वीरेंद्र सिंह/वीरेंद्र शुक्ला, कम्युनिटी जर्नलिस्ट
विदिशा (मध्य प्रदेश)। “हमें हर रोज एक किमी दूर से पानी लाना पड़ता है, जिस वजह से रोज स्कूल जाने में देर हो जाती है। यह काम दिन में दो बार करना पड़ता है, “कई पीले बड़े-बड़े डिब्बों के बीच बैठे दस साल का मोहित बताता है। मध्य प्रदेश में विदिशा जिले के चकरघुनाथपुर गाँव में रहने वाले मोहित की कहानी भारत में बढ़ रहे जल संकट की कहानी हो सकती है।
मोहित कक्षा सात में पढ़ाई करता है, लेकिन उसे पढ़ाई से ज्यादा पानी की ढुलाई पर मेहनत करनी पड़ती है। उसकी ही तरह उसके गाँव के दूसरे बच्चे भी कभी समय से स्कूल नहीं जा पाते, क्योंकि उन्हें भी पानी भर के घर में रखना पड़ता है। यह कहानी सिर्फ मोहित या उसके गाँव के दूसरे लड़कों की ही नहीं है, भारत के 60 करोड़ लोग इस समय इतिहास के सबसे बुरे जल संकट से जूझ रहे हैं।
बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में गांव कनेक्शन की टीम जहां भी गई, वहां पर उन्हें महिलाओं का दिन भर का एक ही काम दिखा- पानी ढोने का काम। इस काम की वजह से महिलाओं का स्वास्थ्य अक्सर प्रभावित होता है। इसके अलावा वह अपने बच्चों को देखभाल उचित ढंग से नहीं कर पाती हैं। पानी ढोने की समस्याओं से उन्हें कई घरेलू समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।
“जबसे होश संभाला है तब से पानी की ही दिक्कत दे रहे हैँ, कोई सरकार पानी के बारे में नहीं सोच रही। तीन किमी दूर से साइकिल से हम लोग पानी लाते हैं, जानवर पाल नहीं पा रहे, भैंस खरीद नहीं पा रहे। गर्मी के दिनों में तो पूरा घर पानी में ही लगा रहता है,” मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के चकरघुनाथपुर गाँव के घनश्याम यादव कहते हैँ।
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, फिलहाल देश की तीन चौथाई आबादी पेयजल की संकट से जूझ रही है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2020 तक दिल्ली और बेंगलुरू जैसे 21 बड़े शहरों से भूजल गायब हो जाएगा। इससे करीब 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। अगर पेयजल की मांग ऐसी ही रही तो वर्ष 2030 तक स्थिति और विकराल हो जाएगी। वहीं वर्ष 2050 तक पेयजल की इस विकराल समस्या के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में छह प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।