भारत दूध उत्पादन के मामले में विश्व के अग्रणी देशों में शीर्ष पर है। विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन 843.04 मिलियन टन में अकेले भारत का हिस्सा 25 प्रतिशत के लगभग है। इसके बाद विश्व के टॉप पांच देशों की सूची में यूएसए 98.72 मिलियन टन, पाकिस्तान 45.79 मिलियन टन, चीन 35.60 मिलियन टन, ब्राजील 34.11 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन कर रहे हैं।
आंकड़ों पर नजर डाली जाये तो ये सभी देश भारत से दुग्ध उत्पादन के मामले में काफी पीछे खड़े दिखाई देते हैं। आने वाले वर्षों में भारत में दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी की काफी संभावनाएं विद्यमान हैं। क्योंकि पशुधन की संख्या के मुकाबले देश में अन्य दुग्ध उत्पादक देशों की तुलना में अभी भी प्रति दुधारू पशु दुग्ध उत्पादकता काफी कम है।
आजादी के इतने वर्षों के बाद श्वेत क्रांति के जोरदार आगाज के बाद भी हमारी भारतीय गाय के एक ब्यांत का औसत दुग्ध उत्पादन पाकिस्तान जैसे देश के मुकाबले आधा है। आंकड़ों के अनुसार भारत में गाय का एक ब्यांत का औसत दुग्ध उत्पादन 1100 लीटर, पाकिस्तान का 2200 लीटर, यूएसए का 9000 लीटर और इजराइल का 11000 लीटर तक है। भारतीय श्वेत क्रांति की यह एक ऐसी सच्चाई है, जिसे नकारा नहीं जा सकता है। कारण जो भी हों लेकिन इतना तो तय है कि इस दिशा में अभी बहुत कुछ काम करने की आवश्यकता है।
सम्पूर्ण विश्व में भारत सर्वाधिक दूध पैदा करने वाले देश के रूप में पहचान कायम कर चुका है। देश में आज 200 मिलियन टन के लगभग दुग्ध उत्पादन हो रहा हैं, बावजूद इसके अभी भी दुग्ध उत्पादन को काफी हद तक बढ़ाये जाने की संभावनाएं हैं। देश के कुछ एक राज्यों को अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो बाकी अधिकांश राज्य दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में अभी भी काफी पीछे हैं। इन राज्यों में दुग्ध उत्पादन कम होने के पीछे प्रमुख वजहों में पशुओं की उन्नत नस्ल का अभाव, हरे चारे की कमी, अच्छी गुणवत्ता का सूखा चारा नहीं मिलना, दुग्ध उत्पादन के आधार पर संतुलित आहार नहीं मिलना, बेहतर पशु स्वास्थ्य सेवाओं की कमी प्रमुख समस्याओं में शामिल हैं। जिसे नस्ल सुधार, अच्छी खिलाई-पिलाई, हरे चारे की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी करके अधिकतम स्तर तक पहुंचाया जा सकता है। देश के गाय-भैंस पालन करने वाले अधिकांश राज्यों में देशी और दोगली नस्ल की गाय-भैसों का नस्ल सुधार किया जाना बहुत जरूरी हो गया है। गाय-भैस की नस्ल सुधार के बिना देश में दुग्ध उत्पादन को अधिकतम ऊचांई तक नहीं पहुंचाया जा सकता है।
हालांकि दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में देश ने बहुत लंबा रास्ता तक किया है। पिछले छह सालों के दरम्यांन भारत में 35.61 प्रतिशत की दर से दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हुई है। वर्ष 2014-15 में देश में 146.3 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन हो रहा था जोकि वर्ष 2019-20 में बढ़कर रिकार्ड स्तर 198.4 मिलियन टन तक जा पहुंचा है। इतना ही नहीं बल्कि साल दर साल में इसमें लगातार इजाफा हो रहा है। हर वर्ष दुग्ध उत्पादन में लगभग पांच प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जा रही है। दुग्ध उत्पादन में बढोत्तरी के साथ ही प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता में भी वृद्धि दर्ज की जा रही है।
देश के पिछले तीस सालों के दुग्ध उत्पादन और प्रति व्यक्ति उपलब्धता के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो वर्ष 1991-92 में 55.6 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन के साथ प्रति व्यक्ति उपलब्धता 178 ग्राम थी। दुग्ध उत्पादन वर्ष 2018-19 में बढ़कर 187.7 मिलियन टन तथा प्रति व्यक्ति उपलब्धता 394 ग्राम तक पहुंच गई है। आगे भी जैसे-जैसे दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी होगी उसी प्रकार से प्रति व्यक्ति उपलब्धता का आकड़ा भी बढ़ेगा।
देश के प्रमुख दुग्ध उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश टॉप पर है जहां 30519 हजार टन रिकार्ड दुग्ध उत्पादन हो रहा है। बावजूद इसके आबादी में बड़ा राज्य होने के कारण वहां प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दूध की उपलब्धता 371 ग्राम ही है।
इसी प्रकार से राजस्थान में उत्पादन 23668 हजार टन एवं उपलब्धता 870 ग्राम, मध्यप्रदेश में उत्पादन 15911 हजार टन तथा उपलब्धता 538 ग्राम है। जबकि देश के अन्य प्रमुख दुग्ध उत्पादक राज्यों में पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात एवं आंध्र प्रदेश में दुग्ध उत्पादन क्रमशः 12599, 10726, 11655, 14493 और 15044 हजार टन उत्पादित हो रहा है। वहीं प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दुग्ध उपलब्धता के मामले में पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात एवं आंध्र प्रदेश में क्रमशः 1181, 1087, 266, 626 एवं 623 ग्राम है।
भारत दुग्ध उत्पादन में भले ही अग्रणी देश है, बावजूद इसके अभी भी दुग्ध उत्पादन बढ़ाये जाने की बहुत अधिक संभावनाएं हैं। भारत के नाम जिस प्रकार से विश्व का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन का रिकार्ड है, उसी प्रकार से देश में विश्व की सर्वाधिक दुधारू पशुओं की संख्या का भी रिकार्ड दर्ज है। लेकिन पशुओं की यह संख्या उत्पादक कम अनउत्पादक जादा है। इसे उत्पादक बनाये जाने की जरूरत है। वर्तमान में देश में 192.5 मिलियन गाय, 109.9 मिलियन भैस, 74.3 मिलियन भेड़ तथा 148.9 मिलियन बकरी की संख्या है। जिसमें से सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन भैस से लगभग 55 प्रतिशत तक उत्पादित किया जाता है। जबकि गाय से 42 प्रतिशत तथा बकरी से 3 प्रतिशत तक दुग्ध उत्पादन प्राप्त होता है। पशुधन की विभिन्न प्र्रजातियों की आबादी में परिवर्तन के दृष्टिकोण से देखा जाये तो वर्ष 1951 में गायों की आबादी 2.2 प्रतिशत से गिरकर 0.8 प्रतिशत तक हो गई। इसी प्रकार से भैस की अबादी 1951 में 3.5 प्रतिशत से गिरकर 1.1 प्रतिशत तक आ गई है। तात्यर्प यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का रूझान पशुपालन की तरफ कम हो रहा है, जिसे पुनः बढ़ाए जाने की जरूरत है।
भारत सरकार द्वारा जारी वर्ष 2019-20 के आकड़ों पर नजर डाली जाये तो देश की कुल जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में पशुपालन और डेयरी सेक्टर का बहुत बड़ा योगदान है। देश की वर्ष 2018-19 की कुल जीडीपी 1,71,39,962 करोड़ रूपये थी जिसमें कृषि और कृषि से जुड़े व्यवसायों से 29,22,846 करोड़ रूपये प्राप्त हुये थे। जिसमें पशुपालन और डेयरी सैक्टर का योगदान 8,71,884 करोड़ रूपये था। इस प्रकार से कुल जीडीपी में कृषि व कृषि से जुड़े सभी सैक्टरों से 17.1 प्रतिशत की प्राप्ति हो रही थी। जिसमें अकेले पशुपालन एवं डेयरी सैक्टर का योगदान 5.1 प्रतिशत था। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि कृषि में पशुपालन व डेयरी सैक्टर का योगदान सबसे ज्यादा है। आगामी परिदृश्य को देखा जाये तो आने वाले वर्षों में पशुपालन एवं डेयरी सैक्टर आज जिस गति से वृद्धि कर कर रहा है, वह आगे भी इसी प्रकार से जारी रहने की पूरी संभावना है।
देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की दुग्ध और दुग्ध पदार्थों की दैनिक जरूरतों को देखते हुये भविष्य में भी इनकी मांग बढ़ती रहेगी। इस मांग को पूरा करने के लिये पशुपालन एवं डेयरी व्यवसाय के विकास को और अधिक गति से बढ़ाना होगा। गुजरात राज्य की तरह ही देश के अन्य राज्यों में भी डेयरी कॉपरेटिव क्षेत्र को बढ़ावा देना होगा। डेयरी पशुओं की नस्ल सुधार को जन आंदोलन के रूप में बढ़ाना होगा।
पशुधन की उत्पादकता बढ़ाने, भैंस के नवजात बच्चों की मृत्युदर में कमी लाने, बांझपन-थनैला जैसे रोगों पर काबू पाने, संतुलित चारा-दाना की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ ही सरल-सुलभ और सस्ता उपचार गांव स्तर पर उपलब्ध कराने की जरूरत पूरी करनी होगी।
नये पशु चिकित्सा केन्द्रों को खोलने की बजाय प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर कम से कम तीन से चार पशु चिकित्सा मोबाइल वैन पशु चिकित्सक व संबंधित अन्य स्टाफ, दवाओं और उपकरणों सहित तैनात करने कीे जरूरत है। जोकि पशुपालक की मांग पर गांव-गांव जाकर रोगी पशुओं को समय पर चिकित्सा, कृत्रिम गर्भाधान, टीकाकारण, गर्भ जांच आदि सुविधाएं मुहैया करा सकें। ग्रामीणों एवं बेरोजगारों को दुधारू पशुओं को खरीदने हेतु बिना ब्याज का दीर्घकालीन कर्ज मुहैया कराने के साथ ही पशुधन बीमा की गांरटी का प्रावधान करना होगा। ऐसे समस्त प्रयास ही श्वेत क्रांति के विकास की संभावनाओं को मजबूती प्रदान करेंगे।
(डॉ सत्येंद्र पाल सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी, मध्य प्रदेश के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख हैं, यह उनके निजी विचार हैं।)