नरेंद्र सत्यवान की दुधारू भैंस अचानक बीमार हुई और दूसरे दिन ही उसकी मौत हो गई। पहले तो नरेंद्र समझ ही नहीं पाए, लेकिन जब उनके गाँव में अचानक से लगातार कई भैंस और उनके बच्चों की मौत हो गई तो पूरे गाँव के लोगों में डर बैठ गया ।
सरसोल ग्राम पंचायत में ज़्यादातर लोग दूध का व्यवसाय करते हैं और सभी के घर में भैंस पली हुईं हैं। नरेंद्र सत्यवान भी इसी गाँव के रहने वाले हैं।
नरेंद्र सत्यवान गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “इस समय लाख रुपए से कम में भैंस नहीं आती हैं, हमारा तो बहुत नुकसान हो गया है; समझ ही नहीं पाए कि कैसे उसकी मौत हो गई।”
सरसौल ग्राम पंचायत में पिछले 15-20 दिनों में 60 से अधिक छोटी-बड़ी भैंसों की मौत हुई है। पहले तो लोगों को लगा कि सर्दी की वजह से भैंसों की मौत हो रही है, लेकिन जब मौतों की संख्या बढ़ी तो पशुपालन विभाग के अधिकारी भी गाँव में जाँच करने पहुँचे।
20वीं पशुगणना के अनुसार, देश में भैंसों की आबादी 109.9 मिलियन है, जबकि हरियाणा में भैंसों की संख्या 43.76 लाख के करीब है।
गाँव वालों के अनुसार शुरुआत में भैंस एक-दो दिनों तक बीमार रहती है, उसके बाद कंपकंपी आती है और फिर दूसरे दिन उसकी मौत हो जाती है।
रहस्यमय मौत पर पशुपालन विभाग का जवाब
हिसार जिले के पशुपालन विभाग के उप निदेशक डॉ सुभाष जांगड़ा पशुओं की हो रही मौत पर गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “पशुओं की मौत सर्दी की वजह से हुई, क्योंकि ज़्यादातर मौत छोटे बच्चों की ही हुई है; मैंने गाँव में जाकर देखा था लोगों की लापरवाही के कारण मौत हुई है, क्योंकि सर्दी में लोग अपने पशुओं का ध्यान नहीं रख रहे हैं।”
लेकिन एक ही गाँव में हो रही मौत के सवाल पर वो आगे कहते हैं, “हमने जाँच के लिए सैंपल लैब में भेजा है, रिपोर्ट आने पर ही मौत का सही कारण पता चल पाएगा। अभी गाँव में पशुओं का इलाज भी शुरु हो गया है, जिससे आगे मौत न हों।”
डॉ सुभाष जांगड़ा के अनुसार गाँव में 35 छोटी-बड़ी भैसों की मौत हुई, जबकि ग्रामीणों के अनुसार 60 से भी ज़्यादा मौतें हुईं हैं।
उन्होंने सलाह दी है कि जिन पशुओं को दिक्कत हो, उन्हें अलग रखना चाहिए। अगर साँस लेने में दिक्कत हो रही है तो उन्हें भाँप दें और सबसे पहले डॉक्टर को बताएँ, जिससे समय रहते इलाज हो सके। तापमान कम होने से निमोनिया के साथ ही दूसरी बीमारियाँ भी हावी हो जाती हैं।
सरसौल ग्राम पंचायत के सरपंच प्रदीप इस बारे में गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “पिछले 15-20 दिनों में यही हो रहा है, रोज किसी न किसी की भैंस मर रही है। मरने वाले पशुओं में कई को मुँहपका बीमारी थी, जब वैक्सीन लगाने आते हैं तो लोग लगाने से मना कर देते हैं।”
मुँहपका रोग विषाणु जनित रोग होता है। यह रोग बीमार पशु के सीधे सम्पर्क में आने, पानी, घास, दाना, बर्तन, दूध निकलने वाले व्यक्ति के हाथों से, हवा से फैलता है। रोग के विषाणु बीमार पशु की लार, मुँह, खुर व थनों में पड़े फफोलों में बहुत अधिक संख्या में पाए जाते हैं।
राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत पशुओं को खुरपका-मुँहपका रोग से बचाव के लिए राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। साल 2019 को पशुओं में होने वाले खुरपका-मुँहपका (एफएमडी) और ब्रुसेलोसिस जैसी गंभीर बीमारी को जड़ खत्म करने के लिए राष्ट्रीय पशुरोग नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम के तहत वर्ष 2024 तक 51 करोड़ से अधिक पशुओं के टीकाकरण करने का लक्ष्य रखा गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य खुरपका-मुँहपका (एफएमडी) और ब्रुसेलोसिस को 2024 तक नियंत्रित करना और 2030 तक पूरी तरह समाप्त करना है।