उत्तराखंड में पशुपालन करने वाले वन गुर्जरों की परेशानी, ‘लोग कहते हैं हम कोरोना लेकर आए हैं, हमसे कोई दूध नहीं खरीदता’

उत्तराखंड के कई जिलों में मुस्लिम वन गुर्जर रहते हैं, जिनका मुख्य व्यवसाय गाय-भैंस पालना और उनका दूध बेचना है। लेकिन देश भर में जमातियों में कोरोना के संक्रमण की खबरें फैलने के बाद अब लोगों ने इनसे दूध ही खरीदना बन्द कर दिया।
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उत्तराखंड। लॉकडाउन की वजह से देश भर में पशुपालक दूध नहीं बेच पा रहे हैं, लेकिन इन पशुपालकों की अलग परेशानी है।

उत्तराखंड के देहरादून में राजाजी नेशनल पार्क के पास कई मुस्लिम वन गुर्जर परिवार रहते हैं, जिनका मुख्य व्यवसाय गाय-भैंस पालना और उनका दूध बेचना है। लेकिन देश भर में जमातियों में कोरोना के संक्रमण की खबरें फैलने के बाद अब लोगों ने इनसे दूध ही खरीदना बन्द कर दिया।

पिछले कई साल से दूध का व्यवसाय करने वाले लियाकत कहते हैं, “पहले हर दिन 60-70 लीटर दूध जाता था, अब लोग दूध ही नहीं लेना चाह रहे हैं, लोग कहते हैं कि ये मुसलमान हैं ये कोरोना लेकर आते हैं, हम तो जंगल में रहते हैं, हम कहां से कोरोना लाएंगे। हम तो कभी जंगल से भी नहीं गए। हमारा तो धन्धा ही यही भैंस पालना। अब दूध नहीं बिक रहा तो भैंसों को चारा भी नहीं मिल रहा, गाय-भैंसे भूखी मर रही हैं।”

अफवाहों की वजह से वन गुर्जरों पर दोहरी मार पड़ रही है एक तरफ तो लॉक डाउन में उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा कर दिया है वहीं बीते दिनों तबलीगी जमात और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ सोशल मीडिया में चल रही फेक न्यूज़ ने उनके दूध के धंधे को पूरी तरह चौपट कर दिया है। लोग अब उनसे दूध खरीदने में हिचक रहे हैं उसकी वजह यह है कि लोगों को यह शक है कि वह दूध में थूकते हैं और कोरोना फैलाने की कोशिश करते हैं वही तबलीगी जमात से भी उनको जोड़ा जा रहा है जिसकी वजह से पूरी तरह से उनका दूध बेचने का धंधा चौपट होता हुआ नजर आ रहा है वहीं वह अपनी गाय भैंसों को चारा भी नही खिला पा रहे हैं।

वो आगे बताते हैं, “पता नहीं कौन ये अफवाह उड़ा रहा है, हम लोगों को समझाते भी हैं लेकिन हमारी सुनता कौन है। अब तो लोग कहते हैं कि हमारी दुकान के सामने भी मत आना, यहां तक कि राशन की दुकान वाले भी राशन देने को राजी नहीं है।”

इस समय गर्मी का मौसम है और इस दौरान जंगलों में इनके मवेशियों के लिए चारा भी नहीं मिल रहा है। ऊपर से लॉकडाउन भी है। अब लोग दूध भी नहीं खरीद रहै हैं।

दूसरे पशुपालक कहते हैं, “पशुओं के चारा के लिए मजबूरी में बाहर जाना पड़ता है, एक तो चारा नहीं नहीं मिल रहा है और अब दूध भी नहीं बिक रहा है।”

लॉकडाउन की वजह से पशुओं के चारे की पहले से ही दिक्कत थी। खली और पशु आहार महंगे दाम में बिक रहे हैं और अब दूध न बिकने के कारण इनके लिए चारा खरीदना मुश्किल हो रहा है।  लॉकडाउन की वजह से दूध उत्पादन की लागत भी बढ़ी है। लॉकडाउन की वजह से गाड़ियों की आवागमन रुकी है। जिस कारण चारा एक जिले से दूसरे जिले तक नहीं पहुंच पा रहा है।

पिछले कई वर्षों से दूध का व्यवसाय करने वाले पशुपालक बताते हैं, “पहले घरों पर आकर दूध खरीदते थे अब वो भी नहीं आ रहे हैं, अफवाहें उड़ रहीं हैं कि हम लोग दूध में थूककर दे रहे हैं। हम तो हिंदुस्तान के वन गुर्जर हैं, हमें यहीं रहना है। ऐसा कौन दूध में थूक कर देगा, यही तो हमारा रोजगार है, हम तो बहुत साल से यही कर रहे हैं। हम तो घी-दूध में मिलावट तक नहीं करते कि ये पाप होता है।”

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