एक बार फिर झारखंड में बर्ड फ्लू का खतरा मंडराने लगा है; यहाँ पर बर्ड फ्लू का संक्रमण रोकने की लिए हज़ारों की संख्या में मुर्गियों को मार दिया गया है।
पशुपालन विभाग, झारखंड के सहायक निदेशक (कुक्कुट) डॉ. कमलेश कुमार गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “रांची के होटवार रीजनल पोल्ट्री फार्म पर अचानक से 136 मुर्गियों की मौत हो गई; जिसके बाद भोपाल जाँच के लिए भेजा गया। वहाँ पता चला कि बर्ड फ्लू के संक्रमण की वजह से उनकी मौत हुई है।”
वो आगे कहते हैं, “इसके बाद हमने रैपिड रिस्पांस टीम बनाकर वहाँ की 2196 पोल्ट्री बर्ड की कलिंग कर दी है। अभी यहाँ के एक किमी के दायरे में अंडे और चिकन की बिक्री पर रोक लगा दी गई है।”
पशुपालन विभाग की टीम पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए है। अब हर दिन की रिपोर्ट भारत सरकार को भेजी जाएगी। एक माह के बाद निगेटिव रिपोर्ट आने के बाद इलाके को बर्ड फ्लू मुक्त घोषित किया जायेगा। पूरे इलाके को सर्विलांस पर डाल दिया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार H5N1 एक प्रकार का इन्फ्लूएंजा वायरस है जो एवियन इन्फ्लूएंजा या बर्ड फ्लू पक्षियों में एक अत्यधिक संक्रामक, गंभीर श्वसन रोग का कारण बनता है। H5N1 एवियन इन्फ्लूएंजा से इंसानों में संक्रमण के मामले कभी-कभी होते हैं, लेकिन एक इंसान से दूसरे इंसान में संक्रमण मुश्किल होता है।
बर्ड फ्लू की पुष्टि के बाद बरती जाती हैं ये सावधानियाँ
किसी भी वाहन को प्रभावित खेत/स्थल के अंदर और बाहर जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। निजी वाहनों को फार्म परिसर के बाहर छोड़ा जाना चाहिए
मुर्गी, अंडे, मृत शव, खाद, प्रयुक्त कूड़े, कृषि मशीनरी, उपकरण या ऐसी किसी भी सामग्री को चेतावनी क्षेत्र से आने-जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
फार्म के अंदर काम करने वाले कर्मियों को फार्म के अंदर हर समय सुरक्षात्मक कपड़े पहनने चाहिए, जिसमें फेस-मास्क और दस्ताने, गमबूट (या डिस्पोजेबल कवर वाले जूते) आदि शामिल हैं। फार्म से बाहर निकलते समय, सुरक्षात्मक कपड़े आदि फार्म पर छोड़ दें और उपयुक्त कीटाणुनाशकों से स्वयं को अच्छी तरह साफ करें
संदिग्ध फार्म से लोगों की आवाजाही को न्यूनतम सीमा तक प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। किसी अन्य जानवर और पक्षी को फार्म में आने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए
कृषि कर्मियों के अंतर-अनुभागीय आंदोलनों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। उन्हें किसी अन्य पोल्ट्री फार्म, पक्षी-अभयारण्य या चिड़ियाघर आदि का दौरा नहीं करना चाहिए।
परिसर के प्रवेश द्वार पर कीटाणुशोधन प्रक्रियाएं (उदाहरण के लिए 2% NaOH/KMnO4 का उपयोग करके) सख्ती से लागू की जानी चाहिए।
फार्म में मौजूद पक्षियों के सभी रिकॉर्ड ठीक से बनाए रखने होंगे।
परीक्षण के परिणाम प्राप्त होने से पहले, राज्य पशुपालन विभाग के परामर्श से जिला कलेक्टर/उपविभागीय अधिकारी/राजस्व 19 अधिकारियों द्वारा क्षेत्र में बाजारों और दुकानों को बंद करने की संभावना का पता लगाया जा सकता है, खासकर यदि अधिक फार्म संदिग्ध हो जाते हैं इस अवधि के दौरान
खुले पिछवाड़े में मुर्गीपालन की प्रथा को रोका जाना चाहिए और फेरीवालों, विक्रेताओं आदि के माध्यम से पक्षियों/चूजों/अंडों के विपणन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए
यदि ज़रूरी हो तो उपरोक्त उपायों को लागू करने में सहायता के लिए पुलिस बल तैनात किया जाना चाहिए।
पोल्ट्री बर्ड की मौत के बाद दिए जाने वाला मुआवजा
पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय ने मुआवजा राशि निर्धारित की है, जिसमें लेयर मुर्गी के चूजों के 20 रुपए, बड़ी मुर्गियों के लिए 90 रुपए, ब्रायलर मुर्गियों के चूजों के 20 रुपए, बड़ी ब्रायलर मुर्गी के 70 रुपए, बटेर के चूजों के पांच रुपए, बड़े बटेर के 10 रुपए, बतख के चूजों के 35 रुपए, बड़ी बतख के 135 रुपए, गिनी फाउल के चूजों के 20 रुपए, बड़ी गिनी फाउल के 90 रुपए, टर्की के चूजों के 60 रुपए और बड़ी टर्की के 160 रुपए। अंडों को नष्ट करने पर प्रति अंडा तीन रुपए और पोल्ट्री फीड को नष्ट करने पर 12 रुपए प्रति किलो निर्धारित किए गए हैं।
जबकि केरल में दूसरे राज्यों के मुकाबले मुआवजा राशि काफी ज्यादा है। केरल में इस बार बड़े पक्षियों के लिए 200 रुपए और छोटे पक्षियों के लिए 100 रुपए मुआवजा राशि निर्धारित की गई है। जबकि प्रति का अंडे के पांच रुपए दिए जाते हैं। ।
इससे पहले यहाँ बर्ड फ्लू की वजह से हुआ था नुकसान
साल 2021 के जनवरी महीने में 12 राज्यों (मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान, जम्मू व कश्मीर और पंजाब) में एविएन फ़्लू (बर्ड फ़्लू) के प्रकोप की पुष्टि हुई थी। इसके प्रसार को रोकने के लिए महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में मुर्गियों और बतखों को मार दिया गया था।
साल 2006 में मार्च से अप्रैल तक महाराष्ट्र के नंदूरबार और जलगाँव में बर्ड फ्लू के संक्रमण को रोकने के लिए 9.4 लाख पक्षियों को मार दिया गया, जिसके लिए 270 लाख रुपए मुआवजा दिया गया। साल 2006 में ही फरवरी में गुजरात में 92000 हजार पक्षियों के मार दिया गया, जिसके लिए 32 लाख रुपए मुआवजा दिया गया। साल 2006 में ही मध्य प्रदेश में नौ हजार पक्षियों को मारा गया, जिसके लिए तीन लाख रुपए मुआवजा दिया गया।
साल 2007 में मणिपुर के पूर्वी इंफाल जिले के चिंगमेइरॉन्ग में पोल्ट्री फार्म में सबसे पहले एवियन इन्फ्लुएंजा की पुष्टि हुई, जिसके बाद यहां पर 3.39 लाख पक्षियों को मार दिया गया।
साल 2008 में देश में चौथी बार एवियन इन्फ्लुएंजा की पुष्टि हुई। पश्चिम बंगाल के बीरभूमि और दक्षिण दिनाजपुर से इसकी शुरूआत हुई और मुर्शिबाद, बर्दवान, दक्षिण-24 परगना, नादिया, हुगली, हावड़ा, कोच्ची, मालदा, पश्चिम मेदिनापुर, बांकुरा, पुरुलिया, जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग जैसे 15 जिलों के 55 प्रखंडों और दो नगर पालिकाओं में फैल गया। पश्चिम बंगाल में 42.62 लाख पक्षियों को मार दिया गया, जिसके लिए 1229 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया।
साल 2008 में त्रिपुरा के धलाई जिले के सलीमा ब्लॉक में बर्ड फ्लू की जानकारी मिली, इसके बाद ये बीमारी मोहनपुर, और विशालगढ़ तक पहुंच गई। यहां 1.93 पक्षियों को मार दिया गया, जिसके लिए 71 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया।
साल 2008 में ही असम के कामरूप जिले से बर्ड फ्लू की शुरूआत हुई और धीरे-धीरे ये कामरूप, बारपेटा, नलबाड़ी, चिरांग, डिब्रूगढ़, बोंगईगाँव, नागाँव और बक्सा जिलों में फैल गई। यहां पर 5.09 लाख पक्षियों को मार दिया गया, जिसके लिए 170 लाख रुपए की मुआवजा राशि दी गई।
दिसंबर 2008 से मई 2009 तक पश्चिम बंगाल के पांच जिलों में एक बार फिर बर्ड फ्लू फैल गया। इसके संक्रमण को रोकने के लिए 2.01 पक्षियों को मार दिया गया, जिसे लिए 68.80 लाख रुपए मुआवजा राशि दी गई।
साल 2009 में सिक्किम रावोंगला नगरपालिका बर्ड फ्लू के प्रकोप की पुष्टि हुई, जहां पर लगभग चार हजार पक्षियों को मार दिया गया। यहां पर करीब तीन लाख मुआवजा दिया गया।
साल 2010 में एक बार फिर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में बर्ड की पुष्टि हुई, नियंत्रण के लिए यहां पर लगभग 1.56 पक्षियों के साथ ही 18 हजार अंडों को नष्ट कर दिया गया। इसके लिए 68.80 लाख रुपए मुआवजा दिया गया।
साल 2011 में त्रिपुरा के दो सरकारी बतख फार्मों पर बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई, जहां पर लगभ 21 हजार बतखों को मार दिया गया। यहां पर 2.40 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया।
आठ सितम्बर, 2011 को असम धुबरी जिले में बर्ड फ्लू की जानकारी मिली, आठ सितंबर 2011 से चार जनवरी 2012 तक असम के कई जिलों में 15 हजार पक्षियों को मार दिया गया, जिसके लिए 6.52 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया।
साल 2012 में ओडिशा, मेघालय और त्रिपुरा में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई, जिसमें ओडिशा में 0.81 लाख, मेघालय में 0.07 लाख और त्रिपुरा में 0.13 लाख पक्षियों को मार दिया गया। इसके साथ ही कर्नाटक में 0.33 लाख पक्षियों को मार दिया गया।
साल 2013 में बिहार के पूर्णिया जिले में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई। बिहार में छह हजार पक्षियों को मारकर 2.06 लाख का मुआवजा दिया गया। इसी साल पांच अगस्त 2013 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग में जहां पर 31 हजार पक्षियों को मार दिया। साल 2014 में केरल में 25 नवंबर से आठ दिसम्बर तक 2.77 पक्षियों को मारकर, 379.51 लाख का मुआवजा दिया गया। इसी साल चंडीगढ़ के सुखना लेक में बतखों में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई, जहां पर 110 बतखों को मार दिया गया।
25 जनवरी 2015 को केरल के कोल्लम में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई, जहां पर आठ हजार मुर्गियों को मार दिया गया। इसका 2.16 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया। इसी साल 13 मार्च 2015 को उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई, जहां पर 844 मुर्गियों को मार दिया गया।
साल 2015 में ही तेलंगाना में 1.60 पक्षियों को मारने के बाद 176.80 लाख का मुआवजा, जबकि मणिपुर में 0.21 लाख पक्षियों को मारने के बाद 13.89 लाख का मुआवजा दिया गया।