इस तकनीक की मदद से देश में बढ़ सकती है घोड़े और टट्टुओं की संख्या

लेह-लद्दाख में पाए जाने जांस्कारी नस्ल की टट्टुओं की संख्या तेजी से घट रही है; ऐसे में वैज्ञानिकों के प्रयोग से बढ़िया नस्ल के घोड़े और टट्टू पैदा किए जा सकते हैं।
#horse

देश में अच्छे नस्ल के घोड़ों की कमी एक गंभीर समस्या है, ऐसे में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस प्रयोग से अच्छे नस्ल के घोड़ों की संख्या बढ़ाई जा सकती है।

ऐसी ही नस्ल लेह-लद्दाख में पाए जाने वाली देसी टट्टू नस्ल जांस्कारी भी है, इसकी संख्या बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) के बिकानेर स्थित इक्वाइन प्रोडक्शन कैंपस में वैज्ञानिकों द्वारा भ्रूण प्रत्यर्पण तकनीक और हिमीकृत वीर्य का प्रयोग करते हुए भारत में पहली बार ज़ांस्कारी घोड़े के बच्चे का जन्म हुआ है। इसका नाम राज-ज़ांस्कार रखा गया है।

ज़ास्कारी घोड़े जम्मू और कश्मीर के लेह और लद्दाख क्षेत्र में पाए जाते हैं। प्रमुख शरीर का रंग ग्रे के बाद काला और तांबे का होता है। घोड़ों को उनके काम करने, पर्याप्त रूप से दौड़ने और ऊंचाई पर भार उठाने की क्षमता के लिए जाना जाता है।

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ तिरुमला राव तल्लूरी गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “इससे पहले हमने मारवाड़ी नस्ल पर इसका प्रयोग किया था और वो प्रयोग सफल हुआ था। इसलिए हमने दोबारा इस बार जांस्कारी पर ये प्रयोग किया और इस बार भी सफलता मिली है।”

साल 2013 में आयी नस्ल के हिसाब से की गई पशुगणना के अनुसार जांस्कारी नस्ल की संख्या 9,781 थी; अब वहीं 20वीं पशुधन जनसंख्या जनगणना के अनुसार, ज़ांस्कारी की कुल जनसंख्या का आकार 6660 है और यह लुप्तप्राय श्रेणी में आता है। जबकि घोड़े और टट्टू की सभी नस्लों की संख्या 3 लाख 40 हज़ार है, जो 2012 में 6 लाख 40 हज़ार थी।

डॉ. तिरुमला राव तल्लूरी राव आगे कहते हैं, “देश में इस नस्ल के संरक्षण की ज़रूरत है। इस प्रयास में हम इसके संरक्षण के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

सबसे पहले हमने फ्रॉजेन सीमेन से जांस्कारी नस्ल की मादा को कृत्रिम गर्भाधान तकनीक से गर्भवती कराया, उसके बाद जब वो गर्भवती हो गई तो 6.5 दिन बाद उस भ्रूण को निकालकर सरोगेट मदर की कोख में डाल दिया गया और अब 11 महीने बाद राज हिमानी का जन्म हुआ। घोड़ी ने 23 अप्रैल 2024 को एक स्वस्थ मादा बच्चे को जन्म दिया। जन्म के समय बच्चे का वजन 28 किलोग्राम था।

भारत के ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र में लेह-लद्दाख की एक देशी टट्टू नस्ल ज़ांस्करी उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है। घोड़ों की यह नस्ल अपनी कठोरता, अत्यधिक ठंडी जलवायु का सामना करने की क्षमता, अथक परिश्रम करने और उच्च ऊंचाई पर भार ले जाने की क्षमता के लिए जानी जाती है।

भ्रूण स्थानांतरण के माध्यम से बछेड़े पैदा करने में अपनी सफलता को जारी रखते हुए, आईसीएआर-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर के क्षेत्रीय स्टेशन, अश्व उत्पादन परिसर के वैज्ञानिकों ने देश में पहली बार भ्रूण स्थानांतरण तकनीक का उपयोग करके ज़ांस्करी घोड़े के बच्चे का उत्पादन किया है।

इससे पहले 19 मई 2023 को एक सरोगेट माँ को एक ब्लास्टोसिस्ट-स्टेज भ्रूण के ट्रांसफर से 23.0 किलो के मादा घोड़े का जन्म हुआ है। नवज़ात घोड़े का नाम ‘राज-प्रथम’ रखा गया था। इसके बाद चार अक्टूबर 2024 भ्रूण प्रत्यर्पण तकनीक और हिमीकृत वीर्य का प्रयोग करते हुए भारत में पहली बार घोड़ी के बच्चे का जन्म हुआ है। वैज्ञानिकों ने इसका नाम हिमीकृत वीर्य से उत्पन्न होने के कारण “राज-हिमानी” रखा गया था।

डॉ. टीआर टालुरी, अश्व उत्पादन परिसर, आईसीएआर-एनआरसी ऑन इक्विन्स, बीकानेर के नेतृत्व वाली टीम ने अब तक 18 मारवाड़ी घोड़ों के भ्रूण और 3 ज़ांस्करी घोड़ों के भ्रूणों को सफलतापूर्वक विट्रीफाई किया है और वर्तमान में, क्रायोप्रिजर्व्ड भ्रूणों को पुनर्जीवित करने और उन्हें स्थानांतरित करने के लिए अध्ययन जारी है।

वैज्ञानिकों की टीम को बधाई देते हुए, आईसीएआर-एनआरसी के निदेशक डॉ. टीके भट्टाचार्य ने कहा कि घोड़ों की स्वदेशी आबादी को संरक्षित करना समय की मांग है जो संकटग्रस्त या विलुप्तप्राय श्रेणी में हैं। ‘राज-ज़ंस्कार’ देश में भ्रूण स्थानांतरण तकनीक के माध्यम से उत्पादित पहला ज़ांस्करी घोड़े का बच्चा है।

Recent Posts



More Posts

popular Posts