इन कीटों की वजह से आप तक नहीं पहुँच पाएगी आपकी पसंदीदा लीची?

कभी चमकी बुखार के अफवाहों के चलते तो कभी हीट वेव का असर, पिछले कई साल से लीची किसानों को नुकसान उठाना पड़ा है; अब किसानों के सामने स्टिंग कीट नई मुसीबत बन रहे हैं।
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पिछले कई साल से लीची की खेती करने वाले अरशद अली को चिंता सता रही है कि इस बार भी शायद उन्हें नुकसान उठाना पड़े। दो बार कीटनाशक का छिड़काव करने के बाद भी उन्हें स्टिंग कीटों ने परेशान कर रखा है।

बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के महेसी गाँव के अरशद अली के बाग में लीची के लगभग 1500 पेड़ हैं, अरशद अली गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “ऐसा पहली बार नहीं हुआ है; पिछले तीन-चार साल से ही हो रहा है, लीची में फूल लगने के बाद से स्टिंग कीट लगने लगते हैं, इस बार भी वही हाल है, अगर ऐसा ही रहा तो लागत निकालनी भी मुश्किल हो जाएगी।”

महेसी गाँव के अरशद अली अकेले नहीं हैं, जो इन कीटों से परेशान हैं; उनके आसपास के जिलों में इसका प्रकोप है।

बिहार में देश की कुल लीची उत्पादन का आधे से अधिक उत्पादन होता है; पिछले कई वर्षों से लीची के उत्पादन पर इन कीटों के साथ ही बढ़ती गर्मी का भी असर हो रहा है।

बिहार के मुजफ्फरपुर में स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र ने स्टिंग कीटों को लेकर एडवाइजरी भी जारी की है; कि कैसे किसान अपनी फसल को इन कीटों से बचा सकते हैं।

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ बिकास दास गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “ये यहाँ के लिए नया कीट, पिछले कुछ साल में ये तेजी से बढ़े हैं; समय के साथ इनकी संख्या भी बढ़ गई है, पहले कुछ जिलों में इसका प्रकोप था, इस समय कई जिलों में बढ़ गया है।”

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र पर पूर्वी चंपारण के समस्तीपुर जैसे कई जिलों के किसान अपनी परेशानी लेकर पहुँच रहे हैं।

डॉ बिकास दास आगे बताते हैं, “वैसे तो बाग में ये साल भर रहते हैं, लेकिन अक्टूबर के महीने में ये निकलते हैं और जैसे फूल और नए कल्ले निकलते हैं। ये उन्हें खाना शुरु कर देते हैं; अगर ध्यान न दिया गया तो धीरे-धीरे सारे फूल खा जाते हैं।”

लीची स्टिंक बग कीट का आक्रमण हाल ही में बिहार के लीची के बागों में देखा गया है, जहाँ यह राज्य से लीची की खेती को पूरी तरह से खत्म करने की क्षमता रखता है। बिहार में इस कीट को सबसे पहले साल 2018 में बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले के मेहसी प्रखण्ड के दामोदरपुर और मिर्जापुर गाँव के कुछ बागों में देखा गया। शुरुआती वर्षों के कुछ बागों में प्रकोप से बढ़कर वर्ष 2021 में (फरवरी-जून 2021 के दौरान) कीट प्रभावित बागों का क्षेत्रफल लगभग 3 किमी के दायरे में फैल गया।

बिहार में होता है सबसे अधिक उत्पादन

बिहार भारत में लीची का प्रमुख उत्पादक है। भारतीय बागवानी डेटाबेस द्वारा बनाए गए आंकड़ों के अनुसार, 2011 में भारत में कुल लीची उत्पादन में राज्य का हिस्सा 51.22 प्रतिशत था।

साल 2011 के आंकड़ों के अनुसार बिहार ने कुल 216,900 मीट्रिक टन लीची का उत्पादन हुआ, जिसके बाद पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में उत्पादन हुआ, जिसमें 81,200 मीट्रिक टन की उपज दर्ज की गई।

विश्व स्तर पर, भारत चीन के बाद सबसे अधिक मात्रा में लीची का उत्पादन करता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च के मुताबिक देश भर में करीब 83,000 हेक्टेयर में लीची की खेती होती है। बिहार में 35,000 हेक्टेयर में फैले लीची के बाग हैं। बिहार में ज्यादातर किसान शाही और चीन की किस्मों की खेती करते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार कम बारिश और सूखे की वजह से ये कीट ज़्यादा संख्या में नुकसान पहुँचा रहे हैं। डॉ बिकास आगे समझाते हुए कहते हैं, “बारिश कम होने से भी इसका प्रकोप बढ़ जाता है, क्योंकि ये पत्तियों के पीछे अंडे देते हैं और अगर अच्छी बारिश हुई तो ये बारिश के साथ धुल जाते हैं; लेकिन कम बारिश हुई तो बढ़ते जाते हैं; हम अभी इनके बढ़ने के कारण पर शोध कर रहे हैं, लेकिन ये भी एक कारण हो सकता है।”

“क्योंकि साल भर में 50 प्रतिशत बारिश जून से अगस्त में और बाकी 50 प्रतिशत साल के अलग-अलग महीनों में होती रहती है, लेकिन पिछले कुछ साल से मौसम में बदलाव देखा जा रहा है, “उन्होंने आगे कहा।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार साल 2023 में जून-जुलाई के महीने में दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम में शून्य से 48 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है।

प्रदेश के 38 जिलों में से केवल दो (बक्सर और किशनगंज) में पिछले साल मानसून में सामान्य बारिश हुई थी। उत्तर बिहार क्षेत्र को भारत का सबसे अधिक बाढ़ क्षेत्र माना जाता है; लेकिन इन सभी जिलों में सूखे की स्थिति रही। पिछले साल भी मानसून सीजन में राज्य में कम बारिश हुई थी।

लीची ग्रोवर्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह लीची की स्थिति के बारे में बताते हैं, “यही कुछ महीने तो लीची किसानों के लिए काम के होते हैं, साल भर किसान इसका इंतजार करता है, लेकिन जिस तरह पिछले कुछ साल से मुसीबतें आ रही हैं किसान क्या कर सकता है।”

डॉ बिकास आगे कहते हैं, “मित्र कीटों के कम होने से भी इनकी संख्या बढ़ गई है; जहाँ रासायनिक कीटनाशक का छिड़काव ज़्यादा होता है, वहाँ पर ऐसे कीटों की संख्या बढ़ती जा रही है।”

इन कीटों से बचाव के लिए किसान क्या करें?

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र ने स्टिंग कीटों को लेकर एडवाइजरी जारी की है, उसके अनुसार लैम्ब्डा सिहलोथ्रिन 5% ईसी (1.0 मिली/लीटर) क्लोरफेनापायर 10% ईसी (1.0 मिली/लीटर) प्रति लीटर पानी, या फिर लैम्ब्डा सिहलोथ्रिन 5% ईसी (1.0 मिली/लीटर) डायमेथोएट 30% ईसी (1.5 मिलीलीटर) प्रति लीटर पानी, या थी क्लोपिड 21.7% SC (0.5 मिली/ली) फिप्रोनिल 5% एससी (1.0 मिली/ली) प्रति लीटर पानी, या थियाक्लोप्रिड 21.7% SC (0.5 मिली/ली) + प्रोफेनोफॉस 50% ईसी (1.5 मिली/ली) प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए।

जब कीटनाशक छिड़काव किया जाए, तो जहाँ तक संभव हो ज़मीन पर गिरे हुए कीटों को झाडू से इकट्ठा किया जाना चाहिए और यांत्रिक (मैन्युअल) रूप से एक गड्‌ढे में डालकर और मिट्टी से ढंककर नष्ट कर देना चाहिए।

क्या बढ़ती गर्मी से घट जाएगा उत्पादन?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस पूर्वानुमान में कहा है कि मार्च से लेकर मई तक ज़्यादा गर्म हवाएँ चलेंगी, ऐसे में इसका असर लीची के उत्पादन पर भी पड़ सकता है।

डॉ बिकास के अनुसार, “अभी से कुछ कह पाना संभव नहीं है, अगर तापमान 40 से अधिक होता है तो फल फटने लगते हैं, जिनका बाजार में अच्छा दाम नहीं मिलता है।”

इस समय पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मधुमक्खी पालक मधुमक्खी के बॉक्स लेकर बिहार के मुजफ्फरपुर जैसे लीची वाले इलाकों में पहुँच जाते थे, बढ़ती गर्मी का असर शहद उत्पादन पर भी पड़ सकता है।

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