अरुणाचल प्रदेश की कामेंग नदी में अचानक से क्यों मरने लगीं मछलियां?

अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी कामेंग जिले की कामेंग नदी में अचानक से मछलियां मरकर ऊपर तैरने लगीं, नदी का पानी पूरी तरह से गंदा हो गया। कई लोग इसे चीन की साजिश मान रहे हैं, पढ़िए क्या है पूरा मामला
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अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी कामेंग जिले में बहने वाली कामेंग नदी का पानी काला हो गया और कुछ ही देर में हजारों की संख्या में मछलियां मर कर ऊपर तैरने लगीं। 

पूर्वी कामेंग जिले के सेपा इलाके में मछलियों के ऊपर आने की खबर सुनकर आसपास के लोग मछलियां पकड़ने के लिए इकट्ठा होने लगे थे। लोगों को मछलियां पकड़ने से रोकने के लिए जिला प्रशासन ने एडवायजरी भी जारी की है।

एडवायजरी में कहा गया है कि नदी में तैरती मछलियों को पकड़ने के लिए लोग इकट्ठा हुए हैं, उनको पकड़ना सुरक्षित नहीं हो सकता है। अभी मछलियों के मरने का सही कारण नहीं पता चल पाया है इसलिए न तो मछलियों पकड़ने जाएं और न ही उन्हें पकड़ कर बाजार बेचने जाएं। क्योंकि यह नुकसानदायक हो सकता है।

जिला प्रशासन ने जारी की है एडवायजरी।

कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय लोग मछलियों की मौत और नदी के पानी काले होने के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

मछलियों के मौत के बारे में मछली पालन विभाग अरुणाचल प्रदेश के उप निदेशक गोकेन एटे गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “मछलियों को ऑक्सीजन न मिलने से उनकी मौत हुई है, वहां के डीएफडीओ (जिला मत्स्य विकास अधिकारी) ने पूरी जानकारी दी है। उन्होंने पानी की भी जांच की है। जिसमें पता चला है कि नदी के पानी में टीडीएस स्तर काफी बढ़ गया है।”

वो आगे कहते हैं, “पानी में टीडीएस की मात्रा लगभग 6800 मिलीग्राम पर लीटर है जोकि बहुत ज्यादा है, नदी का पानी बहुत गंदा है, क्योंकि मछलियां गिल्स से सांस लेती हैं, गंदा पानी उनके गिल्स में भर जाता है, इससे मछली ऑक्सीजन नहीं ले पाएगी, जिससे वो मर जाती हैं।”

पानी की जांच करते पूर्वी कामेंग जिले के जिला मत्स्य विकास अधिकारी।

उप निदेशक अनुसार पानी में 300 मिलीग्राम पर लीटर टीडीएस (कुल घुलित ठोस) सही माना जाता है, लेकिन अगर टीडीएस बढ़ता है तो मछलियों के लिए खतरनाक हो सकता है।

मछलियों की मौत में चीन को जिम्मेदार ठहराने पर वो कहते हैं, “ऐसा हम अभी कुछ भी नहीं कह सकते हैं, कल यहां से एक टीम जांच करने के लिए जा रही है, उसके बाद ही हम आगे कुछ बता सकते हैं।”

कामेंग नदी अरुणाचल के तवांग जिले में दक्षिण तिब्बत में भारत-तिब्बत सीमा पर बर्फ से ढकी गोरी चेन पर्वत के नीचे हिमनद झील से निकलती है। इस नदी की लंबाई लगभग 264 किमी है।

कृषि विज्ञान केंद्र, पूर्वी कामेंग के मछली पालन विशेषज्ञ सत्येंद्र कुमार बताते हैं, “कृषि विज्ञान केंद्र में भी मछलियां जांच के लिए लायी गईं थी, अभी तो हमने जितनी जांच की है उससे तो यही लग रहा है कि उनके गंदे पानी की वजह से ही मछलियों की मौत हुई है।”

वो आगे कहते हैं, “अगर किसी जहर से मछलियों की मौत होती है तो उनमें अजीब सी गंध आने लगती है, लेकिन इन मछलियों के साथ ऐसा नहीं था। इतने सालों में ऐसा पहली बार हुआ है जब नदी का पानी इतना गंदा हुआ है। ऊपर के गाँवों के किसानों से बात हुई है, उनका कहना है कि उधर भी ऐसा ही पानी गंदा है।”

“हमने मछलियों की जांच की है, अभी टीम ऊपर तक जाकर पानी की जांच करेगी, तभी मछलियों की मौत और नदी के पानी गंदे होने का कारण पता चल पाएगा, “सत्येंद्र ने आगे कहा।

भुस्खलन की वजह से हुआ गंदा पानी

2 नवंबर को अरुणाचल प्रदेश के आपदा प्रबंधन सचिव दानी सालू ने गाँव कनेक्शन से बताया, “सेटेलाइट इमेज में देखा गया है कि कामेंग नदी की सहायक वरियांग बुंग नदी पर ग्लेशियर के ऊपर ग्लेशियर की वजह से पानी गंदा हुआ था। वरियांग बुंग नदी के ऊपर कई सारे ग्लेशियर हैं।”

5 नवंबर को आपदा प्रबंधन सचिव दानी सालू ने हवाई सर्वेक्षण किया, जिसके अनुसार वारियांग बंग (कामेंग नदी की सहायक नदी) घाटी, जहां हिमनदों के पानी से भारी भूस्खलन हुआ, जिसके कारण कामेंग नदी में गंदा हो गया और नदी में मछलियों की मौत हो गई।

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