं कि हम हमारे फलों के बगीचे को जंगली जानवरों से, बंदरों से और पंछियों से होने वाले बड़े नुकसान को बचा नहीं सकते। सामने नुकसान होते हुए सिर्फ देखना पड़ता है और आखिर में इतने घने प्रयासों से लगाये बगीचे को काटकर निकालने के लिए मजबूर होना पड़ता है और उसे खड़ा करने के लिए बैंक से और साहूकारों से कर्ज लेकर बड़ी मात्रा में लगाए पैसे को मिट्टी में मिलते हुए देखना पड़ता है। किसानों की इस गंभीर समस्या पर विधानसभा में या लोकसभा में कभी भी गंभीरता से चर्चा होते हुए और किसानों को समाधान देते हुए मैंने आज तक नहीं देखा। दुनिया को पोसकर उन्हें जीनेका अधिकार देने वाला किसान कितना असुरक्षित और असहाय है?

फिर इस समस्या का समाधान हमें ही खोजना है और वह समाधान है नारियल का बगीचा लगाना। नारियल के फलों को कोई भी जंगली जानवर खाता नहीं, दुनिया का कोई भी बंदर खाता नहीं और पंछी खा नहीं सकते। इन तीनों विध्वंसक आक्रमणों से नारियल का बगीचा पूरी तरह से तरह सुरक्षित रहता है।

2) अन्य फल पेड़ लगाने के बाद वे साल में एक ही बार उत्पादन देते हैं या अल्फांसो जैसे आम के पेड़ एक साल छोड़कर एक साल में फल उत्पादन देते हैं। जैसे ही सब के बगीचे के फल बाजार में एक ही समय आते हैं, तब उनके दाम बहुत नीचे गिर जाते हैं या हर साल जैसे फलों की उपज या कृषि उपज मंडी में किसानों द्वारा बेचने के लिए लाई जाती है, तब तुरंत सरकार उस कृषि उपज के निर्यात को रोक देती है‌ और जबरन अनावश्यक आयात करतीं हैं।

परिणाम स्वरूप, फलों के और कृषि उपज के दाम बहुत गिर जाते हैं। मिट्टी के मोल उसे बेंचना पड़ता है। व्यापारी और कृषि उपज प्रक्रिया उद्योग सस्ते दामों में खरीदकर इस स्थिति का लाभ उठाते हैं। किसान हर साल यह छल असहाय होकर देखते रहता है। इस विषय पर आंदोलनों की धूम मचाने वाले सभी किसान संगठन अभी तक इस समस्या का सही अहिंसक संवैधानिक समाधान देने में विफल रहे हैं।

नारियल का पेड़ हमें बारह मास फलों का उत्पादन देता है। क्योंकि नारियल के पेड़ पर हर महीने में पुष्प निकालता है, उससे नारियल के फलों के अनेक गुच्छे लगते हैं, हर गुच्छे में 6 से 12 फल लगते हैं और बारह महीने में फल परिपक्व होकर अपने आप नीचे गिरते हैं, आपको सिर्फ गिरे हुए परिपक्व फलों को जमीन से उठाना हैं और घर में संग्रहित करना है। फल तोड़ने के लिए महंगे कुशल‌ मजदूर ढुंढने की बिल्कुल जरुरत नहीं।

इस तरह हर महीने हमें फलों का उत्पादन मिलता है, एटीएम मशीन है नारियल का पेड़। एक बार नारियल का पेड़ लगाया तो सौ साल, दो सौ साल तक उत्पादन देता रहता है। नारियल के फलों को आहार संबंधी, औद्योगिक उत्पाद संबंधी और आध्यात्मिक संबंधी सालभर निरंतर मांग रहने से दामों में गिरावट कभी नहीं होती।

3) बाकी आम, चीकू, आमरुद,सेब , सीताफल, संतरा, मोसंबी ,नींबू, अंगूर, अनार, अंजीर, केला, पपीता , कटहल, बेर, जामून जैसे फलों को हमें पकने के बाद तुरंत किसी भी दाम से बेंचना ही पड़ता है, नहीं तो वे सड़ने लगते हैं, व्यापारी हमारे इस असहायता का पूरा लाभ उठाकर कम दामों में खरीदते हैं।

नारियल का फल पकने के बाद सड़ता नहीं, पूरे साल हम भंडारण कर सकते हैं और इस मायावी बाज़ार रुपी चक्रव्यूह से खुद को बचा सकते हैं। सामान्यता ग्रीष्म काल में 46 दिनों में और वर्षा काल में हर 60 दिनों के अंतराल पर फलों की तोड़ाई की जाती है। खोपड़ा उत्पादन के लिए पूरी तरह से पकने पर नारियल के फलों की ( श्रीफलों की ) तोड़ाई की जाती है। दूसरी ओर नारियल पानी के लिए बौने ठेंगु पेड़ों के कोमल फलों को उनके 6 से 7 महीने की अवस्था में तोड़े जाते हैं। नारियल जटा के लिए फलों को उनके आयु के 11 महीने में तोड़ा जाता है। पूरे साल यह नारियल पेड़ रुपी एटीएम मशीन बिना पासवर्ड मांगे पैसे देती रहती है।

4) अन्य फलों को कृषि उपज मंडी बाजार में बेचना ही पड़ता है। खेती में कृषि कार्य मे पूरे साल भर होने वाले व्यस्तता के कारण हम हमारी बहुत बड़ी मात्रा में निकलने वाली नाशीवंत उपज को सीधे उपभोक्ताओं को बिना कोई बिचौला बेचने में असफल बनते हैं। लेकिन, नारियल की फसल ऐसी है कि रोज मंदिरों में बहुत ज्यादा मांग होती है।

होटल उद्योगों में कच्चे नारियल फलों की डोसा इडली के साथ चटनी बनाने के लिए रोज मांग रहती है। मसाला उद्योगों में नारियल के सूखे गिरी की बहुत बड़ी मांग है। रस्सी निर्माण उद्योगों में और रेशे से अन्य वस्तुएं बनाने वाले उद्योगों में नारियल फलों के छिलकों की और चोटी की बहुत बड़ी मांग रहती है।

‌शहरों में और कस्बों में गली गली में नारियल के पानी को बेचने वालों के हाथगाड़ियों की हलचल रहती है। पौधशाला नर्सरी उद्योगों में नारियल के जटाओं की बहुत बड़ी मांग रहती है। इस स्थिति में हमें एक ही प्रयास करना है कि पहले दाम निश्चित करके रोज मंदिरों में नारियल बेचने वाले व्यापारियों को, नारियल पानी बेचने वाले हाथ गाड़ी वालों को, मसाला उद्योगों को, नर्सरी धारकों को, होटल उद्योगों को , रस्सी और वस्तुओं का निर्माण करने वाले उद्योगों को बिना रुकावट नारियल फलों की रोज आपूर्ति करना है।

हमारे नारियल फल सुभाष पालेकर कृषि से पैदा जहर मुक्त, पोषणयुक्त और औषधि होने के कारण इसे खरीदने वालें इसके महत्व को समझेंगे। हमें सिर्फ ये करना है, बाजार से जिस दामों में नारियल के फलों को वे खरीदतें है उन्हीं दामों में हमें उन्हें नारियल के फलों को बेंचना है। बाद में जब उनका हमपर भरोसा हो जाता है और उन्हें जहर मुक्त पोषणयुक्त औषधि फलों का महत्व मालूम हो जायेगा तब वे हमे बाजार मूल्य से अधिक दाम जरुर देने के लिए बाध्य होंगे।

इन सारे मुद्दों को सामने रखते हुए अब हम इस नतीजे पर पहुँच जाते हैं कि हमें पालेकर खाद्य जंगल पंचस्तरीय मॉडल में नारियल के पेड़ों को खड़ा करना ही है। कैसे खड़ा करना है, नारियल के बीजों का चुनाव कैसे करना है, बीजों को सीधे भूमि पर लगाना है या पौधशाला से लाना है, पेड़ों का संवर्धन कैसे करना है, इन सारे मुद्दों पर हम अगले लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे।

पहला भाग पढ़ें: जानिए कल्पवृक्ष नारियल का इस्तेमाल पालेकर खाद्य जंगल पंच स्तरीय मॉडल में क्यों और कैसे करना है ज़रूरी?

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