इस समय धान की फसलों में कई तरह के रोग व कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, ऐसे में किसानों को चाहिए कि सही समय पर इनका नियंत्रण करके नुकसान से बच सकें। आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, हर हफ्ते पूसा समाचार और कृषि सलाह के जरिए उनकी समस्याओं का समाधान करता है।
धान की फसल में रोग व कीट प्रबंधन के बारे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के निदेशक डॉ अशोक कुमार सिंह बताते हैं, “इस समय धान की फसल में पत्ती लपेटक व तना छेदक कीट का प्रकोप होता है, इसका नियंत्रण आपको करना होता है। इसके साथ ही शीथ ब्लाइट और झोका/ब्लास्ट रोग की संभावना होती है। पत्ती में झुलसा रोग लगने पर पत्ती सूख जाती है, इसके नियंत्रण के लिए स्ट्रेप्टोसाईक्लीन दवा 6 ग्राम 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।”
वो आगे कहते हैं, “साथ ही इनके नियंत्रण के लिए किसान इस समय खेत से पानी निकाल दें और उसे सूखा रखें, नत्रजन खाद का प्रयोग कम करें। पत्ती लपेटक व तना छेदक कीट के नियंत्रण के लिए क्लोरनट्रानीलोप्रोल 4 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। इसके साथ ही फ्लूबेंडियामाइड 30 मिली मात्रा 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। अगर बात करें झोंका रोग के लिए एजोक्सीस्ट्रोबिन और डाईफेनाकोनाजोल की 200 मिली मात्रा, 200 लीट पानी में घोलकर छिड़काव करें।”
इस समय खरीफ की प्रमुख फसलों में से एक अरहर की फसल भी खेत में लगी होती है, अरहर की फसल प्रबंधन पर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, के सस्य विज्ञान संभाग के वैज्ञानिक डॉ राज सिंह कहते हैं, “अरहर में कई तरह के खरपतवार उगते हैं, जैसे कि मोथा घास ये बहुत तेजी से बढ़ते हैं, इसकी जड़ों में गांठे होती हैं, जब इन्हें ऊपर से काटते हैं तो ये गांठ जमीन में रह जाती है, जिससे एक बार फिर नया पौधा बन जाता है।”
वो आगे बताते हैं, “इसके नियंत्रण के लिए जो भी सिस्टेमिक खरपतवारनाशी बहुत प्रभावशाली होते हैं, जो उनकी जड़ों को निष्क्रिय कर देते हैं, जिससे नया पौधा बनने की संभावना कम हो जाती है। इसके साथ ही इसमें नुकीली पत्ती वाले खरपतवार होते हैं। इसलिए फसल में मेट्रिबुजिन की 250 ग्राम मात्रा 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें, नहीं तो पेंडीमेथिलीन का भी छिड़काव कर सकते हैं। जब अरहर की फसल 30 दिनों की हो जाए तो एक बार हाथ से निराई कर दें, ऐसे में खेत में जो खरपतवार होने वाले होते हैं उनकी संभावना कम हो जाती है। खरपतवारनाशी हमेशा का इस्तेमाल हमेशा बुवाई के 2-3 दिनों में कर देना चाहिए, अगर बाद में डालते हैं तो उस खरपतवारनाशी का प्रभाव अच्छा नहीं होगा।”
इस मौसम में बासमती धान में आभासी कंड (False Smut) आने की काफी संभावना है। इस बीमारी के आने से धान के दाने आकार में फूल कर पीला पड़ जाते है। इसकी रोकथाम के लिए ब्लाइटोक्स 50 @ 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें।
इस मौसम में धान की फसल को नष्ट करने वाली ब्राउन प्लांट हॉपर का आक्रमण शुरू हो सकता है, इसलिए किसान खेत के अंदर जाकर पौध के निचली भाग के स्थान पर मच्छरनुमा कीट का निरीक्षण करें। यदि कीट की संख्या अधिक हो तो ओशेन (Dinotefuran) 100 ग्राम/ 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
इस मौसम में किसान स्वीट कोर्न (माधुरी, विन ऑरेंज) तथा बेबी कोर्न (एच एम-4) की बुवाई कर सकते है।
सरसों की तैयार खेतों में अगेती बुवाई कर सकते हैं। उन्नत किस्में- पूसा सरसों-28, पूसा तारक आदि बीज दर 5-2.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़।
इस मौसम में अगेती मटर की बुवाई कर सकते हैं। उन्नत किस्में – पूसा प्रगति, बीजों को कवकनाशी केप्टान @ 2.0 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से मिलाकर उपचार करें उसके बाद फसल विशेष राईजोबियम का टीका अवश्य लगायें। गुड़ को पानी में उबालकर ठंडा कर ले और राईजोबियम को बीज के साथ मिलाकर उपचारित करके सूखने के लिए किसी छायेदार स्थान में रख दे तथा अगले दिन बुवाई करें।
इस मौसम में किसान गाजर की बुवाई मेड़ो पर कर सकते हैं। उन्नत किस्में- पूसा रूधिरा। बीज दर 4.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़। बुवाई से पूर्व बीज को केप्टान @ 2 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें तथा खेत में देसी खाद, पोटाश और फास्फोरस उर्वरक अवश्य डालें। गाजर की बुवाई मशीन द्वारा करने से बीज 1.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है जिससे बीज की बचत तथा उत्पाद की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।
सब्जियों में (टमाटर, बैंगन, फूलगोभी व पत्तागोभी) शीर्ष एवं फल छेदक एवं फूलगोभी/पत्तागोभी में डायमंड़ बेक मोथ की निगरानी के लिए फिरोमोन प्रपंच @ 3-4/एकड़ लगाए |
जिन किसानों की टमाटर, हरी मिर्च, बैंगन व अगेती फूलगोभी की पौध तैयार है, वे मौसम को मद्देनजर रखते हुए रोपाई (ऊथली क्यारियों या मेंड़ों) पर करें।
इस मौसम में किसान मूली (पूसा चेतकी), पालक (पूसा भारती, आलग्रीन), चौलाई (पूसा लाल चौलाई, पूसा किरण) आदि फसलों की बुवाई के लिए खेत तैयार हो तो बुवाई ऊंची मेंड़ों पर कर सकते हैं। प्रमाणित या उन्नत बीज से बुवाई करें।
कद्दूवर्गीय एवं अन्य सब्जियों में मधुमक्खियों का बड़ा योगदान है क्योंकि, ये परागण में सहायता करती है इसलिए मधुमक्खियों को खेत में रखें। कीड़ों और बीमारियों की निरंतर निगरानी करते रहें, कृषि ज्ञान केन्द्र से सम्पर्क रखें व सही जानकारी लेने के बाद ही दवाईयों का प्रयोग करें।
इस मौसम में फसलों व सब्जियों में दीमक का प्रकोप होने की संभावना रहती है, इसलिए किसान फसलों की निगरानी करें यदि प्रकोप दिखाई दे तो क्लोरपाइरीफांस 20 ई सी @ 4.0 मि.ली/लीटर सिंचाई जल के साथ दें।
इस मौसम में किसान अपने खेतों की नियमित निगरानी करें। यदि फसलों व सब्जियों में सफ़ेद मक्खी या चूसक कीटों का प्रकोप दिखाई दें तो इमिडाक्लोप्रिड दवाई 1.0 मि. ली./3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
किसान प्रकाश प्रपंच (Light Trap) का भी इस्तेमाल कर सकते है। इसके लिए एक प्लास्टिक के टब या किसी बड़े बर्तन में पानी और कीटनाशक मिलाकर एक बल्ब जलाकर रात में खेत के बीच में रखे दें। प्रकाश से कीट आकर्षित होकर उसी घोल पर गिरकर मर जाएंगे। इस प्रपंच से अनेक प्रकार के हानिकारक कीटों का नाश होगा।