बाजार से गायब हो रहे दीवाली की मिठास बढ़ाने वाले ‘चीनी के खिलौने’

#Diwali

एटा (उत्तर प्रदेश)। पहले गाँव की बाजार में दीवाली आते ही दुकानों पर चीनी की खिलौने सज जाते थे। चीनी के हाथी, घोड़े जैसे कई खिलौने, लेकिन पिछले कई साल से अब ये रौनक कम हो गई, जिससे कारीगरों की दीवाली भी सूनी हो गई है।

त्यौहार से पहले इस कारोबार को लेकर कारीगरों में उत्साह नजर आता था जो आज दिख नही रहा। महंगाई और कम्प्यूटर के इस दौर में चीनी के खिलौने की बिक्री में खासा फर्क दिख रहा है।

कई पीढ़ियों से चीनी के खिलौने के कारोबार से जुड़े मोहम्मद यूनुस फरीदी बताते हैं, “चीनी के खिलौने के कारोबार में पहले से बहुत बड़ा फर्क आ गया है।”

युनुस फरीदी उत्तर प्रदेश के एटा जिले के मारहारा कस्बे के रहने वाले हैं। वो आगे कहते हैं, “कभी हम 70 कुंतल चीनी के खिलौने अकेले बनाते थे, आज 40 कुंतल चीनी के खिलौने पूरा परिवार मिलकर बना पाता है। पहले हम एक दिन में 6 कुंतल चीनी का माल तैयार करते थे, लेकिन अब 3 कुंतल चीनी का माल बन पाता है। पहले खिलौने बनाने वाले कारीगर आसानी से मिल जाते थे, आज कारीगर ढूंढ़ने से नही मिल पाते हैं। महंगाई के दौर में मजदूरी भी निकालना मुश्किल हो जाता है। चीनी 37 रुपए किलो मिलती है, फिर इसे बनाने में खर्चा आता है, मार्केट में रेट वही 50 रुपए किलो का मिल पाता है। पहले चीनी के खिलौने ज्यादा बिकते थे, आज इसकी बिक्री कम होती है।”

चीनी के खिलौनों की मिठास से दीपावली पर्व मनाए जाने की परम्परा पौराणिक काल से चली आ रही है। आधुनिक जमाने के तौर-तरीको में आए बदलाव की वजह से बरसों से चली आ रही चीनी के खिलौने की परंपरा में बदलाव होता नजर आ रहा है। चीनी के खिलौने बनाने वाले कारीगरों पर इसका सीधा असर दिख रहा है।

खिलौना बनाने वाले कारीगर इस्लाम अब्बासी कहते हैं, “आजकल टीवी पर आने वाले नाटकों के कारण लोग पुरानी चीजें भूल गए हैं। डिब्बा की मिठाइयों के कारण चीनी के खिलौने से लोगों ने दूरी बना ली है। बड़े-बुजुर्ग दीपावली, करवाचौथ और अन्नकूट पूजन के लिए आज भी चीनी के खिलौनो खरीदना पसंद करते हैं। खील-बताशों के साथ चीनी के खिलौनों को दीपावली पूजन के प्रसाद में चढ़ाया जाता है और इसे शुद्ध माना जाता है। पहले इसी प्रसाद को रिश्तेदारों और दोस्तों में बांटा जाता थी जिसकी जगह बाद में मिठाई और गिफ्ट्स ने ले ली।”

चीनी के खिलौनों का अपना जायका है। 10 किलो चीनी में 9 किलो खिलौने बनते हैं। इनमें हाथी, शेर, मीनार, मछली, बत्तख, मुर्गा, झोपड़ी, ताजमहल जैसी आकृतियां शामिल होती हैं। पहले चाशनी बनती है। फिर इसे लकड़ी के सांचों में डाल दिया जाता है। ठंडा होने पर सांचा खोल देते हैं तो तैयार खिलौना निकल आता है। खाने में यह काफी कुरकुरे होते हैं और चीनी के वजह से भरपूर मीठे भी।

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